एक लड़का था जब वो दो साल का था, उसके पिता एक दुर्घटना में नहीं रहे ।
उसकी माँ ने ही उसे पाला पोसा उनका जीवन बहुत गरीबी में था लेकिन माँ यथासंभव प्रयास करती की उसके बेटे की सारी आवश्यकताएं पूरी हों ।
वो घर में ही कपडे आदि सिलने का कार्य करती थी और अपने बेटे को खूब अच्छी बातें सिखाया करती थी ।
बालक अभी 10 साल का ही था की उसकी माँ बीमार पड़ी और कुछ दिनों में चल बसी ।
लड़के पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा उसकी तो दुनिया ही उसकी माँ थी ।
धीरे धीरे वो जीवन के साथ कदम मिलाने लगा और दुनियादारी को सीखने लगा ।
दिन भर कहीं काम करता और रात में अपनी झोपडी में आ जाता और माँ की बातें याद करता ।
एक दिन उसकी झोपडी भी तोड़ दी गयी क्योंकि वो जिस जगह पर थी वो किसी और की थी और अब वहाँ एक होटल बनना था ।
लड़का मारा मारा फिरने लगा माँ ने उसे स्वाभिमान से रहना सिखाया था इसलिए वो भीख मांगने के बजाय किसी ढाबे आदि में कार्य कर लेता और दूसरे काम की तलाश में भी रहता ।
उसी शहर में एक साहूकार था, उसका सोनारी का काम था वो सेठ महा कंजूस था हमेशा मुफ्त का नौकर मिल जाए इसी प्रयास में रहता और कोई उसके यहाँ काम करता तो भी बहुत कम पगार देता इसलिए अधिकतर उसके यहाँ कोई नौकर अधिक दिन टिक नहीं पाता ।
लड़का घूमता घूमता जब उसकी दूकान पहुंच तो उसने बताया की नौकरी तो है लेकिंन पैसा नहीं मिलेगा खाना पीना मिल जाएगा ।
लड़के को और क्या चाहिए था वो मान गया सेठ ने जब देखा की उसके माता पिता नहीं है तो उसे थोड़ी दया भी आयी लेकिन उसे ख़ुशी इसी बात की थी की शायद अब एक नौकर मिल गया जो जाएगा भी नहीं और उसे पैसे भी नहीं देने पड़ेंगे ।
लड़का मन लगाके काम सीखने लगा और बहुत मेहनत व् ईमानदारी से सेठ के कारोबार को बढ़ाने लगा ।
उसे सुबह शाम खाना मिल जाता था और सेठ के ही घर के पीछे एक कबाड़ घर में सोने को मिल जाता था ।
कुछ ही महीनो में सेठ का काम बहुत बढ़ गया और वो लड़के को और मानने लगा ।
सबकुछ ठीक ही चल रहा था की एक दिन एक आदमी सेठ के यहाँ एक सोने की अंगूठी का सौदा करने आया उसे ब्याज में पैसे चाहिए थे सेठ ने तुरंत ही सौदा कर लिया ।
लेकिन उसने गलती से वो अंगूठी दुसरे चांदी की सामान के साथ रखकर उस लड़के को तिजोरी में रखने को दी ।
कुछ दिनों के बाद जब वो आदमी अपनी अंगूठी वापस लेने आया तो सेठ अंगूठी खोजने लगा पर वो अंगूठी कहीं न मिली ।
उसका शक तुरंत ही उस लड़के पर गया और वो उसे खरी खोटी सुनाने लगा और पीटने लगा की बता कहाँ रखी है अभी तुझे पुलिस के हवाले करता हूँ ।
लड़का सफाई देता रह गया और बार बार सेठ का पैर छूने लगा लेकिन सेठ के सर पर तो शक का भूत सवार था ।
अंगूठी वाले आदमी ने जब इतने भोले बच्चे को ऐसी दशा में देखा तो उसका दिल पसीज गया उसे लगा ऐसा नहीं हो सकता की ये बच्चा चोरी कर सकता है ।
उसने सेठ को पैसे लौटा दिए और कहा की समझिये मेरी अंगूठी मुझे मिल गयी और फिर वो आदमी चला गया ।
सेठ उस आदमी के जाने के बाद भी शांत न हुआ और उस लड़के को दूकान से भगा दिया और कहा की दुबारा यहाँ आसपास भी दिखाई न पड़ जाना वरना पुलिस में दे दूंगा ।
लड़का चुपचाप उठा उसने फिर से सेठ के पैर छुए और अपनी आँखों में आँसू लिए निकल गया ।
रात को सेठ को नींद नहीं आयी इतने दिनों से उसे कभी क्रोध नहीं आया था और दूसरा इतने दिनों से उस लड़के ने एक भी तो गलती नहीं की थी ।
और लड़के का बार बार पैर छूना उसे व्यथित करने लगा ।
सेठ रात में ही अपनी दूकान जो उसके घर के नीचे ही थी उसमे आया और तिजोरी खोल के सब थैले जो अलग अलग गहनों के थे, खोलने लगा ।
कुछ देर के बाद उसे याद आया की एक थैली चांदी के जेवरों की भी उस दिन आयी थी उसने जैसे ही वो थैली खोली सामने वही अंगूठी थी ।
अब सेठ का ह्रदय दुःख से बोझिल हो गया उसे बहुत पश्चाताप हुआ ।
तब तक सुबह भी हो चुकी थी सेठ उस लड़के को ढूंढने निकल पड़ा ।
कुछ देर ढूंढने के बाद उसे एक फुटपाथ पर वही लड़का सोता दिखाई पड़ा।
सेठ उस लड़के के पास पहुंचा और उसके सर पर हाथ फेरने लगा लड़का जग गया और बोला सेठ जी आप यहाँ कैसे ?
सेठ - बेटा तू झूठ ही कह देता की मैंने चुराई है तो तुझे मार तो न पड़ती ।
लड़का - नहीं मेरी माँ ने सिखाया है कभी झूठ नहीं बोलना ।
सेठ - तो बेटा तुझे पगार तो मिलती नहीं कम से कम इतना पैसा तो पास रखता की रात कहीं रुक जाता।
लड़का - नहीं सेठ जी मैं चोरी नहीं कर सकता, मेरी माँ ने मना किया है चोरी करना पाप है।
सेठ - अच्छा बेटा, तू बार बार मेरे पैर क्यों छू रहा था ?
लड़का - माँ ने बताया था यदि तुम गलत नहीं हो फिर भी कोई तुमपर झूठ आरोप लगाए तो उस पर क्रोध न करना बल्कि यदि वो तुमसे छोटा हो तो क्षमा कर देना और यदि तुमसे बड़ा हो तो उसके पैर छू लेना।
लड़के के इस सादगी को देखकर सेठ की आँखें भर आयी, वो समझ गया उससे जाने अनजाने में पाप हुआ है ।
उसने लड़के से अपने किये की क्षमा मांगी और वापस उसे अपने घर ले आया।
अब वो उसे दूकान पर काम कराने के बजाय एक विद्यालय में पढ़ने भेजने लगा।
उसकी माँ ने ही उसे पाला पोसा उनका जीवन बहुत गरीबी में था लेकिन माँ यथासंभव प्रयास करती की उसके बेटे की सारी आवश्यकताएं पूरी हों ।
वो घर में ही कपडे आदि सिलने का कार्य करती थी और अपने बेटे को खूब अच्छी बातें सिखाया करती थी ।
बालक अभी 10 साल का ही था की उसकी माँ बीमार पड़ी और कुछ दिनों में चल बसी ।
लड़के पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा उसकी तो दुनिया ही उसकी माँ थी ।
धीरे धीरे वो जीवन के साथ कदम मिलाने लगा और दुनियादारी को सीखने लगा ।
दिन भर कहीं काम करता और रात में अपनी झोपडी में आ जाता और माँ की बातें याद करता ।
एक दिन उसकी झोपडी भी तोड़ दी गयी क्योंकि वो जिस जगह पर थी वो किसी और की थी और अब वहाँ एक होटल बनना था ।
लड़का मारा मारा फिरने लगा माँ ने उसे स्वाभिमान से रहना सिखाया था इसलिए वो भीख मांगने के बजाय किसी ढाबे आदि में कार्य कर लेता और दूसरे काम की तलाश में भी रहता ।
उसी शहर में एक साहूकार था, उसका सोनारी का काम था वो सेठ महा कंजूस था हमेशा मुफ्त का नौकर मिल जाए इसी प्रयास में रहता और कोई उसके यहाँ काम करता तो भी बहुत कम पगार देता इसलिए अधिकतर उसके यहाँ कोई नौकर अधिक दिन टिक नहीं पाता ।
लड़का घूमता घूमता जब उसकी दूकान पहुंच तो उसने बताया की नौकरी तो है लेकिंन पैसा नहीं मिलेगा खाना पीना मिल जाएगा ।
लड़के को और क्या चाहिए था वो मान गया सेठ ने जब देखा की उसके माता पिता नहीं है तो उसे थोड़ी दया भी आयी लेकिन उसे ख़ुशी इसी बात की थी की शायद अब एक नौकर मिल गया जो जाएगा भी नहीं और उसे पैसे भी नहीं देने पड़ेंगे ।
लड़का मन लगाके काम सीखने लगा और बहुत मेहनत व् ईमानदारी से सेठ के कारोबार को बढ़ाने लगा ।
उसे सुबह शाम खाना मिल जाता था और सेठ के ही घर के पीछे एक कबाड़ घर में सोने को मिल जाता था ।
कुछ ही महीनो में सेठ का काम बहुत बढ़ गया और वो लड़के को और मानने लगा ।
सबकुछ ठीक ही चल रहा था की एक दिन एक आदमी सेठ के यहाँ एक सोने की अंगूठी का सौदा करने आया उसे ब्याज में पैसे चाहिए थे सेठ ने तुरंत ही सौदा कर लिया ।
लेकिन उसने गलती से वो अंगूठी दुसरे चांदी की सामान के साथ रखकर उस लड़के को तिजोरी में रखने को दी ।
कुछ दिनों के बाद जब वो आदमी अपनी अंगूठी वापस लेने आया तो सेठ अंगूठी खोजने लगा पर वो अंगूठी कहीं न मिली ।
उसका शक तुरंत ही उस लड़के पर गया और वो उसे खरी खोटी सुनाने लगा और पीटने लगा की बता कहाँ रखी है अभी तुझे पुलिस के हवाले करता हूँ ।
लड़का सफाई देता रह गया और बार बार सेठ का पैर छूने लगा लेकिन सेठ के सर पर तो शक का भूत सवार था ।
अंगूठी वाले आदमी ने जब इतने भोले बच्चे को ऐसी दशा में देखा तो उसका दिल पसीज गया उसे लगा ऐसा नहीं हो सकता की ये बच्चा चोरी कर सकता है ।
उसने सेठ को पैसे लौटा दिए और कहा की समझिये मेरी अंगूठी मुझे मिल गयी और फिर वो आदमी चला गया ।
सेठ उस आदमी के जाने के बाद भी शांत न हुआ और उस लड़के को दूकान से भगा दिया और कहा की दुबारा यहाँ आसपास भी दिखाई न पड़ जाना वरना पुलिस में दे दूंगा ।
लड़का चुपचाप उठा उसने फिर से सेठ के पैर छुए और अपनी आँखों में आँसू लिए निकल गया ।
रात को सेठ को नींद नहीं आयी इतने दिनों से उसे कभी क्रोध नहीं आया था और दूसरा इतने दिनों से उस लड़के ने एक भी तो गलती नहीं की थी ।
और लड़के का बार बार पैर छूना उसे व्यथित करने लगा ।
सेठ रात में ही अपनी दूकान जो उसके घर के नीचे ही थी उसमे आया और तिजोरी खोल के सब थैले जो अलग अलग गहनों के थे, खोलने लगा ।
कुछ देर के बाद उसे याद आया की एक थैली चांदी के जेवरों की भी उस दिन आयी थी उसने जैसे ही वो थैली खोली सामने वही अंगूठी थी ।
अब सेठ का ह्रदय दुःख से बोझिल हो गया उसे बहुत पश्चाताप हुआ ।
तब तक सुबह भी हो चुकी थी सेठ उस लड़के को ढूंढने निकल पड़ा ।
कुछ देर ढूंढने के बाद उसे एक फुटपाथ पर वही लड़का सोता दिखाई पड़ा।
सेठ उस लड़के के पास पहुंचा और उसके सर पर हाथ फेरने लगा लड़का जग गया और बोला सेठ जी आप यहाँ कैसे ?
सेठ - बेटा तू झूठ ही कह देता की मैंने चुराई है तो तुझे मार तो न पड़ती ।
लड़का - नहीं मेरी माँ ने सिखाया है कभी झूठ नहीं बोलना ।
सेठ - तो बेटा तुझे पगार तो मिलती नहीं कम से कम इतना पैसा तो पास रखता की रात कहीं रुक जाता।
लड़का - नहीं सेठ जी मैं चोरी नहीं कर सकता, मेरी माँ ने मना किया है चोरी करना पाप है।
सेठ - अच्छा बेटा, तू बार बार मेरे पैर क्यों छू रहा था ?
लड़का - माँ ने बताया था यदि तुम गलत नहीं हो फिर भी कोई तुमपर झूठ आरोप लगाए तो उस पर क्रोध न करना बल्कि यदि वो तुमसे छोटा हो तो क्षमा कर देना और यदि तुमसे बड़ा हो तो उसके पैर छू लेना।
लड़के के इस सादगी को देखकर सेठ की आँखें भर आयी, वो समझ गया उससे जाने अनजाने में पाप हुआ है ।
उसने लड़के से अपने किये की क्षमा मांगी और वापस उसे अपने घर ले आया।
अब वो उसे दूकान पर काम कराने के बजाय एक विद्यालय में पढ़ने भेजने लगा।
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