Thursday 11 May 2017



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क्या ख़ाक अहले इल्म हुआ मैं यारों
खुदी में लिखी जब बेखुदी नही पढ़ पाया..
---------------------------सूफी*

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बुझा चिराग तो गुमशुम हवाऐं रोने लगी
बहे तो जुल्म है बैठे तो खुद की आफत है...
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अब तलक गिन रहे है तेरे जख़्मों की इनायत
ऐ जिंदगी हम तेरी हर रहगुजर से वाकिफ है..
--------------------------------sufi

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ये अलग बात है के कभी खत्म नही होता
मगर ये इंतजार ही हमें जीने की वजह देता है
------------------------------sufi*
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फिर खून से भी लिख लो मज्मून तो भी क्या है
------------------------------sufi
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मेरी तस्वीर पे कुछ रोज की है गुलपाशी
नया नया सा मरा हूँ मै दुनियाँ के हक में
नसें फड़कती है यूँ देख चाल दुनियाँ की
नया नया सा डरा हूँ मैं दुनियाँ के हक में
-------------------------------sufi
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मौसम का क्या ठिकाना कब रंग बदल डाले
हर हाल के मंज़र में चलने का जुनूं रखना
दुनियाँ के बाज़ारों में अब चैन नही मिलता
अपनी जरूरतों में थोड़ा सा सुकूं रखना..
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माझी की मशक्कत में कोई कमी नही थी
दर्या का नशा ही बस कश्ती को लेके डूबा
धुँआं धुँआं हुई है हर ख्वाब की रिहायश
चंचल शरारा उठके बस्ती को लेके डूबा...
--------------------------------sufi
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मेरी तन्हाईयों को तेरी बेरूखी ने उकसाया
और कदम खुद ब खुद दहलीज़ पार करते गये..
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जिस्म उतारके तुम्हे ढूँढा है
रूह लपेटकर पाया है
रूहानी सफर की राहों में
बस तू ही तू हमसाया है
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बगैर तेरे हम जीना चाहें ये हो नही सकता
जख्म अपने सीना चाहे ये हो नही सकता
साथ तेरे जहर भी पी लेंगे मगर बिछुडके तो
आबो हयात पीना चाहें ये हो नही सकता..
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शुरू भी तुमसे हुआ खातिमा भी तुमसे हो
तेरे बगैर तो जीने शौक जाता रहा
जब से तेरी आँखों के पैमानो से जाम पिये
दिल से ही अपने मैखानों का शौक जाता रहा..
-----------------------------Sufi*
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फलक की भीड़ में महताब परिशां सा है
नजर सितारों की हर वक्त चाँदनी पर है
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पतझड़ के आँसुओं को बहारों तक पीना पडता है
दिल में एहसास के फूल यूँ ही तो नही खिला करते..
-------------------------------sufi*

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यूँ तो जज्बात पे वक्त के पहरे बहुत है
आपका प्यार ही हमें तितली सा बना देता है
--------------------------------sufi*
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यूँ फर्ज की नुमाइंदगी सिफारिश तो नही करती
दस्तूरे इश्क को मगर निभाना भी लाजिमी है
-----------------------------sufi*

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शोख़ अदाओं का तहलका जो भी हो
हम तो तेरी सादगी के दिवाने है
लोग लिखते रहे गुलाबों पे सुर्ख गज़लें
अपने तो काँटों के भी अफ़साने है.....
-------------------------------sufi*

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अपनी ख़ामोशियों का तन्हा सिलसिला लेकर
इस तरह कैसे जिये कोई, हौंसला लेकर
जिंदगी तू भी मिली हमको होके बेगानी
नाम तो मेरे हुई लेकिन फासला लेकर...
-------------------------------sufi*

जिन्दगी तो यूँ ही मेहरबान है हम पर
तुझसे बिछुड़ना गँवारा नही बस इस बात पे जिंदा है...
--------------------------------sufi*


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लिपट लिपटके जिनसे अपना मुक्कद्दर रो लेते है
तेरे एहसास की बुनियाद पर कुछ यादें खड़ी है मुझमें...
--------------------------------sufi
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मयस्सर जो भी रंग हो जिंदगी में लेकिन
बगैर तेरे हमसे कोई रंगोली नही बनती....
--------------------------------sufi*
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