Wednesday, 7 June 2017

💁‍♂️जिम्मेदारी

💁‍♂️जिम्मेदारी
चल रे छोटू..दो चाय बना मीठा कम..पत्ती तेज..महेश और आशुतोष ने कालेज की कैंटीन में काम करते ग्यारह बारह साल के उस लड़के से कहा और कुर्सी पर बैठ गए..जी साहब अभी बना देता हूं..उस लड़के ने चाय का पतीला चूल्हे पर चढाया और पानी..दूध और चायपत्ती उस पतीले में डालने लगा..
महेश ने आशुतोष की तरफ आंख दबाते हुए शरारत भरे लहजे में छोटू की तरफ सवाल उछाला.."क्या रे छोटू तू पढता लिखता क्यूं नही रे..काहे बेकार में अपना बचपन इस चूल्हे में झोंक रहा है..?? यह कहकर महेश चुप हो गया उसके चेहरे पर गरीब का उपहास उड़ाने वाले भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे लड़के ने कोई जवाब नही दिया दो मिनट की प्रतीक्षा कर महेश ने फिर पूछा "क्यूं रे छोटू सुनाई नही दिया..
"क्या बताऊं साहब दिल में पढने की तो बहुत इच्छा थी चार क्लास तक पढा भी था जब तक बापू जिन्दा थे एक दिन स्कूल से आया तो देखा झुग्गी (घर) के बाहर भीड़ लगी थी अन्दर जाकर देखा तो बापू सफेद कपड़े में लिपटे आंगन में पडे थे मां और दो छोटी बहने (जो अभी चार और दो बरस की थी) उनकी लाश पर बेसुध पड़ी थी लोगों ने समझाया की बेटा तुम्हारे पिताजी अब इस दुनिया में नही है कल रात कंपनी की लिफ्ट में फंसकर तुम्हारे बापू की मृत्यु हो गई अस्पताल से पोस्टमार्टम होकर लाश अभी घर आई है तुम्हारी मां ने जब से यह खबर सुनी है बार बार बेहोश हुई जा रही है..
"बेटा चलो तुम्हारे पिता का दाह संस्कार करना है मै करीब आठ साल का था उस वक्त दाह संस्कार का मतलब भी नही जानता था लेकिन जब बापू की अर्थी को कांधा लगाया तो पता चला की बोझ क्या चीज होती है क्योंकि जब तक बापू जिंदा थे कभी बोझ उठाने का काम ही नही पड़ा था बापू का क्रिया क्रम निपटाने के बाद कई दिनों तक घर में चूल्हा नही जला..कम्पनी ने बापू के दुर्घटना के मुआवजे की राशि दोनों बहनो के नाम बैंक में जमा करवा दी जोकि बालिग होने पर उनकी पढाई लिखाई और शादी में काम आएगी..
"..ठण्डी सांस भरते हुए छोटू ने कहा..उस दिन के बाद से साहब ये चाय का पतीला अपनी पढाई और ये कैंटीन अपना स्कूल है साहब..दोनों बहनें पढ रही है और मां भी घर पर कढाई सिलाई का काम करती है जिन्दगी कट रही है साहब..पढ लिखकर भी कौन सा अफसर लगना है करनी तो नौकरी ही है चाहे कोई चौबीस की उम्र में लगे या चौदह की में..सब हालातों पर निर्भर करता है साहब..चाय के पतीले में उबलती चाय की तरह उबल रही थी छोटू की यादें..छोटू ने चाय के पतीले से चाय को दो गिलासों मे छानकर चाय उन दोनों को पकड़ाते हुए कहा..लो साहब चाय तैयार है..
अब याद करने की बारी महेश की थी उसके चेहरे पर कुटिलता भरी मुस्कान नही बल्कि पश्चाताप के आंसू थे क्योंकि वह पिछले तीन सालों से एक ही क्लास में लगातार फेल हो रहा था..मां बाप ने कितनी ही बार उसे जिम्मेदारियों का बोध कराने का प्रयत्न किया लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात..आज छोटू की जीवनगाथा सुनकर अपनी गलतियों का अहसास हो रहा था आज वह चाय की चुस्कियां नही लगा रहा था..वो आज चाय गटक रहा था और आज उसे कहीं पर पढी हुई दो पंक्तियाँ याद आ रही थी जो कि छोटू के जीवन पर सटीक बैठती थी..
सीखा है मैनें..
जिन्दगी से एक तजुर्बा..!
जिम्मेदारी इंसान को..
वक्त से पहले बड़ा बना देती है..!!!!
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