Wednesday 30 May 2018

सामने दरख्त हैं और छाँव भी घनी है,


सामने दरख्त हैं और छाँव भी घनी है,
वर्षों से हम धूप मे यूं ही खड़े हुए हैं।

तालीम पाने मे गुजारी जिन्दगी आधी,
माँ बाप बूढ़े हो गये,सपने मरे हुए हैं।

पगडंडियाँ तब्दील हैं,चौड़ी सड़क बन,
खेत क्यारी और बगीचे,फिर सहमें हुए हैं

सूरतें बाहर गयीं थी, जो धन कमाने को,
लिपटे हुए कफन मे सब लौट आये हैं।

पैर की पायल बिकी,कान का झुमका बिका,
घर की इज्ज़त ही बची,नीलाम सब हो आये हैं।

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Sunday 20 May 2018

एक बार अवश्य पढे ।


एक बार अवश्य पढे ।
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मंजू ने लम्बी साँस लेते हुए मन में सोचा -
''आज सासू माँ की तेरहवीं भी निपट गयी .
माँ ने तो केवल इक्कीस साल संभाल कर रखा मुझे 
पर सासू माँ ने अपने मरते दम तक मेरे सम्मान, मेरी गरिमा और सबसे
बढ़कर मेरी इस देह की पवित्रता की रक्षा की .
ससुराल आते ही जब ससुर जी के पांव छूने को झुकी
तब आशीर्वाद देते हुए सिर पर से ससुर जी का हाथ
पीछे पीठ पर पहुँचते ही सासू माँ ने टोका था उन्हें .......
'' बिटिया ही समझो ...बहू नहीं हम बिटिया
ही लाये हैं जी !''
सासू माँ की कड़कती चेतावनी सुनते ही घूंघट में से ही ससुर जी का खिसियाया
हुआ चेहरा दिख गया था मुझे . .
उस दिन के बाद से जब भी ससुर जी के पांव छुए दूर से ही आशीर्वाद
मिलता रहा मुझे .
पतिदेव के खानदानी बड़े भाई जब किसी काम से 
आकर कुछ दिन हमारे घर में रहे थे तब एक बेटे की माँ
बन चुकी थी थी मैं ...
पर उस पापी पुरुष की निगाहें मेरी पूरी देह पर ही सरकती रहती .
एक दिन सासू माँ ने आखिर चाय का कप पकड़ाते समय मेरी मेरी उँगलियों को छूने का कुप्रयास करते उस पापी को देख ही लिया और आगे बढ़ चाय का कप उससे लेते हुए कहा था ......
''लल्ला अब चाय खुद के घर जाकर ही पीना ...
मेरी बहू सीता है द्रौपदी नहीं जिसे भाई आपस में बाँट लें .
'' सासू माँ की फटकार सुन वो पापी पुरुष बोरिया-बिस्तर बांधकर ऐसा भागा कि ससुर जी की तेरहवी तक में नहीं आया और न अब सासू माँ की .
चचेरी ननद का ऑपरेशन हुआ तो तीमारदारी को
उसके ससुराल जाकर रहना पड़ा कुछ दिन ...
अच्छी तरह याद है वहाँ सासू माँ के निर्देश कान में गूंजते
रहे -'' ...
बचकर रहना बहू ..यूँ तेरा ननदोई संयम वाला है पर है तो मर्द ना ऊपर से उनके अब तक कोई बाल-बच्चा नहीं ...''
आखिरी दिनों में जब सासू माँ ने बिस्तर पकड़ लिया था तब एक दिन बोली थी हौले से .......
'' बहू जैसे मैंने सहेजा है तुझे तू भी अपनी बहू की छाया
बनकर रक्षा करना ..
जो मेरी सास मेरी फिकर रखती तो मेरा जेठ मुझे कलंक न लगा पाता .
जब मैंने अपनी सास से इस ज्यादती के बारे में कहा था तब वे हाथ जोड़कर बोली थी मेरे आगे कि इज्जत रख ले
घर की ..बहू ..चुप रह जा बहू ...तेरी गृहस्थी के साथ साथ जेठ की भी उजड़ जावेगी ..पी जा बहू जहर ....
भाई को भाई का दुश्मन न बना ....और मैं पी गयी थी वो जहर ..आज उगला है तेरे सामने बहू !!
'' ये कहकर चुप हो गयी थी वे और मैंने उनकी हथेली कसकर पकड़ ली थी
मानों वचन दे रही थी उन्हें
''चिंता न करो सासू माँ आपके पोते की बहू मेरे संरक्षण में रहेगी .
'' सासू माँ तो आज इस दुनिया में न रही पर सोचती हूँ कि शादी से पहले जो सहेलियां रिश्ता पक्का होने पर मुझे चिढ़ाया
करती थी कि -'' जा सासू माँ की सेवा कर ..
तेरे पिता जी से ऐसा घर न ढूँढा गया जहाँ सास न हो '' ....
उन्हें जाकर बताउंगी कि ''सासू माँ तो मेरी देह के लिबास जैसी थी जिसने मेरी देह को ढ़ककर मुझे शर्मिंदा होने से बचाये रखा न केवल दुनिया के सामने बल्कि मेरी खुद की नज़रों में भी।

जब स्कूल मेें थी तो एक लड़के ने कहा -मेरी गर्लफ्रेंन्ड बन जाओ

जब स्कूल मेें थी तो एक लड़के ने कहा -मेरी गर्लफ्रेंन्ड बन जाओ 

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कॉलेज गई तो कहा आईटम बन जाओ
यूनिवर्सिटी गई तो कहा पार्टटाईम पार्टनर बन जाओ 
किसी ने ये नही कहा कि में तेरा हमसफर, तुम मेरी दुल्हन बन जाओ

मेरे बच्चो की जन्नत उनका पहला मदरसा बन जाओ 
जिसने भी चाहा खिलौना बनाना चाहा
खेलने के लिए दिल बहलाने के लिए
कपड़े उतारने के लिए
हवस को संवारने के लिए
दिल लुभाने के लिए
में सोचती रह गई इसकी भी तो बहन होगी
हर अमल का दर अमल भी होता है
तो क्या भाई का बदला बहन देगी
भाई इज्जतों को उछालता रहेगा......
बहन बदला चुकाती रहेगी
लेकिन फिर ख्याल आया नही नही
इसके आने वाले वक्त में बेटी भी होगी
जिससे ये इतना प्यार और मुहब्बत करता होगा
वो मासूम जान सब कर्ज चुकायेगी😢😢
बाप की जवानी के गुनाह माफ करवायेगी
लड़कियों की इज्जत करो ऐसा ना हो कि कर्ज तुम्हारी बहन बेटी उतारे.

राशि अपनी मेड माला के इंतज़ार में बैठी थी

राशि अपनी मेड माला के इंतज़ार में बैठी थी। घर का सारा काम पड़ा हुआ था। जैसे ही माला आयी राशि ने गुस्से में कहा- माला क्या घड़ी देखनी नहीं आती तुम्हें। कल भी देर से आई तुम और आज भी।
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माला बोली- बीबी जी त्योहार का वक्त है ना। हर घर में काम बढ़ा हुआ है। इसलिए देर हो जा रही है।
ये सब तुम्हारे बहाने है, समझती हूँ मैं- राशि ने चिढ़कर कहा।

माला बिना कोई जवाब दिए काम में लग गयी।

काम खत्म करने के बाद माला ने कहा- बीबीजी आप हमें एक दिन पहले हमारा वेतन दे सकती है?

राशि ने पूछा- क्यों?
क्या करना है?

बिटिया को नए कपड़े दिलाने है। कह रही थी विद्यालय में उसकी सब सहेलियां त्योहार के कपड़े खरीद चुकी है- माला बोली।

राशि ने हैरानी से कहा- तेरी बेटी विद्यालय जाती है?

माला आँखों में चमक भरकर बोली- हाँ बीबीजी। बहुत होशियार है हमारी बिटिया। हमेशा अच्छे नम्बर लाती है। नाम रोशन करेगी हमारा।

कितने पैसे कमा लेती है तू जो बेटी के लिए इतने बड़े-बड़े सपने देख रही है- राशि ने वितृष्णा से कहा।

माला ने कहा- बीबीजी ज्यादा बड़ा नहीं लेकिन एक छोटा सा सपना देखा है कि हमारी बिटिया हमारी तरह अनपढ़ ना रहे और सम्मान के साथ जिये सर उठाकर।

राशि बोली- मेरी मान तो उसे भी अब अपने साथ काम में लगा। तेरी आमदनी भी बढ़ेगी और बोझ भी कम होगा।

बीबीजी हम भूखे सो सकते है लेकिन अपनी बिटिया को अपनी जैसी ज़िन्दगी नहीं दे सकते, ये कहते हुए माला चली गयी।

राशि का बेटा अनिकेत अपनी माँ और माला की सारी बातें सुन रहा था।
माला के जाते ही उसने तेज़ आवाज़ में गाने चला दिए।

गाने की आवाज़ सुनकर राशि अनिकेत के कमरे में पहुँची और बोली- पढ़ाई के वक्त गाने क्यों सुन रहे हो तुम?

दो दिन बाद आईएएस की परीक्षा है और तुम्हें मस्ती सूझ रही है?

अनिकेत ने कहा- मम्मा जैसे एक मेड की बेटी को हक़ नहीं कि वो पढ़-लिखकर सम्मान के साथ जिये, बड़े सपने देखे, वैसे ही एक क्लर्क के बेटे को भी ये अधिकार नहीं कि वो अधिकारी बनने के सपने देखे।

राशि बोली- तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या?
किसकी तुलना किससे कर रहे हो।

अनिकेत ने जवाब दिया- मैं एक माँ की तुलना दूसरी माँ से कर रहा हूँ मम्मा।
जिस तरह आप चाहती है मेरी ज़िंदगी मेरा ओहदा पापा से ऊँचा हो, वैसे ही माला चाची भी तो चाहती है उनकी बेटी की ज़िन्दगी उनसे अच्छी हो।
फिर वो गलत और आप सही क्यों?

अनिकेत की बात सुनकर राशि को अपनी गलती का अहसास हुआ।
उसने अनिकेत से कहा- बेटे तुमने मुझे मेरी गलती का अहसास दिलाया। मुझे गर्व है कि मैं तुम्हारी माँ हूँ।

कल माला के आते ही मैं उससे माफ़ी मांग लूँगी।

अनिकेत ने कहा- मम्मा अगर सचमुच आपको अपनी गलती का अहसास है तो आप माफ़ी माँगने के साथ-साथ माला चाची को सहयोग दीजिये उनकी बेटी के सपने पूरे करने में।

मैं ऐसा ही करूँगी बेटे, ये कहकर राशि चली गयी।

अगले दिन माला को आने में फिर देर हो गयी।

वो डरी हुई राशि के पास पहुँची और देर से आने की माफी मांगी।

राशि ने कहा- कोई बात नहीं माला। तुम जल्दी से काम कर लो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।

सारे काम खत्म करके जब माला राशि के पास पहुँची तो राशि ने उसे एक पैकेट देते हुए कहा- ये तुम्हारी बिटिया के लिए नए कपड़े है मेरी तरफ से और साथ में तुम्हारा पूरा वेतन भी।

माला हिचकिचाते हुए बोली- बीबीजी इसकी क्या जरूरत थी।

राशि ने कहा- जरूरत थी माला। इसी बहाने मैं अपना अपराध कम करना चाहती हूँ जो मैंने कल किया तुम्हारे सपनों का मज़ाक उड़ाकर।

मुझे क्षमा कर दो।
बिटिया की पढ़ाई में कमी मत करना। मैं तुम्हारी हरसंभव मदद करूँगी तुम्हारे इस सपने को पूरा करने में।
राशि की बात सुनकर माला की आँखों में आँसू आ गए।

उसने कहा- बीबीजी हमने कोई बहुत अच्छा काम किया होगा कि आप हमें मिली। हम हमेशा आपके आभारी रहेंगे।

तभी अनिकेत वहाँ आया और बोला- चाची आपको किसी का आभारी होने की जरूरत नहीं है।

हम सब एक-दूसरे पर एहसान नहीं कर रहे, बल्कि इंसान होने का अपना दायित्व निभा रहे हैं।

अनिकेत को ढ़ेर सारा आशीष देकर माला चली गयी।

👏और इधर अनिकेत राशि के गले लगते हुए कह रहा था- मम्मा मुझे गर्व है कि मैं आपका बेटा हूँ।👏

फैमिली कोर्ट

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फैमिली कोर्ट
.
‘‘नमस्कार जज अंकल,’’ मैं ट्रेन में सीट पर सामान रख कर बैठा ही था कि सामने बैठी एक खूबसूरत व संभ्रांत घर की लगने वाली युवती ने मुझे प्यार व अपनत्व वाली आवाज में अभिवादन किया.

मुझे आश्चर्य हुआ कि यह युवती कौन है और यह मुझे कैसे जानती है कि मैं जज हूं ? और साथ में अंकल का भी संबोधन ? हो सकता है कि यह मेरे किसी भूतपूर्व कलीग जज की बेटी हो या फिर उस की नजदीकी रिश्तेदार हो.
मैं यह सब सोच ही रहा था कि उस ने मुझे प्रश्नवाचक मुद्रा में देख कर मुसकरा कर कहा, ‘‘जज अंकल, आप मुझे नहीं पहचानेंगे. मैं जब आप के कोर्ट में आई थी तब मैं सिर्फ 10 वर्ष की थी. उस समय आप सूर्यपुर में जिला फैमिली कोर्ट में जज थे।

.’’ अरे यह तो बहुत वर्षों पुरानी बात है और मुझे रिटायर हुए भी 5 साल हो गए. किसी को भी इतनी पुरानी बातें कहां से याद आएंगी? और मेरी कोर्ट में तो दिन में सैकड़ों लोग आते थे.

सब के बारे में कैसे कोई याद रख पाएगा? सोचते हुए मैं उसे अभी तक प्रश्नवाचक दृष्टि से देख रहा था और वह शायद समझ गई थी कि मैं उसे अभी तक पहचान नहीं पाया हूं.

‘‘अंकल मैं अल्हड़ी, उस समय आप के कोर्ट में मेरे मम्मी पापा के तलाक का केस चल रहा था और उस केस की कार्यवाही के दौरान आप ने एक दिन मुझ से पूछा था कि बेटा, तुम्हें किस के साथ रहना है? उस ने मुझे याद कराया. वह आगे कुछ बोलती कि मेरे मुंह से अचानक निकला,

‘‘अरे अल्हड़ी.’’ इस लड़की व इस के मम्मी पापा केस को मैं कैसे भूल सकता हूं ? रोज के झगड़े निबटाते निबटाते मुझे कई बार उकताहट भी होती थी. पर मेरी फैमिली कोर्ट में ड्यूटी के दौरान एक केस ऐसा भी आया था जिस के परिणाम से मैं बहुत खुश था.

इस केस का अंत आश्चर्यजनक व सुखद था. मैं तो क्या इस केस से संबंधित जो भी था, वह इस छोटी लड़की को कैसे भूल सकता है?

‘‘अरे बेटा अल्हड़ी तुम कैसी हो? तुम्हारे मम्मी पापा कैसे हैं ?
’’ मुझे सच में उस से मिल कर खुशी हुई. और ज्यादा खुशी तो उसे खुश देख कर हुई. मैं सच में जानना चाहता था कि क्या उस के मम्मी पापा अभी भी साथ रह रहे हैं?

‘‘अंकल, मैं आप के कारण बहुत खुश हूं. मेरे मम्मीपापा तो एक दूसरे के बिना रह ही नहीं पाते. मैं इस साल सिविल सर्विस में चयनित हुई हूं और प्रशिक्षण के लिए शिमला जा रही हूं. आप उस दिन व्यक्तिगत रुचि नहीं लेते तो शायद मैं भी सिंगल पेरैंट की प्रौब्लमैटिक चाइल्ड होती,’’ उस ने मुझ से भावुक हो कर कहा.

'‘नहीं बेटा, अगर उस दिन तुम कोर्ट में समझदार बच्ची की तरह नहीं बोलतीं, तो शायद तुम्हारे मातापिता जिंदगी की सचाई समझ नहीं पाते और अपने व्यक्तिगत अहम से जिंदगी भर का नुकसान कर लेते. बेटा, तुम सच में बहुत समझदार लड़की हो,’’ मैं ने अपनत्व से कहा.
मैं उस समय सूर्यपुर की फैमिली कोर्ट में जज था और उस दिन अल्हड़ी के मातापिता के तलाक का केस था. पतिपत्नी को मैं ने उन की बच्ची सहित बुलाया था.दोनों ने आते ही शुरू से ही तलाक की मांग जोरदार तरीके से की. पर यह एक जिंदगी भर का फैसला था जिस से कई सारी जिंदगियां जुड़ी हुई थीं, इसलिए मैं ने उन्हें

1 महीने का विचारने का समय दिया गया था. पर वे लोग तलाक पर अडिग थे. अब प्रश्न केवल यह था कि बच्ची किस के साथ रहेगी.
मैं हमेशा यह प्रश्न बच्चों पर ही छोड़ता था. अल्हड़ी 10 साल की बच्ची थी. देखने में सुंदर और साथ में बहुत ही मासूम. उस का चेहरा बता रहा था कि वह कोर्ट में आने से पहले वह बहुत रोई होगी. वह गवाह के कठघरे में आई तो मैं ने हमेशा की तरह उस से भी पूछा कि बेटा किस के साथ रहना चाहती हो?

सामान्यतया बच्चा जिस के करीब होता है उस के साथ रहने को कहता है, क्योंकि बच्चे को यह पता नहीं होता है कि वहाँ क्या हो रहा है.उस ने कुछ देर बाद बोलना शुरू किया,

‘‘मेरा जन्म इन्हीं से हो क्या यह मेरा फैसला था? यदि मेरे जन्म का फैसला मेरे हाथ में होता तो मैं शायद ही इन के द्वारा जन्म लेती. मेरे जन्म के लिए ये लोग साथ रह सकते थे, तो पालने के समय ये लोग किस अधिकार से अलग हो सकते हैं? जब मेरे जन्म का फैसला मेरे हाथ में नहीं था, तो पलने का फैसला मैं कैसे कर सकती हूं? जज अंकल, आप जो भी फैसला करें वह मुझे मंजूर है,’’ उस ने अपने आंसू रोकते हुए बेबसी से कहा.

एक छोटी सी बच्ची के मुंह से इतनी गंभीर बात सुन कर पूरे कोर्टरूम में सन्नाटा छा गया. शायद मुझे जिंदगी में पहली बार पिनड्रौप साइलैंस का मतलब समझ में आ रहा था.

अचानक कोर्टरूम में जोरजोर से हिचकहिचक कर रोने की आवाज सुनाई दी. अल्हड़ी के मातापिता दोनों जोरजोर से रो रहे थे. ‘‘मुझे तलाक नहीं चाहिए जज साहब. मेरा पति भले ही दारू पिए, मुझे मारे या फिर बाहर गुलछर्रे उड़ाए, मैं उस के साथ रहने चली जाऊंगी. मेरे जीवन या मेरी भावनाओं से ज्यादा मेरी बेटी की जिंदगी जरूरी है. उसे अपने मां और पिता दोनों की छत्रछाया की जरूरत है ,

" तलाक लेने पर अड़ने वाली उस की मां यामिनी बोली.

‘‘मुझे माफ कर दो यामिनी, मैं बच्ची की कसम खा कर कहता हूं अब मैं कभी दारू नहीं पिऊंगा,’’ हाथ जोड़ कर अपनी पत्नी से माफी मांगते हुए उस का पिता बोला.
हद से ज्यादा कू्रर दिखने वाला व्यक्ति आज जैसे दया का पात्र लग रहा था. ‘‘जज साहब, हम अपनी तलाक की अर्जी वापस लेते हैं,’’

दोनों ने हाथ जोड़ कर मुझ से कहा. ‘‘बहुत अच्छी बात है. बच्ची का सुखद भविष्य इसी में है. कोर्ट आशा रखती है कि आप लोग हमेशा साथ रहेंगे और एक दूसरे से अच्छा बरताव करेेंगे.
किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे रेल की पटरियों को जोड़ने वाले स्लीपर की तरह होते हैं,’’

मैं ने खुशी जताते हुए मुकदमे के अंत पर मुहर लगाई. सच बताऊं मेरी जिंदगी में इतना दिलचस्प केस कोई और नहीं था. उस दिन सच में मेरी कोर्ट फैमिली कोर्ट लग रही थी, जहां एक फैमिली का मिलन हुआ था।


❄️ #माँ# ❄️

❄️ #माँ# ❄️

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एक माँ चटाई पर लेटी आराम से सो रही थी,
मीठे सपनों से अपने मन को भिगो रही थी...

तभी उसका बच्चा यूँ ही घूमते हुये समीप आया,
माँ के तन को छू कर हल्के हल्के से हिलाया...

माँ अलसायी सी चटाई से बस थोड़ा उठी ही थी,
तभी उस नन्हें ने हलवा खाने की जिद कर दी...

माँ ने उसे पुचकारा और अपनी गोदी में ले लिया,
फिर पास ही रखे ईंटों के चूल्हे का रुख किया...

फिर उसने चूल्हे पर एक छोटी सी कढ़ाई रख दी,
और आग जला कर कुछ देर मुन्ने को ताकती रही...

फिर बोली बेटा जब तक उबल रहा है ये पानी,
क्या सुनोगे तब तक कोई परियों वाली कहानी...

मुन्ने की आँखें अचानक खुशी से थी खिल गयी,
जैसे उसको कोई मुँह माँगी मुराद ही मिल गयी...

माँ उबलते हुये पानी में कल्छी ही चलती रही,
परियों का कोई किस्सा मुन्ने को सुनाती रही...

फिर वो बच्चा उन परियों में ही जैसे खो गया,
चटाई पर बैठे बैठे ही लेटा और फिर वहीं सो गया...

माँ ने उसे गोद में ले लिया और धीरे से मुस्कायी,
फिर न जाने क्यूँ उसकी आँख भर आयी...

जैसा दिख रहा था वहाँ पर, सब वैसा नहीं था,
घर में रोटी की खातिर एक पैसा भी नहीं था...

राशन के डिब्बों में तो बस सन्नाटा पसरा था,
कुछ बनाने के लिए घर में कहाँ कुछ धरा था...

न जाने कब से घर में चूल्हा ही नहीं जला था,
चूल्हा भी तो माँ के आँसुओं से ही बुझा था...

फिर मुन्ने को वो बेचारी हलवा कहाँ से खिलाती,
अपने जिगर के टुकड़े को रोता भी कैसे देख पाती...

अपनी मजबूरी उस नन्हें मन को माँ कैसे समझाती,
या फिर फालतू में ही मुन्ने पर क्यों झुँझलाती...?

हलवे की बात वो कहानी में टालती रही,
जब तक वो सोया नहीं बस पानी उबालती रही...

#ऐसी_होती_है_____माँ

एक_ख़त_पति_के_नाम

एक_ख़त_पति_के_नाम
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आज सुबह सो के उठी रोज़ की तरह 5:30 am बहुत ठंड थी, रज़ाई से निकलने की हिम्मत नहीं हुई. इनका टिफिन नाश्‍ता सब बनाना था| गीज़र, मोटर चलाना था, सुबह उठे तो सबको गर्म पानी चाहिए . लेटे-लेटे सोंच रही थी कि क्या बना दूं कि जल्दी बन जाये . 6:30 बजे मम्मी पापा को भी चाय चाहिये . फिर 5:45 का दूसरा अलार्म बजा और हड़बड़ा कर उठे.और एक ना खत्म होने वाला दिन शुरू हो गया मम्मी पापा को चाय देकर रवि को उठाया. टिफिन लगाया , नाश्ता रखा, कपड़े निकाले.बस बैठी ही थी रवि की आवाज़ आयी "तनु , मेरी ब्लू शर्ट निकालो आज".मैंने कहा " वो तो धो दी सूखी नहीं है".

हस्बैंड- क्या मतलब सूखी नहीं है..? चार दिन पहले दी थी.

मैं - "3 दिन से धूप नहीं निकली " .

हस्बैंड- शुरू बहाने बाजी, मेरे जाने के बाद आराम ही करती होगी मोबाईल पे लग जाओगी और काम क्या है तुम्हारे पास .

मेरी आँखों में आँसू भर चुके थे|ऐसा लग रहा था कि कोई मालिक अपने नौकर को डांट रहा हो | ये भी लग रहा था मम्मी-पापा भी सुन रहे होंगे| रवि ने गुस्से में. बैग लिया और चले गए| तभी फोन का रिमाइंडर बजा "spark day" , ये हमारा शुरू किया हुआ डे है.

हम पहली बार मिले थे आज के दिन . हमारी अरेंज मैरिज है आज के दिन रवि और मैंने एक दूसरे को पहली बार देखा था .आँखें भर आयी मेरी ये सोंच के कि क्या अाज इस दिन का कोई मतलब रह गया है मेरे लिए ....

मैंने एक कागज़ कागज़ उठाया और जाने क्या सोंच कर लिखने बैठ गई.......

डियर रवि, अभी अभी याद आया कि आज स्पार्क डे है और तुम्हें तो याद भी नहीं होगा. मुझे याद है पहली बार में हमने कितनी अच्छे से सेलिब्रेट किया था और सोचा था हमेशा मनायेंगे. तुम्हें याद है जब पहली बार तुम आए थे मुझे देखने, और देखते रह गए थे कुछ पूछा भी नहीं था बस पूछा "आपको मैं पसंद हूँ...?"'. फिर हमारी सगाई हो गई मेरी ज़िन्दगी के सबसे खूबसूरत दिन थे, हम सपने सजाते थे कितने कसमे वादे करते, एक दूसरे का ध्यान रखते.साथ ना होकर भी साथ थे हम.फिर हमारी शादी हुई उस रात तुमने मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर बोला था तुमने "हमेशा मेरा साथ दोगे कभी मेरे माँ पापा की कमी नहीं मह्सूस होने दोगे" मुझे लगा था अब कुछ और नहीं चाहिए ज़िन्दगी से...

लेकिन जब जब मुझे अपने पति की ज़रूरत पड़ी तुम नहीं थे. मैंने अपने पहनावे से लेकर सर नेम बदला. अपनी दिनचर्या से लेकर ज़रूरतें बदली.अपने सपने से लेकर रिश्ते बदले. लेकिन तुम, जब मेरे पापा की तबियत खराब थी, तुम्हारे भाई की शादी थी, मैं नहीं जा पायी.जब मेरे माँ पापा की शादी की सालगिरह थी,तुम्हारी माँ को बुख़ार था मैं नहीं गई.जब मैं जॉब करना चाहती थी, तुम्हें बच्चे की जल्दी थी अब मैं अपना बच्चा नहीं छोड़ सकती तो तुम मुझे आराम करने का ताना देते हो.तुम्हारे पास तुम्हारे माँ पापा, भाई परिवार है मेरे पास तो सिर्फ तुम हो .तुम्‍हारे पास तुम्हारी जॉब, दोस्त, आज़ादी,सब है.मेरे पास तो सिर्फ तुम हो जिसे शायद मेरी ज़रूरत ही नहीं.मुझे कभी ऐसी ज़िन्दगी नहीं चाहिये थी क्या तुम्हें चाहिए थी...? मुझे जानना है तुम्हारी ज़िंदगी में मेरे मायने...? मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए मुझे सिर्फ अपना पति चाहिए | मैं सब करूंगी ख़ुशी ख़ुशी लेकिन नौकरानी नहीं जीवन साथी की तरह।

.....तुम्हारी_तनु

और अब मुझे इंतज़ार है शाम का कि रवि आएँ और मैं उन्हें ये लेटर दे पाऊँ।

मै #तलाश रहा हूँ,

मै #तलाश रहा हूँ,
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..............एक #चरित्रहीन औरत !!
पर मै हैरान हूं ,
........ वो मुझे आज तक मिली नही,
......... ऐसा भी नहीं है कि,
मैने उसे सही से तलाशा नही,
मै गया था...........
मै उन तमाम औरतों के पास भी गया,
जो देह को लेकर बाजार सजाती थी,
जो क्लबो मे अर्धनग्न हो नाचती गाती थी,
जो रोज वासना के नये नये किरदार निभाती थी,
पति से आंखे चुरा गैर मर्द की बाहों मे प्रेम ढूढंती थी,
......................मैने वो तमाम औरते देखी !!
.........पर मै हैरान था,
उनमें कही भी वो चरित्रहीन औरत नही थी,
पर वहां हर औरत के पीछे.......,,
एक पुरुष जरूर छिपा था
कायर, कामुक, वासना की कीचड मे,
...................सर से पांव तक सना..!!
शायद यही था...."वो" ,
जिसने सबसे पहले
औरत को "चरित्रहीन" कहा !!
क्योकि अकेले औरत ही चरित्रहीन नही होती

*"मेनटेन नहीं रह पाती हैं"*

*"मेनटेन नहीं रह पाती हैं"*
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पूरा घर समेटते समेटते ,
खुद बिखर सी जाती हैं
हा ,अब वो औरतें मेन्टेन नहीं रह पाती हैं,
आधी रात में भी ,
दूध की बोतलों से बतियाती हैं,
एक आवाज पर,
गहरी नींद छोड़ आती हैं,
टिफिन के पराठों संग,
स्कूल पहुँच जाती हैं,
हा ,अब वो औरतें मेंटेन नहीं रह पाती हैं।
कमर दर्द, पीठ दर्द,
हस के टाल जाती हैं,
जूड़े में उलझी हुई,
लटों को छुपाती हैं
हल्दी लगे हाथों को,
साड़ी में छुपाती हैं
हा, अब वो औरतें मेंटेन नहीं रह पाती हैं
सुबह शाम रोटियों में,
प्यार बेल जाती हैं,
बारिश में भीग ,
सूखे कपड़ो को बचाती हैं
अपनी फटी एड़ियों पे,
साड़ी लटकाती हैं,
हा ,अब वो औरतें, मेंटेन नहीं रह पाती हैं।
अपनी ख्वाइशों से,
ख्वाब में ही मिल आती हैं
हर किरदार,में वो,
फिट बैठ जाती हैं
कभी प्रिंसिपल,
कभी बहु बन जाती हैं
हा अब वो औरतें मेंटेन नहीं रह पाती हैं।

#गुनहगार_कौन ...??

#गुनहगार_कौन ...??
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भिखारिन - “बच्चा भूखा है, कुछ दे दे सेठ!”
गोद में बच्चे को उठाए एक जवान औरत
हाथ फैला कर भीख माँग रही थी।
“इस का बाप कौन है? अगर पाल नहीं सकते
तो पैदा क्यों करते हो?” सेठ झुंझला कर
बोला।
औरत चुप रही। सेठ ने उसे सिर से पाँव तक
देखा। उसके वस्त्र मैले तथा फटे हुए थे,
लेकिन बदन सुंदर व आकर्षक था।
वह बोला, “मेरे गोदाम में काम करोगी?
खाने को भी मिलेगा और पैसे भी।”
भिखारिन सेठ को देखती रही, मगर
बोली कुछ नहीं।
“बोल, बहुत से पैसे मिलेंगे।”
“सेठ तेरा नाम क्या है?”
“नाम !! मेरे नाम से तुझे क्या लेना-देना?”
“जब दूसरे बच्चे के लिए भीख
माँगूंगी तो लोग
उसके बाप का नाम पूछेंगे
तो क्या बताऊँगी ?”
अब सेठ चुप था...!

#भाभी_माँ..

#भाभी_माँ..
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मोनू को देखने और उसके परिवार से मिलने लड़की वाले होटल में आने वाले थे मोनू ने फोनपर भैया और मंझली भाभी को अच्छे से सारी तैयारी कर लेने के लिए बोला था कडी मेहनत करने के बाद मोनू दिल्ली पुलिस में एक साल से नौकरी कर रहा था मगर उसके फोन से मंझली भाभी और भैया बड़े चिंता में थे क्योंकि भाभी के पास एक अच्छी सी साड़ी और भैया के पास अच्छा से कुर्ता तक न था ..7 साल पहले मंझली भाभी की शादी बेरोजगार भैया से हुई थी।

बड़े भैया को डाक्टरी पढ़ाने में पिताजी की छोटी से जमा पूंजी भी ख़त्म हो गयी थी और डाक्टर बनने के बाद बड़े भैया एक डाक्टरानी से खुद शादी कर लिए बड़ी भाभी ने आर्थिक रूप से कमजोर परिवार देख सबसे उनका रिश्ता तुडवा अपने संग विदेश ले गई फिर मंझले भैया किसी तरह 10वींपास कर शहर मे एक pvt कम्पनी मे नौकरी करली मां बाबूजी को गांव बराबर पैसा भेजते ओर शहर मे कम्पनी से मिले क्वार्टर मे छोटे भाई मोनू को ले आये असल मे उसे पढाकर एक काबिल इंसान बनाने की जिम्मेदारी मंझले भैया भाभी ने ली थी मोनू को शुरू से वो अपना बेटा मानते थे शहर मे गृहस्थी की गाड़ी बड़ी मुश्किल से चल रही थी।

उनका 3 साल का एक छोटा सा बच्चा भी था फिरभी मंझले भैया ने कभी भी उफ्फ तक नहीं की मंझली भाभी ने तो जैसे अपने शौक को बलिदान कर दिया था मोनू की पढ़ाई की खातिर घूमना फिरना और जेवर सोना तो दूर की बात कभी एक नई साड़ी तक कि जिद न की।पढ़ने के लिए घर मे जो एक ही कमरा था वो भी दे देतीं और बच्चे से पढ़ाई में कोई बाधा न हो बच्चे को लेकर पड़ोस में चली जाती।खुद और भैया तो कम दूध वाली फीकी चाय पीते ही अपने बच्चे को भी थोड़ा दूध कम देतीं लेकिन मोनू को खाने पीने में कोई कमी न होने देतीं मोनू के बहुत अच्छे रिजल्ट के बाद एक सप्ताह के भीतर ही उसे training के लिए 50 हजार रुपये की जरूरत थी कोई उपाय न सूझ रहा था।

बड़े भैयाको फ़ोन लगाया गया पर पैसे की कोई कमी ना होने के बाद भी बडी भाभी ने पैसे की कमी का रोना शुरू कर दिया तब उसी वक़्त मंझली भाभी ने अपना मंगलसूत्र और शरीर के सारे गहने उतारकर भैया के हाथ में रख दीं और कसम दे दी थी उन्हें आखिर बेटे जैसे देवर की जिंदगी का सवाल था आखिर संघर्ष काम आया मोनू का slc पुलिस विभाग मे हो गया सालभर से वही रहकर नौकरी कर रहा था खत मे बताया था अपनी पसंद की लडकी के बारे मे फोटो भेजी थी कहा था।

आपको और भैया की पसंद पर ही शादी होगी दोनों ने हां कर दी थी मगर ऐसे हालत मे लडकी देखनेकैसे जाए तभी दरवाजे पर मोनू को देखा सबसे पहले भैया के पैर छुए ओर एक पैकेट मे कोट पेंट देते बोला-जरा पहनकर तो बताइए फिर मुन्ना को नया सूट देकर बोला-अबसे तुम मेरे साथ रहोगे तुमहारी पढाई की पूरी जिम्मेदारी मेरी अंत मे मंझली भाभी को गिरवी पडे छुडाए गहने ओर नए कुछ गहनों सहित एक खूबसूरत साडी देते बोला-सब देवी मां की पूजा करते है मगर उन्हें देखने का सौभाग्य सिर्फ मुझे मिला भाभी मां ..भैया भाभी सबकी आँखों मे खुशी के आँसू थे ...

पीरियड्स , पैड और पट्टी (

पीरियड्स , पैड और पट्टी ( अनकही व्यथा ) 
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आज सुबह दिमाग में आया था कि पीरियड्स को ले के थोड़ी बात की जाए, कोशिश भी की, लोगों को भी कहा और जैसा कि आपने सोशल मीडिया पर देखा ही होगा कि पैड के साथ फ़ोटो भी डाली। उस वक़्त मैं सोच रही थी कि एक पैड अगर अपनी बात रख पाता तो क्या कहता।
मेरे दिमाग मे आया कि पैड भी तो खून रोकने के ही काम आता है, और पट्टियां भी। फ़िर हम दोनों में भेदभाव क्यों कर रहे है?

एक लड़का हाथ में चोट लगने की वजह से रुई की पट्टी लगाए घूम रहा था, उसपर खून के कुछ धब्बे भी दिखाई दे रहे थे। और उसके साथ चल रही लड़की काले नीले कपड़े पहने बार बार पीछे मुड़ कर देख रही थी कि कहीं खून का कोई धब्बा न नज़र आ जाये।

पट्टी गर्व से इतरा रहा था और पैड घुटन से, शर्म से छुपा जा रहा था।

सामने मंदिर आया तो पैड रुक गया। पट्टी ने पूछा - "क्या हुआ?" पैड ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया - "सिर्फ़ कुछ ही खून अंदर जा सकते हैं!"

जहाँ पट्टी सबके सामने ईतरा कर अपने घाव दिखा रहा था, वहीं पैड चुप था। खून से लथपथ और दर्द से लैस पैड समाज में स्वीकार्य न होने के कारण मूक रहा।
पैड को बुरा लगता था कि एक लड़की दुकान पर उसे खरीदने आती और उसे काली कोठरी जैसे प्लास्टिक में भर के भेजा जाता, और वहीं पट्टी मुस्कुराता हुआ स्वतंत्र झूमता निकल जाता।

पट्टी जब घर जाता तो लोग उसकी सेवा में लग जाते, उस दिन रोज़ से ज़्यादा ख़याल रखा जाता, पर जाने क्यों पैड को ये आज़ादी नहीं थी। घर में पैड न किचन में जाता, ना ही पिताजी के बिस्तर पर बैठता। पट्टी को भरपूर खाने को मिलता और पैड को अचार और नमक छूने की आज़ादी न होती।
गाँव में तो ये पैड रुई का भी नहीं होता है। पुराने फटे कपड़ों को तह कर के पीरियड्स में काम में लाया जाता है। सबके पास व्हिस्पर अल्ट्रा खरीदने को पैसे थोड़ी न हैं। पट्टी 10 की मिल जाती है और पैड 80 का।
पट्टी बड़ा ही फेमस है। उसे सब जानते हैं, सबने देखा है। लेकिन पैड किसी एजेंट की तरह है जिसे न किसी ने आते देखा न जाते। 5 दिन उस लड़की ने खून बहाया, पैड ने रोका लेकिन उसके साथ चलते दोस्तोँ को ख़बर नहीं, घर में भाई को पता नहीं।

पट्टी कभी कभी ही काम आता है, पर पैड हर महीने 12 बार। आश्चर्यचकित होती हूँ कि फिर भी पैड का ज़िक्र नहीं, किसी को उसकी फ़िक्र नहीं।
सरकार ने पैड को luxurious आइटम में डाल दिया। पैड हँसा था खुद को देख कर। वो ज़रूरत है हर 11 से 45 उम्र की महिला की। हंसता है पैड कि कैसा समाज है जिसको लड़की के स्कर्ट पर खून का धब्बा भी नहीं देखना है और उसको रोकने के लिए पैड की व्यवस्था भी नहीं करनी है। पैड खुद को महसूस करता है महंगा और शर्मसार।
पट्टी को मतलब नहीं पैड क्या झेल रहा है। आधी पट्टियों ने तो पैड देखा भी नहीं है।

बहनो!..

बहनो!..
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40के बाद..
ज़िंदगी सही अर्थो में होती
है आबाद....
न तो युवतियों की तरह छेड़ते हैं शोहदे,
न दादियों की तरह मिलते हैं बडे औहदे..
जिधर भी मन हो फिट हो जाते हैं,
अपने जुमले सब जगह हिट हो जाते हैं..
नहीं देता अब घर में कोई ताना,
बुन लिया है हमने अपना ताना बाना..
मायके ससुराल का भी कम हो गया है ढकोसला,
अपना खुद का बन चुका है एक घोंसला..
अब न तो पति ही ताव दिखाते हैं,
न बच्चे ही मम्मियाते हैं..
अपनी मर्जी से दोस्त बनाते हैं,
न तो हम रूठते हैं न किसी को मनाते हैं..
थोडा डाई लगाने में झुंझलाना क्या,
उम्र के सच को झुठलाना क्या..
लाइफ बिगिन्स विद40 अन्ग्रेजी वाले कहते हैं,
हम तो इसे आबाद होना कहते हैं... 😊

आप माँ है

आप माँ है
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आपका बच्चा 3 साल या उससे अधिक है? 
तो जाइए और बात कीजिये, 
पहल कीजिये, समझाइये, सिखाइये .....
न समझे तो रट्टा लगवाईए, याद करवाइये
........
पुट्ठों (buttocks)/ छाती/मुंह/होंठ/जननांग/टांगो के बीच/
छुए न कोई,.....
न खेल में ,न मजाक में ,न घर ,न बाहर
न पापा, न दादा, न चाचा, न मामा, न बुआ, न मौसी
कोई नही, ......
प्यार करना अलग है लेकिन अगर इनमें से किसी का *भी छूना तुम्हे असहज/अच्छा ना लगे* लगे तो चीखो, चिल्लाओ, मुझे बताओ, हमेशा....
जिस तरह मैं तुम्हे शरीर पर हर जगह छू सकती हूँ उस तरह बाकी कोई भी नही

....कोई कुछ खिलाने, घुमाने को ले जाने को कहे, मना करो, पार्क में जाते-आते समय चौकन्ने रहो, किसी की सुनना मत, मानना मत, तुम हर जगह मुझे नही ले जा सकते लेकिन मेरी बातें ले जा सकते हो मेरे बच्चे
.....कोई धमकी दे, डराये, चुप रहने को कहे तो हमेशा मुझे बताओ, मैं सब कुछ सॉल्व कर सकती हूँ, माँ तुम्हारी सुपर मॉम है, माँ के पास सब सोल्युशन है....

.....जियो, खेलो, कूदो, खुश रहो मेरे बच्चे,
ये सब याद रखो, दोस्तों को बताओ, जरूरी है इस वक्त तुम्हारा पहले से सम्भल जाना ताकि हम सब इस भयावह समाज में तुम्हारे असुरक्षित रहने के गिल्ट से बचें रह सके।

पहल करिये देर होने से पहले और कोई नया ryan school जैसा हादसा न होवेंI

#मनुष्य_के_मूल_संस्कार।

लघुकथा : #मनुष्य_के_मूल_संस्कार
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एक परिवार मे तीन भाई और एक बहन थी...बड़ा और छोटा बेटा पढ़ने मे बहुत तेज थे। उनके माँ बाप तो उन चारो से बेहद प्यार करते थे , मगर मझले बेटे से थोड़ा परेशान भी थे। 
बड़ा बेटा पढ़ लिखकर डाक्टर बन गया। 
छोटा भी पढ लिखकर इंजीनियर बन गया। 
मगर मझला बिलकुल अनपढ बनकर ही रह गया।
सबसे बड़े बेटे और सबसे छोटी बेटे की शादी भी हो गई । और बहन ने Love मैरीज कर ली।
बहन की शादी भी अच्छे घराने मे हुई थी।
आखीर उसके दो भाई डाक्टर इंजीनियर जो थे।

लेकिन मझले को कोई लड़की नहीं मिल रही थी। और उम्र भी अधिक होने से माँबापभी परेशान रहते थे ।

बहन जब भी मायके आती सबसे पहले छोटे भाई और बड़े भाई से मिलती।
मगर मझले से कम ही मिलती थी। क्योंकि वह न तो कुछ दे सकता था और न ही वह जल्दी घर पे मिलता था।
वैसे वह दिहाडी मजदूरी करता था। पढ़ नहीं सका तो...अच्छी नौकरी कौन देता।

और एक दिन मझले की शादी करे बिना पिताजी गुजर गये ।
माँ ने सोचा बच्चों में कहीं अब बँटवारे की बात न निकले इसलिए जल्दी में पास ही गाँव से एक सीधी साधी लड़की से मझले की शादी करवा दी।

शादी होते ही न जाने क्या हुआ की मझला बड़े लगन से काम करने लगा ।
दोस्तों ने कहा... ए चन्दू आज शाम को अड्डे पे आना।
चंदू - नहीं अब कभी अड्डे पर नहीं जाऊंगा
दोस्त - अरे तू शादी के बाद तो जैसे बीबी का गुलाम ही हो गया?
चंदू - अरे ऐसी बात नहीं । कल मैं अकेला एक पेट था तो अपने हिस्से की रोटी कमा लेता था। आज दो पेट है , और कल चार पेट हो सकते हैं।
घरवाले मुझे नालायक कहते रहते हैं, मेरे लिए कहते हैं चलता था।
मगर मेरी पत्नी को कभी नालायक कहे तो वो मेरी मर्दानगी पर एक भद्दी गाली है।

क्योंकि एक पत्नी के लिए उसका पति उसकी इज्जत और उम्मीद होता है।
उसके घरवालो ने भी तो मुझपर भरोसा करके ही तो अपनी बेटी दी होगी...फिर उनका भरोसा कैसे तोड़ सकता हूँ ।

दोस्तो, कालेज मे केवल डिग्री मिलती है लेकिन ऐसे संस्कार तो मा बाप से ही मिलते हैं जो मझले बेटे में थे।

इधर घरपर बड़ा और छोटा भाई और उनकी पत्नी मिलकर आपस मे फैसला करते हैं की...जायदाद का बंटवारा हो जाये क्योंकि हम दोनों लाखों कमाते है मगर मझला ना के बराबर कमाता है।
लेकिन मां मन-ही-मन मझले बेटे से बहुत प्यार करती थी ,और उसकी बहुत देखभाल भी करती थी इसलिए वह बंटवारा नहीं चाहती थी।
उसने बंटवारे के लिए दोनों बेटों को मना भी किया।

लेकिन मां के लाख मना करने पर भी...बंटवारे की तारीख तय होती है।
बहन भी आ जाती है मगर चंदू है की काम पे जाने के बाहर आता है। उसके दोनों भाई उसको पकड़कर भीतर लाकर बोलते हैं की आज तो रूकना ही पड़ेगा ? आज बंटवारा कर ही लेते हैं । ओर वकील भी कहता है सबको साईन करना पड़ता है।

चंदू - ठीक है तुम लोग बंटवारा करो मेरे हिस्से मे जो समझ पडे दे देना। मैं शाम को आकर अपना बड़ा सा अगूंठा चिपका दूंगा पेपर पर।

बहन- अरे बेवकूफ ...तू गंवार का गंवार ही रहेगा।
तेरी किस्मत अच्छी है की तुम्हे इतने अच्छे भाई मिलें हैं।

मां- अरे चंदू आज रूक जा।
बंटवारे में कुल बीस वीघा जमीन मे दोनों भाई दस दस वीघा जमीन रख लेते हैं ।
और चंदू को पुस्तैनी पुराना घर छोड़ देते है ।
तभी चंदू जोर से चिल्लाता है।
अरे???? फिर हमारी छुटकी का हिस्सा कौन सा है?
दोनों भाई हंसकर बोलते हैं
अरे मूर्ख...बंटवारा भाईयो मे होता है और बहनों के हिस्से मे सिर्फ उसका मायका ही होता है।

चंदू - ओह... शायद पढ़ा लिखा न होना भी मूर्खता ही है।
ठीक है आप दोनों ऐसा करो-
मेरे हिस्से की वसीएत मेरी बहन छुटकी के नाम कर दो।
दोनों भाई चकीत होकर बोलते हैं ।
और तू?
चंदू मां की और देखकर मुस्कुरा के बोलता है

मेरे हिस्से में माँ है न......

फिर अपनी पत्नी की ओर देखकर बोलता है..मुस्कुराते हुए सुनो ....क्या मैंने गलत कहा?

नहीं जी, अपनी सास से लिपटकर कहती है इससे बड़ी दौलत क्या होगी मेरे लिए की मुझे माँ जैसी सासु मिली
बस ये ही शब्द थे जो बँटवारे को सन्नाटे मे बदल गये ।
बहन दौड़कर अपने गंवार भैया से गले लगकर रोते हुए कहती है की..मांफ कर दो भैया मुझे क्योंकि मैं समझ न सकी आपको।

चंदू - इस घर मे तेरा भी उतना ही अधिकार है जीतना हम सभी का।

मेरे लिए तुम सब बहुत अजीज हो चाहे पास रहो या दूर।
माँ का चुनाव इसलिए किया ताकी तुम सब हमेशा मुझे याद आओ।
क्योंकि ये वही कोख है जंहा हमने वारी वारी 9 - 9 महीने गुजारे। मां के साथ साथ तुम्हारी यादों को भी मैं रख रहा हूँ।
दोनों भाई दौड़कर मझले से गले मिलकर रोते रोते कहते हैं
आज तो तू सचमुच का बाबूजी लग रहा है। सबकी आखोँ में आंसू बह रहे थे।
सब ने बंटवारे का फैसला त्याग दिया और सब एक साथ ही रहने लगते है। 

बड़ा विचित्र है भारतीय नारी का प्रेम,

बड़ा विचित्र है भारतीय नारी का प्रेम,
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वह विदेशियों की तरह

चौबीसों घंटे नहीं करती....

आई लव यू -आई लव यू का उदघोष

बल्कि

गूँथ कर खिला देती हैं प्रेम

आटे की लोइयों में,

कभी कपड़ों में

नील की तरह छिड़क देती है प्यार

कभी खाने की मेज़ पर इंतज़ार करते हुए

स्नेह के दो बूँद आँखों से निकाल कर

परोस देती है खाली कटोरियों में,

कभी बुखार में

गीली पट्टियां बन कर

बिछ जाती है माथे पर

जानती है वो.....

कि मात्र क्षणिक उन्माद नहीं है प्रेम,

जो ज्वार की तरह चढ़े और भाटे के तरह उतर जाये...

जो पीछे छोड़ जाये रेत ही रेत,

और मरी हुई मछलियाँ,

हाँ उसका प्रेम

ठहरा है, फैला है..... अपनों के जीवन में

गंगा जमुना के दोआब-सा

जहाँ लहराती हैं.....

संस्कृति की फसलें..🌹🌹🌹🎻💐🌷🌿🍁

ससुराल भी कीमती होता है पर मायका आखिर मायका होता है।


ससुराल भी कीमती होता है पर मायका आखिर मायका होता है। 
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यहाँ मैं मैं होती हूँ, 
जिम्मेदारियों का किसे पता होता है। 
यहाँ पर जीती हूँ बचपन अपना 
अल्हङपन मेरा यहीं तो सदा होता है। 
मायका आखिर मायका होता है।। 

सरपट नहीं दौङती यहाँ मैं 
फुरसत का यहाँ समां होता है। 
बेबाक हंसी और नॉन स्टॉप बातें, 
बिस्तर पर खाना और बेहिसाब लाड। 
ये सब मायके में ही तो होता है।। 
मायका आखिर मायका होता है।। 

वो रोना माँ की गोद में 
वो उनकी आँखो में मेरे लिए परवाह। 
थकी हुई मेरी माँ करने नहीं देती मुझे कोई काम, 
ये हक भी तो सिर्फ यहाँ होता है। 
मायका आखिर मायका होता है।।

भाई से लड़ना और पापा पर बिगड़ना, दिल कितना miss करता है। 
कुछ पल ही सही - मैं बेफिक्र बेबाक होती हूँ 
मेरी मेहनत का स्वाद तारीफों में सुनायी पड़ता है। 
मायका आखिर मायका होता है।। 

मेरे शौंकों का ख्याल, साथ देना हर हाल 
माँ के चेहरे की थकान से जान पड़ता है। 
याद आती हो माँ तुम अकेलेपन में 
मन करता है ले आऊँ पापा को अपने पास मैं। 
भाई से लड़ना अच्छा था, जिन्दगी से लड़ना बहुत मुश्किल लगता है।। 
मायका आखिर मायका होता है।।

यहाँ हर याद को संजो कर रखा जाता है 
हमारे बचपन का चश्मा आज भी यहाँ इतराता है। 
पहले ग्लास तोड़ने का किस्सा खुशी से सुनाया जाता है। 
इन यादों में दिल डूब के खोता है ।। 
क्योंकि मायका आखिर मायका होता है।। 

आज भी दूध में वो स्वाद नहीं आता जो पापा बनाते थे, 
आलू के परांठे तो मैं भी बनाती हूँ पर माँ जैसे कभी बन नहीं पाते। 
उस खाने में उनका प्यार जो होता है।। 
मायका आखिर मायका होता है।।

आज मैं माँ भी हूँ, 
बिटिया को देख कर मेरा दिल हिलोरे लेता है। 
पर खुद माँ पापा की बेटी होने का सुख कुछ अलग ही होता है।। 
क्योंकि मायका आखिर मायका होता है।।

ये औरतें भी न!

शीर्षक: ये औरतें भी न!
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अरे यार! ये औरतें भी न, 
बड़ी बेवकूफ होती हैं।
दो मिनट की आरामदायक और 
बच्चों के पसंद की ज़ायकेदार मैगी को छोड़,
किचन में गर्मी में तप कर
हरी सब्ज़ियाँ बनाती फिरती हैं।
बच्चे मुँह बिचकाकर
नाराज़गी दिखलाते हैं सो अलग,
फिर भी बाज नहीं आती।

अरे यार! ये औरतें भी न,
बड़ी बेवकूफ होती हैं।
जब किसी बात पे दिल दुखे ,
तो घर मे अकेले में आँसुओं
की झड़ी लगा देगी।
लेकिन बाहर अपनी सहेलियों के
सामने तो ऐसे मुस्कुरायेगी,
जैसे उसके जितना
सुखी कोई नहीं।

अरे यार! ये औरतें भी न,
बड़ी बेवकूफ़ होती हैं।
जब कभी लड़ लेगी पति से,
तो सोच लेगी अब मुझे
तुमसे कोई मतलब नहीं।
लेकिन शाम में जब घर आने में
पति महाशय को देर हो जाये,
तो घड़ी पे टक-टकी
लगाए रहेगी।
और बच्चों से बोलेगी,
"फोन कर के पापा से पूछो
आये क्यों नहीं अभी तक?"

अरे यार! ये औरतें भी न,
बड़ी बेवकूफ होती हैं।
तिनका तिनका जोड़कर
अपने आशियाने को बनाती
और सजाती हैं,
चलती और ढलती रहती
है सबके अनुसार।
लेकिन कभी एक कदम भी
बढ़ा ले अपने अनुसार,
तो "यहाँ ऐसे नहीं चलेगा
जाओ अपने घर (मायका)
ये सब वहीं करना।"
सुन रो रोकर
सोचती रहती है,
अब मैं इस घर में नहीं रहूँगी।
रात भर आँसुओं से
तकिया गीला कर,
उल्लू की तरह
आँखें सूजा लेती हैं।
अगले दिन फिर से
सुबह उठकर
तैयार करने लगती है,
बच्चों की टिफिन और
सबके के लिए नाश्ता।
बदलने लगती है
ड्राइंग रूम के कुशन कवर,
और फिर से सींचने लगती है
अपने लगाए पौधों को।
सच में एकदम पागल है!
सोचती कुछ है और
करती कुछ!

अरे यार! ये औरतें भी न,
बड़ी बेवकूफ होती हैं...✍️✍️

यह सच है बदल गयी हूँ मैं ...


यह सच है बदल गयी हूँ मैं ...
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उम्र आने पर संवर गयी हूँ मैं ...
हाँ यह सच है ,
कुछ-एक सफ़ेद बालों की गरिमा से भर गयी हूँ...
एक औरत से माँ बन गयी हूँ मैं !...

सबको प्यार से संभाला अब तक, 
अपनी जरूरतों को प्यार से सहलाया आज ,
हाँ ,थोड़ी -थोड़ी सी बदल गयी हूँ मैं !

रिश्तों को निभाती हूँ ,
उससे जुड़े भार नहीं ढोती ,
कितने बोझ अपने कन्धों पर लेकर चलूँ , 
समझ में आ गयी है यह बात कि ,
आखिर औरत हूँ,धरती नहीं हूँ मैं !

आजकल दूसरों को एकदम से सलाह नहीं देती ,
अगर उसकी स्थिति मेरे समझ से बाहर हो 
अपने ज्ञान का प्रर्दशन करने से पहले, 
दूसरों को सलाह देने से पहले, खुद को टटोलने लगी हूँ मैं !

उनको इज़्ज़त देती हूँ, 
उनका पक्ष जानने की कोशिश करतीं हूँ,
सासु माँ को सास रहने देतीं हूँ ,
माँ समझकर अपनी अपेक्षाएं नहीं बढाती अब,
लगता है खुश रहने लगीं हूँ मैं !

उनके घर में गया मेरा 5 -10 रुपया शायद घर की जरुरत के दिए के लिए तेल बन जाये , इसलिए आजकल सब्जी वाले ,
ऑटो वाले से ,
काम वाली से बिन बात मोलभाव नहीं करती , 
शॉपिंग मॉल में लुटे पैसे का भाव समझ गयी हूँ मैं |

जानती हूँ खुद को सजाना ,संवारना जरुरी है पर खुद को सँवारने से पहले आत्मा पर पड़े मैल खुरचने लगीं हूँ मैं !
लगता है अब निखर गयीं हूँ मैं !

थक जाने पर शरारतें बच्चों की परेशां करतीं है ,
पर अब उनपर चिल्लाती नहीं ,
उन्हें समझने की कोशिश में लगीं हूँ मैं 
गीली मिट्टी सवांरने लगीं हूँ मैं !

बुजुर्गों के किस्सों मे उनके बचपन को जी लिया करतीं हूँ ,
अनेकों बार सुनी उनकी बातों पर आज उन्हें टोकती नहीं बस पहली बार सुना हो वैसे मज़े लेने लगीं हूँ मैं |

हरेक दिन को आखरी समझ कर जीने का तरीका सीख रहीं हूँ ,
अपने इस नए "मैं" से प्यार करने लगीं हूँ मैं !

वक़्त से पंख उधार लेकर तितलियों सी उड़ने लगी हूँ मैं, फिर भी पैरों के नीचे जमीन रखतीं हूँ ,

"खुद से दोस्ती करने लगी हूँ मैं !"

वक्त

वक्त
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चला चली की बेला नजदीक थी ।अस्सी साल के मौलाना साहब झिंगली खाट पर निश्चेत लेटे थे। ऐसा लग रहा था जैसे किसी कंकाल पर चादर डाल दी गयी हो ।सगे संबंधी उनके पास जुटे पल-पल मौत की प्रतीक्षा कर रहे थे। मौलाना साहब के चेहरे पर कोई उलझन लगातार जाला बुने जा रही है जो चेहरे पर चिपकी स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थी। देखने वाले समझ गये, मौलाना साहब जरूर किसी कश्मकश में है ....लेकिन क्या...? कोई समझ नहीं पा रहा था।
अचानक उन्होंने अपने पास सबसे छोटे पोते असलम को उंगली के इशारे से बुलाया।

" हरेराम पंडत"

"हरेराम पंडत" जिसने भी सुना उसके चेहरे पर अविश्वास की लकीरें खिंच गयीं।लगता है मौलाना साहब मरने से पहले सठिया गए हैं। कानाफूसी शुरू हो गयी।

"अंत समय दुश्मन की ख्वाहिश"

मौलाना साहब वक्त की नजाकत को देखते हुए मरियल ही सही किंतु दृढ़ आवाज में बोले-" बुलाकर लाओ पंडत को"
अब उनकी बात कौन टालता...

आधे घंटे बाद असलम पंडत को साइकिल के कैरियर पर बैठाये हुए हाजिर हुआ। मौलाना साहब के हमउम्र पंडत भी चलने फिरने से लाचार... किसी तरह उन्हे मौलाना के करीब कुर्सी पर बैठाया गया।

पंडित हरेराम को देखकर मौलाना साहब में जाने कहां से ताकत आ गई कि वह दीवार का सहारा लेकर बैठने लगे मगर ताब इतनी भी न थी लिहाजा लुढ़क गये। घरवालों ने उन्हें सहारा देकर किसी तरह बैठाया ।मौलाना साहब ने एक नजर घूरकर पंडत को देखा फिर बोले -"अबे पंडत.... अब मय्यत में शामिल होने के लिए भी न्यौता देना पड़ेगा।"

आवाज पंडत के जिगर को चीरकर निकल गयी।पंडत को महसूस हुआ गले में जैसे कुछ अटक - सा गया है। बड़ी मुश्किल से कह पाए -"कैसे हो शफीक मियाँ?"

"अब तो चला चली की बेला है ।" मौलाना एक खोखली हंसी हंसे फिर आगे जोड़ा- "मगर कुछ पुराना हिसाब था जिसे चुकता किए बिना.... मरा भी तो नहीं जाता।"

"कौन सा हिसाब....हमारी कोई देनदारी नहीं ?"

"देनदारी कौन कहता है...?बस इतना जानना था ...क्या हमारे रिश्ते इतने कमजोर थे पंडत ?जो गांव के मंदिर- मस्जिद विवाद मे ढह गये।"

शब्दों की चोट बहुत मारक थी। पूरा गांव जिन पंडत के आगे हाथ जोड़कर साष्टांग प्रणाम करताथा... उन पंडत हरेराम ने इस समय शफीक मियाँ के आगे हाथ जोड़ दिये।आंखों का सैलाब जाने कैसे फूट पड़ा।

"श...फी...क..मियाँ...।"

बचपन मे हमसे दोस्ती के लिए कितना पीटे गये थे...याद है...पर कभी साथ न छोड़ा...फिर ऐसा क्या हुआ पंडत ?" शफीक मियाँ की आवाज जैसे कुएं से आ रही थी।

"अपना जवान बेटा खोया था शफीक मियाँ"

"हमने भी तो खोया.... अनवर आपका भी तो पोता ही था"

" जानता हूं... जानता हूं.... याद मत दिलाओ...घर आता था तो दादा - दादा कह कर कांधे पर चढ़ जाता था...."

"ये सांप्रदायिक आग किसका घर छोड़ती है ?."

पंडत ने सिर्फ सर हिला दिया।गला तो रुंध गया था...क्या कहते...

" हमने भी खोया ...तुमने भी खोया.. पाने वाले तो कोई और थे... ... फिर भी हम बीस साल तक हवा देते रहे ।"

"मुकदमा तो दोनों तरफ से दायर हुआ था ...दोषी अकेले हमे ही ठहराओगे मियाँ"

"पंडत ...इन बीस सालों मे थक गया हूं...टूटा भी हूं...अदालत से अगर जीता भी तो क्या जीता...सबकुछ हार के.....हम हर हाल मे हारे हैं पंडत.....आखिर उन रिश्तों का क्या...जिन पर बीस साल से बर्फ जमी है।"

पंडत ने हाथ आगे बढ़ाकर शफीक मियाँ की हथेली पर रख दिया....शफीक मियाँ को लगा जैसे अपना ही बिछड़ा भाई आज उनके सामने है।भावातिरेक में आंसू बहे तो पंडत की हथेली पर टपक गये।

"माफ करना पंडत....मलेच्छ के आंसू हैं....घर जाकर पानी में गंगाजल डालकर नहा लेना।"

"ओये मुल्ले होश में...सात महीने तुझसे बड़ा हूं...थप्पड़ मारूंगा...जलील करने को बुलाया है।"
पंडत ने हथेली की पकड़ को और मजबूत किया....

काश! पंडत...बड़प्पन दिखाते हुए ये थप्पड़ उसदिन मारा होता तो....."आगे के शब्द हलक मे अटककर रह गये।

"बस शफीक मियाँ बस...वो एक तूफान था जो गुजर गया...बहुत कुछ तहस नहस हुआ...क्या मेरा क्या तुम्हारा......वक्त की आंच में तुम भी जले हम भी.अब उन जख्मों को मत कुरेदो.....इन बीस सालों मे कभी चैन से हम भी नही सोये....एक बोझ था आज हल्का हुआ......माफ करना हमें...."

" अब तो हम अल्लाह के घर जा रहे...ये बच्चा लोग न....आज से तुम्हारे हवाले...और सुन पंडत हम माफी न मांगेगे तुझसे...छोटे होने का कुछ तो फायदा लेने देगा"

पंडत की आंखें डबडबा आयीं।बस हाथों के इशारे से आश्वासन दे पाये।

"पक्का...अगर कुछ गड़बड़ की तो साल दो साल बाद तू भी वहीं आएगा...तब निपटूंगा...।"

"अबे साले...अस्सी साल के बूढ़े को बुलाकर लेक्चर पेल रहा है...ये भी नहीं पूछा कि पंडत चाय पियोगे...बस तबसे मरने की बातें।"

"मुझे लगा शायद हमारे घर की चाय..."

"इस बार तुझे नहीं छोडूंगा साले मुल्ले...बोटी छोड़ तेरे घर का क्या नहीं खाया...याद है बचपन की घी चुपरी रोटी...आज मजाक उड़ाता है...जरा ठहर..."

पंडत झटके से कुर्सी से उठे। एक हाथ हवा में शफीक मियाँ की तरफ उछाला।तमाचा पड़ने ही वाला था...घर वाले सकपका गये ।ये क्या हो रहा है?

"पंडत दुश्मनी भूलता है कहीं..."

मगर पंडत झुके और शफीक मियाँ को गले लगाकर जोर से भींच लिया।

"अब चैन से मर सकूंगा पंडत"

दोनो लंगोटिया यार फूट - फूट कर रो रहे थे।आंखों से सिर्फ आंसू ही नहीं.... बहुत कुछ था जो बह जाना चाहता था।

हर घर की कहानी....

हर घर की कहानी....
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बेटा चल छत पर चलें कल तो तेरी शादी है, आज हम माँ बेटी पूरी रात बातें करेंगे। चल तेरे सिर की मालिश कर दूँ, तुझे अपनी गोद में सुलाऊँ कहते कहते आशा जी की आँखें बरस पड़ती हैं। विशाखा उनके आंसू पोंछते हुए कहती है ऐसे मत रो माँ, मैं कौन सा विदेश जा रही हूँ। 2 घण्टे लगते हैं आगरा से मथुरा आने में जब चाहूंगी तब आ जाऊँगी।

विदा हो जाती है विशाखा माँ की ढेर सारी सीख लिए, मन में छोटे भाई बहनों का प्यार लिये, पापा का आशीर्वाद लिये। दादा-दादी, चाचा-चाची, मामा-मामी, बुआ-फूफा, मौसी-मौसा सबकी ढेर सारी यादों के साथ। जल्दी आना बिटिया, आती रहना बिटिया कहते हाथ हिलाते सबके चेहरे धुंधले हो गए थे विशाखा के आंसुओं से। संग बैठे आकाश उसे चुप कराते हुए कहते हैं सोच लो पढ़ाई करने बाहर जा रही हो। जब मन करे चली आना।

शादी के 1 साल बाद ही विशाखा के दादाजी की मृत्यु हो गयी, उस समय वो आकाश के मामा की बेटी की शादी में गयी थी, आकाश विशाखा से कहता है ऐसे शादी छोड़ कर कैसे जाएंगे विशु, दादाजी को एक न एक दिन तो जाना ही था। फिर चली जाना, चुप थी विशाखा क्योंकि माँ ने सिखा कर भेजा था अब वही तेरा घर है, जो वो लोग कहें वही करना। 6 महीने पहले आनंद भईया (मामा के बेटे) की शादी में भी नहीं जा पायी थी क्योंकि सासु माँ बीमार थीं।

अब विशाखा 1 बेटी की माँ बन चुकी थी, जब उसका पांचवा महीना चल रहा था तभी चाची की बिटिया की शादी पड़ी थी, सासू माँ ने कहा दिया ऐसी हालत में कहाँ जाओगी। वो सोचती है,कैसी हालत सुबह से लेकर शाम तक सब काम करती हूँ, ठीक तो हूँ इस बार उसका बहुत मन था, इसलिए उसने आकाश से कहा मम्मी जी से बात करे और उसे शादी में लेकर चले, चाची का फोन भी आया था आकाश के पास, तो उन्होंने कहा दिया आप लोग जिद करेंगे तो मैं ले आऊँगा लेकिन कुछ गड़बड़ हुई तो जिम्मेदारी आपकी होगी। फिर तो माँ ने ही मना कर दिया, रहने दे बेटा कुछ भी हुआ तो तेरे ससुराल वाले बहुत नाराज हो जाएंगे।

वैसे तो ससुराल में विशाखा को कोई कष्ट नहीं था, किसी चीज की कमी भी नहीं थी, फिर भी उसे लगता था जैसे उसे जिम्मेदारियों का मुकुट पहना दिया गया हो। उसके आने से पहले भी तो लोग बीमार पड़ते होंगे, तो कैसे सम्भलता था ! उसके आने से पहले भी तो उनके घर में शादी ब्याह पड़ते होंगे, तो आज अगर वो किसी समारोह में न जाकर अपने मायके के समारोह में चली जाए तो क्या गलत हो जाएगा।

दिन बीत रहे थे कभी 4 दिन कभी 8 दिन के लिए वो अपने मायके जाती थी और बुझे मन से लौट आती थी।विशाखा के ननद की शादी ठीक हो गयी है, उन दोनों का रिश्ता बहनो या दोस्तों जैसा है। अपनी ननद सुरभि की वजह से ही उसे ससुराल में कभी अकेलापन नहीं लगा। सुरभि की शादी होने से विशाखा जितनी खुश थी उतनी ही उदास भी थी, उसके बिना ससुराल की कल्पना भी उसके आंखों में आंसू भर देती थी।

विशाखा ने शादी की सारी जिम्मेदारी बहुत अच्छे से संभाल ली थी, उसको दूसरा बच्चा होने वाला है, चौथे महीने की प्रेगनेंसी है फिर भी वो घर-बाहर का हर काम कर ले रही है। सभी रिश्तेदार विशाखा की सास से कह रहे हैं बड़ी किस्मत वाली हो जो विशाखा जैसी बहु पायी हो।

शादी का दिन भी आ गया, आज विशाखा के आँसू रुक ही नहीं रहे थे, दोनों ननद भाभी एक दूसरे को पकड़े रो रही थीं, तभी विशाखा की सास उसे समझाते हुए कहती हैं, ऐसे मत रो बेटा, कोई विदेश थोड़े ही जा रही हो जब चाहे तब आ जाना। तब सुरभि कहती है, नहीं माँ जब दिल चाहे तब नहीं आ पाऊँगी। वो पूछती हैं ऐसे क्यों कहा रही हो बेटा, माँ के पास क्यों नहीं आओगी तुम ?

तब सुरभि कहती है, "कैसे आऊँगी माँ हो सकता जब मेरा आने का मन करे तब मेरे ससुराल में कोई बीमार पड़ जाए, कभी किसी की शादी पड़ जाए या कभी मेरा पति ही कह दे तुम अपने रिस्क पे जाओ कुछ हुआ तो फिर मुझसे मत कहना। सब एकदम अवाक रह जाते हैं, वो लोग विशाखा की तरफ देखने लगते हैं, तभी सुरभि कहने लगती है, नहीं माँ भाभी ने कभी मुझसे कुछ नहीं कहा लेकिन मैंने देखा था उनकी सूजी हुई आंखों को जब उनके दादा जी की मौत पर आप लोग शादी का जश्न मना रहे थे।

मैंने महसूस की है वो बेचैनी जब आपको बुखार होने के चलते वो अपने भईया की शादी में नहीं जा पा रही थीं। मैंने महसूस किया है उस घुटन को जब भैया ने उन्हें उनकी चाची की बेटी की शादी में जाने से मना कर दिया था, उन भईया ने जिन्होंने उनकी विदाई के वक़्त कहा था सोच लो तुम बाहर पढ़ने जा रही हो जब मन करे तब आ जाना। आपको नहीं पता भईया आपने भाभी का विश्वास तोड़ा है।

कल को मेरे ससुराल वाले भी मुझे छोटे भईया की शादी में न आने दें तो, सोचा है कभी आपने। पापा हमारी गुड़िया तो आपकी जान है, कभी सोचा है आप सबने कल को पापा को कुछ हो जाये और गुड़िया के ससुराल वाले उसे न आने दें। कभी भाभी की जगह खुद को रख कर देखिएगा, एक लड़की अपने जीवन के 24-25 साल जिस घर में गुजारती है, जिन रिश्तों के प्यार की खुशबू से उसका जीवन भरा होता है उसको उसी घर जाने, उन रिश्तों को महसूस करने से रोक दिया जाता है।

मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी मैं आपके लिए कुछ नहीं कर पाई, जिन रिश्तों में बांधकर हम आपको अपने घर लाये थे वही रिश्ते वही बन्धन आपकी बेड़ियाँ बन गए और ये कहते-कहते सुरभि विशाखा के गले लग जाती है। आज सबकी आंखें नम थी, सबके सिर अपनी गलतियों के बोझ से झुके हुए थे।

दोस्तों ये किसी एक घर की कहानी नहीं बल्कि हर घर की यही कहानी है, हमारे देश के समाज में शादी होते ही लड़कियों की प्राथमिकताएं बदल दी जाती हैं। अपना परिवार अपना घर ही पराया हो जाता है और उसे वहाँ जाने के लिए उसे दूसरों की आज्ञा लेनी पड़ती है। अगर हो सके तो इस लेख को पढ़कर आप सब भी इस पर गौर जरूर फरमाइयेगा। और हो सके तो बहु को उसके माता-पिता के घर आने-जाने की आज़ादी जरूर दिजियेगा।

विदाई

विदाई
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आंगन में चारो ओर लाइटें लगा दी गई हैं। अब मंडप खड़ा करने की तैयारी चल रही थी जब चिंटू भागता हुआ आँगन में आकर खड़ा हो गया और दोनों हाथ कमर पर रखकर चिल्लाने लगा – “यहाँ उमा देवी कौन है? उमा देवी…उमा देवी….उमा देवी”। इतने में राकेश ने एक ज़ोर का चांटा उसकी खोपड़ी के पीछे जड़ दिया।
“नालायक! अपनी दादी का नाम इस तरह लेता है कोई”। बरामदे में भरी बाल्टी ले जा रही सपना को उसने कहा -“कहाँ से इतना नालायक बेटा तुमने पैदा कर दिया।”
“मुझे क्या पूछते हो। तुम जानो। बेटा तुम्हारा है।” राकेश ने फिर एक बार हाथ उठाया ही था कि चिंटू बोल उठा “मुझे क्या मालूम कि दादी का नाम दादी नहीं। कोई आया है। उमा देवी से मिलना है। हमारे घर में इतने लोग हैं। पता ही नहीं कौन-कौन है।”
“अम्मा से मिलने!”
“हां …वही तो मैं कह रहा हूँ। कोई सुन ही नहीं रहा।”
राकेश आँगन से ही ज़ोर से चीखा – “अम्मा… देख तो कोई है….तुम्हें पूछ रहा है”
उमा सर पर पल्ला रख कर रसोई से बाहर निकली।
सशंकित हृदय से पूछा” कौन है। क्यों पूछ रहा है।”
“पता नहीं। बैठक में है।”
उमा ईश्वर का स्मरण करते हुए बैठक की और बढ़ गई। मन ही मन कहती चली जा रही थी कि अब शादी में कोई अड़चन न आए भगवान। यहां तो रह-रह कर रिश्ते टूट जाते हैं। उमा ने लोगों को मण्डप तक से उठकर जाते देखा है। अड़ोस-पड़ोस में तो किस-किस बात पर शादियां नहीं टूटी। कहीं डिमांड पूरी नहीं हुई तो कहीं लड़का इंजीनियर की जगह मैकेनिक निकला। कहीँ लड़का ऐन मौके पर किसी के साथ भाग गया तो कहीं दुल्हन को कोई भगा ले गया। अरे पिछली गली के पांडे जी के घर से तो केवल इसलिए बारात लौट गई क्योंकि भेजे गए लड्डू ससुराल में पूरे नहीं पडे और बरात को पनीर की सब्जी कम पड़ गई तो बस नहीं करनी ऐसे कंजूस घर में शादी। अब लड़के वाले हैं चाहें जो कहें। भट्टा तो लड़कीवालों का बैठता है। यंहा भी रमा की शादी की पूरी तैयारी हो गई है। बहुत खर्चा न सही मगर जो भी थोडा बहुत हुआ है उस पर पानी नहीं फिरना चाहिए। लड़का बहुत अच्छा है। उमादेवी के पति भी कह के गए थे कि यह रिश्ता हाथ से जाना नहीं चाहिए वरना फिर इतना अच्छा लड़का ढूँढना…..। मगर इस वक़्त कौन हो सकता है। शादी वाली शाम। कहीं लड़के वालों की तरफ से कोई डाह रखनेवाला रिश्तेदार तो नहीं जो झूठ-सच की आग लगाकर ऐन मौके पर शादी तोड़ने के लिए आ गया हो। ये रमा के बापू भी अब तक नहीं आए वरना इन सब पचड़ों में मुझे नहीँ पड़ना पड़ता। भला बेटी की शादी में किसे छुट्टी नहीं दी जाती है।
इन्हीं सब ख्यालों में डूबती-उतराती उमा बैठक में पहुंची। अरे यह तो दुबे भाई साहेब हैं वो भी यूनिफॉर्म पहनकर। लेकिन रमा के बापू नहीं दिख रहे। हे भगवान अब यह न हो कि शंभू भाई साहब उनकी छुट्टी न मिलने की खबर लाए हों। भगवान कोई भी खबर हो मगर यह न हो कि उन्हें छुट्टी नहीं मिली। रमा की शादी तो उनका सपना ही है। पूरा होते नहीं देखेगें तो कितना बुरा होगा। उस पर मैं अकेले क्या-क्या संभालूँगी। लड़के वाले क्या सोचेंगे कि कैसा पिता है।
“नमस्ते”
“नमस्ते” शंभू भाई साहब का चेहरा ज़रूरत से ज़्यादा नहीं लटका। चाहें जो भी हो। जितना नाटक कर लें। वो नहीं आए तो इन्हीं के ऊपर अपनी भड़ास निकालूँगी मगर निकालूँगी ज़रूर। छोडूँगी नहीं।
“नमस्ते भाई साहब!”
शंभू फटी-फटी आँखों से उमा को देखे जा रहा था। उमा भी सकपका गई। उसने सोचा कोई चाल नहीं चलने देगी और ताबड़-तोड तीर छोड़ने शुरू कर दिए।
“भाई साहब। अब आप मुँह लटकाकर उनका पक्ष मत लीजिएगा। मुझे खूब पता है कि आपको भेजकर वो मेरे गुस्से से बचना चाहते हैं। मगर यह कोई बात नहीं बनती है कि सारी जिन्दगी फौज़ को दे दी और फौज आपको अपनी बेटी के लिए एक दिन भी न दे। देखिए कितना काम पड़ा है। कैसे होगी शादी।”
शंभू ने लगभग रोते हुए कहा-“रोक दीजिए यह शादी भाभी जी। नहीं होगी यह शादी।”
उम्मा भौंचक्की सी शंभू को देखकर भोली-“हे प्रभु।”
“हां भाभीजी। वे शहीद हो गए।”
कुछ पलों के लिए उमा का दिमाग सुन्न हो गया। फिर आँखों से अनायास अनवरत धारा बहने लगी। उमा के आगे एक पूरा जन्म घूम सा गया। यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो अब तक कहीं था अब कहीं नहीं है। इस पल इस घड़ी उमा को जिसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत थी उसका अस्तित्व खत्म हो चुका था।
उमा ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा-“कहाँ रखा है शरीर।”
“कुछ ही घंटों में पहुँचता होगा यहाँ….मैं जल्दी निकल आया आपको खबर करने।”
बैठक में निस्तब्धता छाई थी। बैठक के दरवाजे से बाहर आँगन में उमा की नज़रें थमीं थीं, मगर जाने किस दुनिया में थी वो अब।
आँगन में सभी मंडप को घेर कर खड़े थे और मंडप छवाया जा रहा था। कुछ लोगों ने छप्पर को हाथ लगाया था और बाकी लोग नज़रों से की योगदान दे रहे थे। अपलक ऐसे देख रहे थे जैसे पलक झपक लेने से छप्पर गिर जाएगा और सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। सबकी सांसे अटकी हुई थी। इतना सारा ध्यान पाकर छप्पर चढ़ाने वाले भी घबरा रहे थे कि कहीँ छप्पर सरक न जाए और उनकी इज़्ज़त भी। हुआ भी वही। राकेश का हाथ फिसला और सबके मुंह से हाय निकल पड़ी। पर उसने ऐन मौके पर कस के पकड़ लिया और पूरा छप्पर गिरने से बच गया। हाँ टेड़ा ज़रूर हो गया।
जहां आँगन में इतनी हुल्लड़ मची हुई थी वहीँ इस घर का बैठक उपेक्षित सा एक कोने में पड़ा था जहाँ अब भी निस्तब्धता छाई थी। उमा अब भी आँगन में कुछ देखकर भी नहीं देख रही थी। मगर जब रमेश के हाथ से छप्पर छूटा था तब अन्य सुधि दर्शकों की हाय सुन उमा का ध्यान भी आँगन की गतिविधियों पर जा टिका। एक लंबी नींद; शायद एक जन्म जैसी लंबी नींद से लगभग जागते हुए उमा ने कहा।
“नहीं भाई साहब। उनका शरीर अभी नहीं लाईये।”
शंभू चौंके, “यह क्या कह रहीं है भाभी जी।”
“हाँ भाई साहब। ये शादी हो जाने दीजिए। कल सुबह-सुबह रमा की डोली उठ जाएगी तब तक के लिए रोक लीजिए।”
“यह शादी कैसे हो सकती है”
“बस जैसे हो रही है हो जाने दीजिए। अब तो ऐसे-जैसे-तैसे इस शादी को निपटाना ही है।”
“अरे भाभी। उनका पार्थिव शरीर यहां पहुंचता ही होगा। ऐसे में शादी कैसे होगी।”
“उनके जन्म भर का सपना थी ये शादी। ये शादी उनके जन्म भर की कमाई है भाई साहब। अगर हो जाएगी तो उनकी आत्मा भी चैन से यह शरीर छोड़ सकेगी। वैसे भी उन्हें यह रिश्ता बहुत पसंद था। लड़का ऐसा हीरा है कि चूक गए तो फिर मिलना मुश्किल।”
“भाभी जी। अपनी रमा को तो कई ऐसे हीरे मिल जाएंगे।”
“नहीं भाई साहब। हमने कई लड़के देखे। आजकल सब लड़के बड़े शिष्ट, ईमानदार और आदर्शवादी हैं। मगर तभी तक हैं जब तक उनकी शादी की बात न हो। बाकी तो वो अपनी माता-पिता की पसंद का एक कपड़ा भी न पहनें, दुनिया में क्रान्ति ला दें, मगर जब बात शादी की आती है तो माँ-बाप की डिमांड्स के आगे सब चुप्पी साध लेते हैं। सारी भगत सिंहगीरी भूल जाती है। और क्यों न हो। बाहर तो किसी का एक रुपया लेते शर्म आती है। मगर यहां का तो रिवाज़ बन पड़ा है कि लड़की से शादी करना मतलब उसके बाप-भाई की सम्पति पर मालिकाना हक जमा लेना होता है। यह भी नहीं सोचते कि फौज का एक मामूली जवान कहाँ से इतना लाएगा। मगर नहीं इन्हें तो जो पड़ोसी की शादी में मिला है उससे ज़्यादा ही चाहिए। एक पैसा कम हुआ तो नाक कट जाएगी। इन्ही रिवाज़ों से जूझकर तो राकेश सपना को उसके घर से ही उठा लाया। न होगा बांस न बजेगी बांसुरी।”
“लेकिन भाभी जी मैं कैसे रोकूँ? शरीर तो कभी भी शहर में पहुंचता होगा।”
“कुछ भी कीजिए भाईसाहब। कुछ घण्टो से ही रमा की ज़िन्दगी बन या बिगड़ सकती है। आप ही बताओ ऐसा लड़का कहाँ मिलेगा जो साफ़-साफ कहता हो कि रमा को केवल और केवल शादी के जोड़े में यहाँ से ले जाएगा। अगर उसके साथ एक रुमाल भी आया तो उसके पति होने पर धिक्कार है। कहता है कि अगर अपनी पत्नी को पहनाने-खिलाने-ओढ़ाने का बूता भी नहीं तो पति किस काम। कैसा जीवनसाथी अगर आपसे मांग कर ही मुझे उसका जीवन चलाना पड़े। और तो और कहता है शादी उसकी है तो आधा खर्चा भी वही उठाएगा। इसीलिए हम कम से कम खर्चे में शादी कर रहे हैं ताकि संदीप जी पर खर्चा कम पड़े। बड़े मन से मैं कई सालों से रमा के लिए कपड़े और गहने इकट्ठे कर रही थी। सब बेकार।”
उमा ने गहरी सांस लेते हुए आगे कहा, “अब सब आपके हाथ में है भाई साहब। रमा आपकी भी बेटी है। उसकी ज़िन्दगी बनानेवाला तो चल दिया अब आप ही कुछ कर सकते हैं तो कर सकते हैं।”
शंभू इस उत्तरदायित्व के भार से सर झुकाए बैठे थे। कमरे में धूप का एक टुकड़ा जमीन पर पसरा हुआ था। उसी धूप के टुकड़े पर एक छाया आ कर ठहर गई। शंभू ने नज़र उठाकर देखा तो पीली-पीली सी एक लड़की हाथों में आधी गीली आधी सूखी मेंहदी लगाए खड़ी थी जिसने उसे देखना भी ज़रूरी नहीं समझा और जो सीधे जाकर उमा से भिड़ गई।
“माँ! क्या करती हो? मेरा झुमका उठा के कहाँ रख दिया। मुझे मिल ही नहीं रहा। चलो अब ढूंढ के दो वरना….।”
“इनके पैर छूओ रमू।”
रमा सकपका गई कि कहीं वर पक्ष से तो कोई नहीं है। हल्दी से पीले देह को अपने पीले दुप्पटे से छुपाती हुई झुकी।
“ये शंभू चाचा हैं। तुम्हारे पापा के साथ ही भर्ती हुए थे। बचपन में जब पापा गुस्सा करते थे; तू इनके घर भाग जाया करती थी।”
हर कोई आज राम नारायण के घर पर न होने का गुस्सा शंभू पर ही उतार रहा था।
“चचा जी। आप पापा को साथ क्यूँ नहीं लाए। ऐसा कहीं होता है क्या कि कोई अपनी बेटी की शादी में भी मौजूद न रहे। आप बस उनसे कह दीजिएगा कि मैं उनसे बहुत नाराज़ हूँ और उनसे कभी बात नहीं करूंगी। कभी मतलब कभी नहीं। शादी के बाद भी नहीं। बूढ़ी हो जाउंगी तब भी नहीं।”
शंभू और उमा ने एक दूसरे को अर्थपूर्ण निगाहों से देखा। उमा की आँखों से धार निकल पड़ी। शंभू ने रमा का ध्यान बंटाने के लिए कहा “मैं भी तुमसे बात नहीं करूँगा। तुम्हारी शादी में इतनी दूर से आया हूँ और शादी के लड्डू तो छोड़ो किसी ने पानी तक के लिए नहीं पूछा।”
“हे माँ। सच्ची। मैं अभी लाई।”
रमा जा चुकी थी और शंभू उमा को समझा रहे थे “भाभी आप ही टूट जाओगी तो कैसे चलेगा। इस तरह अगर आपकी आंसुओं की धार निकलती रही तो हो गया बस। हो चुकी रमा की शादी और हो चुकी विदाई।”
उमा और ज़ोर से फफक के रो पड़ी।
शम्भू ने तेज़ आवाज़ में चीखते हुए कहा -“भाभी”
फिर खीझ बरकरार रखते हुए मगर अपनी आवाज़ को काबू करते हुए कहा “हम इस विदाई के लिए उस विदाई को रोक रहे हैं। बल्कि इसकी कोई गारंटी भी मैं नहीं दे सकता कि उस विदाई को ज्यादा देर थामें रख पाउँगा। फ़ौज में कौन किसकी सुनता है और हम जैसे छोटे रैंक वाले की तो सुन चुके। मगर फिर भी मैं भरसक प्रयत्न करूंगा। लेकिन मेरी सारी मेहनत और राम की तो पूरी ज़िन्दगी की मेहनत ख़ाक में मिल जाएगी भाभी अगर आपने इन आंसुओं को नहीं रोका।”
उमा को अभी-अभी एहसास हुआ कि जो अब तक उमा की प्राथमिकता थी वो अचानक शंभू की हो गई है। शंभू अब परिस्थितियों को उससे भी ज्यादा समझने लगे हैं और अब बात को संभाल लेंगे। शंभू को खुद पर भरोसा हो न हो उमा को भरोसा हो चला था कि शंभू शरीर को विदाई से पहले नहीं पहुंचने देंगे।
उमा ने आँसू पोंछते हुए कहा “ठीक है भैया। आप उधर संभालिए में यहां कोशिश करती हूँ।”
“ठीक है भाभी जी। अब मैं चलता हूँ वरना देर हो गई तो शरीर को यहां पहुंचने से पहले नहीं रोक पाउँगा। मुझे जल्द से जल्द वहां पहुंचना होगा।”
“जी नमस्ते”
“नमस्ते”
बाहरी द्वार की ओर से शंभू निकले और आँगन की ओर से रमा अंदर आ कर ठिठक गई।
“चचा कहाँ गए?”
“गए”
“ऐसे, कैसे; भाभी चाय-पानी ला रही हैं।”
“भाभी?”
“हां। मेरे हाथ में मेहंदी लगी है न।”
“ओह! अच्छा।”
“लेकिन चचा कहाँ गए?”
“उन्हें कुछ बहुत ही ज़रूरी काम था।”
“ये फ़ौज वाले सारे हमेशा घोड़े पर सवार क्यों रहते हैं। पापा से पूछना पड़ेगा।”
“अच्छा चल अब सारी तैयारी बाकी है। तुझे झुमके मिले।”
“नहीं”
“चल। उधर ही चल। ढूंढ के देती हूँ।”
घर की देहरी खचाखच भरी थी। अड़ोस-पड़ोस की छतों पर भी लोग जमा थे। सामने कुँए की मुंडेर पर खड़े लोग भी काम छोड़कर बस खड़े ही खड़े देख रहे थे। विदाई का यह दृशय वे सैकडों बार देख चुके थे। मगर फिर भी कोई मौका नहीं चूकते। रमा उमा से लिपटकर ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी। उमा की आँखें नम थी और सभी की भी, छतों और मुंडेर पर खडे लोगों की भी। उमा मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि यह विदाई अच्छे से निपट जाए। रमा और जितने लोगों से मिलकर जितना ज्यादा समय बिता रही थी उमा की बेचैनी उतनी बढती जा रही थी। यहाँ तक कि जब कांति बुआ उसे छोड़ ही नहीं रही थीं तो उसने बीच में जाकर रमा को अलग किया और उसके पीछे-पीछे लगी रही ताकि वो कहीं भी ज्यादा समय न गंवाने पाए। रमा के जाने से पहले ही वह दूर जाती गाडियों को देख रही थी कि कहीं कोई मिलिट्री की गाड़ी न दिख जाए, कहीं देर न हो जाए। विदाई के शोक से भारी इस सभा को वह जल्द से जल्द निपटाने का प्रयास कर रही थी मगर जहाँ सबकुछ उदासी के मोड में चल रहा था वहां जल्दी करती भी तो कैसे।
जब तक बारात दूर न निकल गई वह घबराती रही। धीरे-धीरे लोग तितर-बितर होने लगे थे। रिश्तेदारों की एक टोली तो घर के भीतर जाकर अपना सामान समेट रही थी जिन्हें अभी ही निकलना था। छतों पर से लोग हट चुके थे और मुंडेर पर व्यस्तता छाई थी। कुछ समय पहले तक खचाखच सी देहरी पर अब केवल उमा अकेली खड़ी क्षितिज को निहार रही थी। सबको तो यही लग रहा था कि वह बेटी के जाने का शोक मना रही है मगर यह केवल वही जानती थी कि उसका शोक तो अभी शुरू ही हुआ है, खत्म नहीं।
मिलिट्री के एक के पीछे एक तीन हरे-हरे ट्रकों को देखकर उमा धम्म से ज़मीन पर गिर पड़ी और इससे पहले के घर के भीतर के कुछ लोग और घर के बाहर के कुछ लोग कुछ समझ पाते वह दहाड़े मार-मार कर रोने लगी। दोनों ओर के लोगों ने उसे संभालने की बहुत चेष्टा की मगर धरा से उसका ममत्व नहीं तोड़ पाए। कोई राकेश को भी बुलाया लाया। कोई समझ ही नहीं पा रहा था कि मिलिट्री के ट्रकों को देख भला रोनेवाली कौन सी बात हो गई। मगर जब कुछ ही देर बाद चार जवानों ने एक ताबूत लाकर देहली के सामने रख दिया तो सब स्वत: ही स्पष्ट होता चला गया।
सही ही कहा गया है कि जीवन एक रंगमंच है और अगर इस रंगमंच पर अलग-अलग भूमिकाएं निभाने के लिए कोई नेशनल अवार्ड होता तो उमा को वह ज़रूर मिलता। कुछ ही देर पहले तक जहाँ वह दुल्हन की माँ बनकर शादी की सारी देख-रेख बखूबी कर रही थी वहीं आज विधवा बनकर बदहवास सी उस शरीर के पास अपना प्राणहीन शरीर लिए पड़ी हुई थी। अर्थी उठाने वाले को भी भ्रम हो जाए कि किसे ले जाना है और किसे छोड़ना। अभी थोड़ी ही देर पहले जहाँ थके-मांदे लोग रमा की विदाई के बाद शांति तलाश रहे थे वे फिर रोने- सिसकने की आवाज़ों से खिंचे चले आए। घर की देहरी फिर से खचाखच भर गई थी। अड़ोस-पड़ोस की छतों पर फिर से लोग जमा थे। सामने कुँए की मुंडेर पर खड़े लोग भी काम छोड़कर बस खड़े ही खड़े देख रहे थे।

Saturday 12 May 2018

रूठे प्यार को मनाने की शायरी


रूठे प्यार को मनाने की शायरी





Ruthe Pyar Ko Manane Ki Shayari : अगर आपका प्यार आपसे रूठ जाता है तो उसे मनाने के लिए आप क्या करते हो ? कोई व्यक्ति उसे मनाने के लिए कई तरह के उपाय आजमाते है लेकिन किसी भी तरह का कोई भी उपाय या तरीका काम नहीं आता | हम आपको आपके प्यार को मनाने के लिए कुछ शायरियां बताते है जिन शायरियो को अपना कर आप आराम से अपने प्यार को मना सकते है | अगर आप यह सभी शायरियां अपने प्यार को भेजते है तो उसकी वजह से आप अपने प्यार को मना सकते है और अपनी की हुई गलती की माफ़ी भी माँग सकते है |




हर बार रिश्तों में और भी मिठास आई है,
जब भी बाद रूठने के तू मेरे पास आई है।


बस एक यही आदत तो मेरी खरा़ब है …
रूठने के लिये ना जाने कितने बहाने चाहिये
और मान जाने के लिये …तेरा बोलना ही काफी है …


रूठने की कोई…….दास्ताँ रही होगी
यकीनन कोई …….. खता रही होगी
तुमने सलाम नहीं लिया होगा उनका
यही तो बात दिल को सता रही होगी


नाराज़गी नहीं है कोई … मै किससे
शिकायत करूँ! . . . .
ये रूठने मनाने
की रस्म तो अपनों में हुआ करती है!!


बहाने बनाना कोई उनसे सीखे, बनाकर मिटाना कोई उनसे सीखे,
सबब रूठने का भी होता है लेकिन, यूं ही रूठ जाना कोई उनसे सीखे !


रूठने-मनाने का,
सिलसिला कुछ यू हुआ।
मान गया था मगर,
फिर रूठने का दिल हुआ।।


जंग न लग जाये मोहब्बत को कहीं…
रूठने मनाने के सिलसिले जारी रखो..।।


उन्हें रूठने में वक़्त नहीं लगता
मेरे पास वक़्त नहीं मानाने को …


रूठनें का लुत्फ़ आया ही नहीं,
आप पहले ही मनाने आ गए…


हमें तो रूठने का सलीका भी नहीं आता
जाते-जाते खुद को उसके पास ही छोड़ आये ………


गलती एक करी थी उसने जो हमने सची मानी थी…°
हमने जाने को कहा और उसने रुठने की ठानी थी़.


तू जो रूठ्ने लगा है दिल टूटने लगा है
अब सब्र का भी दामन मुझसे छूटने लगा है


तुझे खबर भी है इसकी ओ रूठने वाले,
तुम्हारा प्यार ही मेरा कीमती खजाना था


सारी उम्र करते रहे इंतज़ार तेरे रुठने का
कभी तो मौका दिया होता तूने मनाने का


ज़माने से रुठने की जरूरत ही क्यों हो
जब मेरे अपने ही मेरे बने रकीब हो



माफी की शायरी

Mafi Ki Shayari : अगर आपका प्यार आपसे नाराज़ है और आप उनसे माफ़ी मांगना चाहते है और उन्हें मनाना चाहते है तो आप यह शायरियां उन्हें फेसबुक, व्हाट्सएप्प पर भेज सकते है :


हम रूठे भी तो किसके भरोसे रूठें,
कौन है जो आयेगा हमें मनाने के लिए,
हो सकता है तरस आ भी जाये आपको,
पर दिल कहाँ से लायें आपसे रूठ जाने के लिये।


तुम खफा हो गए तो कोई ख़ुशी न रहेगी,
तुम्हारे बिना चिरागों में रोशनी न रहेगी,
क्या कहे क्या गुजरेगी इस दिल पर,
जिंदा तो रहेंगे पर ज़िन्दगी न रहेगी।


दिल से तेरी याद को जुदा तो नहीं किया,
रखा जो तुझे याद कुछ बुरा तो नहीं किया,
हम से तू नाराज़ हैं किस लिये बता जरा,
हमने कभी तुझे खफा तो नहीं किया।


खता हो गयी तो फिर सज़ा सुना दो,
दिल में इतना दर्द क्यूँ है वजह बता दो,
देर हो गयी याद करने में जरूर,
लेकिन तुमको भुला देंगे ये ख्याल मिटा दो।


न तेरी शान कम होती न रुतबा ही घटा होता,
जो गुस्से में कहा तुमने वही हँस के कहा होता।


देखा है आज मुझे भी गुस्से की नज़र से,
मालूम नहीं आज वो किस-किस से लड़े है।


कब तक रह पाओगे आखिर यूँ दूर हमसे,
मिलना पड़ेगा कभी न कभी ज़रूर हमसे,
नज़रें चुराने वाले ये बेरुखी है कैसी,
कह दो अगर हुआ है कोई कसूर हमसे।


निकला करो इधर से भी होकर कभी कभी,
आया करो हमारे भी घर पर कभी कभी,
माना कि रूठ जाना यूँ आदत है आप की,
लगते मगर हैं अच्छे ये तेवर कभी कभी।


तुम हँसते हो मुझे हँसाने के लिए,
तुम रोते हो तो मुझे रुलाने के लिए,
तुम एक बार रूठ कर तो देखो,
मर जायेंगे तुम्हें मनाने के लिए।


नाराज क्यूँ होते हो किस बात पे हो रूठे,
अच्छा चलो ये माना तुम सच्चे हम ही झूठे,
कब तक छुपाओगे तुम हमसे हो प्यार करते,
गुस्से का है बहाना दिल में हो हम पे मरते।


हो सकता है हमने आपको कभी रुला दिया,
आपने तो दुनिया के कहने पे हमें भुला दिया,
हम तो वैसे भी अकेले थे इस दुनिया में,
क्या हुआ अगर आपने एहसास दिला दिया।


हमसे कोई खता हो जाये तो माफ़ करना,
हम याद न कर पाएं तो माफ़ करना,
दिल से तो हम आपको कभी भूलते नहीं,
पर ये दिल ही रुक जाये तो माफ़ करना।


बहुत उदास है कोई शख्स तेरे जाने से,
हो सके तो लौट के आजा किसी बहाने से,
तू लाख खफा हो पर एक बार तो देख ले,
कोई बिखर गया है तेरे रूठ जाने से।


इस कदर मेरे प्यार का इम्तेहान न लीजिये,
खफा हो क्यूँ मुझसे यह बता तो दीजिये,
माफ़ कर दो गर हो गयी हो हमसे कोई खता,
पर याद न करके हमें सजा तो न दीजिये।


आज मैंने खुद से एक वादा किया है,
माफ़ी मांगूंगा तुझसे तुझे रुसवा किया है,
हर मोड़ पर रहूँगा मैं तेरे साथ साथ,
अनजाने में मैंने तुझको बहुत दर्द दिया है।


धड़कन बनके जो दिल में समा गए हैं,
हर एक पल उनकी याद में बिताते हैं,
आंसू निकल आये जब वो याद आ गए,
जान निकल जाती है जब वो रूठ जाते हैं।




उत्साहवर्धक शायरी









उत्साह बढ़ाने वाली शायरी

Utsah Badhane Wali Shayari : यदि आप उत्साह बढ़ाने वाली शायरी जानना चाहे तो हमारे ऐसी ही कुछ शायरियो के माध्यम से आप जान सकते है की की तरह से आप किस अन्य व्यक्ति हौसला शायरियो के माध्यम से बढ़ सकते है :


मिटा सके जमाना जमाने में दम नहीं,
हमसे है जमाना जमाने से हम नहीं |


अगर देखना चाहते हो तुम मेरी उड़ान को,
तो जाओ जाकर थोड़ा ऊचा करो इस आसमान को |


अगर फलक को जिद है, बिजलियाँ गिराने की |
तो हमें भी जिद है, वहीं आशियाँ बनाने की |


जिन हाथों में शक्ति है राज तिलक देने की,
उन हाथों में शक्ति है शीश उतार लेने की |


जिस पर सर न झुके वह दर नहीं,
जो हर दर पर झुके वह सर नहीं |


उत्साहवर्धक विचार

Utsahvardhak Vichar : हमारे इन उत्साहवर्धक पंक्तिया से आप अपने खुद का और अपने किसी अन्य व्यक्ति का उत्साह बढ़ा सकते है आप पढ़िए इन शायरियो को जिन्हें आप आज ही शेयर कर सकते है :


जिन्दगी जिन्दादिल्ली का नाम है,
मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते है |


उम्मीद वक्त का सबसे बड़ा सहारा है,
अगर हौसला हो हर-मौज में किनारा है |


थोड़ी आँच बची रहने दो थोड़ा धुँआ निकलने दो,
कल देखोगे कई मुसाफ़िर इसी बहाने आएँगे |


जुस्तजू हो तो सफर ख़त्म कहाँ होता है,
यूँ तो हर मोड़ पर मंजिल का गुमाँ होता है |


शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले,
वतन पर मर मिटने वालों का
यही तो बाकी निशाँ होगा |

बेहतरीन शायरी

Behtareen Shayari : हमारी इन बेहतरीन शायरियो को पढ़ कर आप अपने किसी भी दोस्त से उत्साहवर्धक बाते कर सकते है जिनसे आपको बेहतरीन प्रेरणादायक शायरी भी प्राप्त होती है :


वो मुश्किलें जिन्हें हल
जब्र और सब्र कर नहीं सकता,
मझबूत इरादे और मेहनत से उन्हें
आसाँ बनाके छोडूंगा |


वो आदमी नहीं है मुकमल बयान है,
माथे पर उसके चोट का गहरा निशान है |


राख कितनी राख है चारों तरफ बिखरी हुई,
राख में चिंगारियाँ ही देख अंगारे न देख |


एक दिन भी जी मगर तू ताज बनकर जी
अटल विश्वास बनकर जी अमर युग गान बनकर जी |


दाना गुलो-गुलज़ार होता है मिट्टी में मिल जाने के बाद,
रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने बाद |


उत्साह शायरी

Utsaah Shayari : अपना खुद का उत्साह बढ़ाने के लिए आप हमारे दिए हुए इन उत्साहवर्धक कविता को पढ़ सकते है जिनसे की आपका उत्साह बढ़ सकता है :


गम की अँधेरी रात में दिल को न बेकरार कर,
सुबह जरूर आयेगी सुबह का इंतजार कर |


रास्ते में रुकके दम ले लूँ मेरी आदत नहीं,
लौट कर वापस चला जाऊ मेरी फितरत नहीं,
और कोई मिले न मिले
मुझे रुकना नहीं |


ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दोहरा हुआ होगा,
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा |


ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारों,
अब कोई ऐसा तरीका भी निकलो यारों |


ये मूरत बोल सकती है
होश और जोश की चिंगारी
सुलगाकर तो देखो |



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