Wednesday, 11 July 2018

न लौटने की हिम्मत है न सोचने की फुर्सत...



न लौटने की हिम्मत है न सोचने की फुर्सत...

बहुत दूर निकल आए है किसीको चाहते -चाहते...!!!


करनी है खुदा से गुजारिश,
तेरी दोस्ती के सिवा कोई बंदगी न मिले,
हर जनम में मिले दोस्त तेरे जैसा,
या फिर कभी जिंदगी न मिले।



आँखें उनकी" शबनमी' जैसे 
हर शह समेटे खुद में हैं

चेहरा उनका चाँद खिला है 
चादंनी को खुद में लपेटे हैं ...See more




ज़र्द हो जाये आफ़ताब, तो फिर क्या करोगे
कल जो मुरझायेंगे गुलाब, तो फिर क्या करोगे।

ख़ुदा का शुक्र मनाओ की, जज़्ब करती हूँ
लबों पे आ गये ज़ज़्बात, तो फिर क्या करोगे।...See more


कितना भी दुनिया के लिए हँस के जी लें हम,
रुला देती है फिर भी , किसी की कमी कभी-कभी...!!!






धड़कन काशी हो जाती है, 
जब साँसें प्यासी हो जाती है,
अँखियों में मदीना झलकता है,
जब रूह सन्यासी हो जाती है..!!





कितना भी दुनिया के लिए हँस के जी लें हम,
रुला देती है फिर भी , किसी की कमी कभी-कभी...!!!



प्यार में कोई दिल तोड़ देता है ,
दोस्ती मेँ कोई भरोसा तोड़ देता है ,
जिंदगी जीना तो कोई गुलाब से सीखे ,
जो खुद टूट कर , दो दिलों को जोड़ देता है....!!!



महफिल में यूँ ही मुस्कुराना पड़ता है 
सबके सामने ग़म को छुपाना भी पड़ता है

मोहब्बत की है तो उसूल भी निभायेंगे 
प्यार में खुद को मिटाना भी पड़ता है ...See more




शिकवे तो सभी को है जिंदगी से साहब..
पर जो मौज में जीना जानते है वो शिकायत नहीं करते..



तड़प रहीं हैं मेरी साँसें 
तुझे महसूस करने को, 
खुशबू की तरह बिखर जाओ 
तो कुछ बात बने।




फिर नज़र से पिला दीजिये
होश मेरे उड़ा दीजिये 🌸🌺

छोडिये दुश्मनी की रविश
अब जरा मुस्कुरा दीजिये 🍃🍂...See more




गुलाब तो टूट कर बिखर जाता है ,
पर खुशबु हवा में बरकरार रहती है ,
जाने वाले तो छोड़ के चले जाते हैं ,
पर एहसास तो , दिलों में बरकरार रहते हैं.....!!!




तेरा ख्याल दिल से मिटाया नहीं अभी 
बेदर्द मैंने तुझ को भुलाया नहीं अभी

कल तुने मुस्कुरा के जलाया था खुद जिसे 
सीने से वो चराग बुझाया नहीं अभी ...See more

मैं बन जाऊँ शायरी तुम्हारी
गर तुम मेरे अल्फ़ाज़ बनो
मैं बन जाऊँ क़रार तुम्हारा
गर तुम मेरा सुकून बनो
मैं बन जाऊँ ख़्वाब तुम्हारा...See more




इक वो हैं जो महबूब ज़माने के लियें हैं,
इक हम है जो बस ठोकरें खाने के लियें हैं..

वादा ना निभाना तो कभी छोड़ के जाना,
सब काम तेरे मुझ को सताने के लियें हैं.....See more



तू अगर शब्द है तो मेरे ज़हन में उतर जा....
और अगर दर्द है तो मेरे दिल में बिखर जा....
तू जो आईना है तो ख़ुद में सँवरने दे मुझे....
और अगर प्यार है तो मेरी रूह में ठहर जा..




समझदारी अच्छी नहीं है
ये फनकारी अच्छी नहीं है

तुम्हे आंधी से लड़ना है चरागों
ये तैयारी अच्छी नहीं है...See more




फूल जब लाल लाल आते हैं,
बस तुम्हारे ख़याल आते हैं.

हमको कैसे मिला लिया ख़ुद से,
तुमको कैसे कमाल आते हैं....See more



वो कहती है की औरो के संग भी तुम्हारा प्यार है
हमारे सिवा भी तुम्हारे और कई यार है
..
उसे कौन समझाए
की मेरी जिंदगी में बस उसी के लिए जगह है...See more



चाहती तो है कि कोई हो तो तुझसे प्यार करे टूटकर
पर डरती है आशिक की शक्ल मैं कौन निकल आए दलाल ए लड़की

मुझसे पूछ के देख न कि क्या गुनाह है तेरा
ऊपर वाले से क्यूँ पूछती हैं यह सवाल ए लड़की...See more


Saturday, 7 July 2018

Pyar Mohabbat Shayari:-



Pyar Mohabbat Shayari:- 

सच्चा प्यार कभी नहीं मरता,
मोहब्बत करने वाला इस जहाँ से कभी नही डरता.


खुद को भी अपनों से मिला डाला हूँ,
अपनी मौत अपनों से निकाल डाला हूँ.

दिल बेताब हो रहा है सिर्फ तुम्हारे ही वास्ते,
दिल घायल भी होगा, सिर्फ तुम्हारे ही वास्ते.


हम आप कयामत से गुजर क्यों नही जाते,
जीने की शिकायत है तो मर क्यों नहीं जाते.

वो बेवफाई है अब भी ये दिल मानता नही,
कमबख्त ना समझ है उन्हें जानता नहीं.

यूँ तो मतलब हमारा सीधा साधा है,
पर बताएं तो कैसे बताएं क्या इरादा हैं.


सिर्फ चाहा ही नही तुमकों पाना चाहता हूँ,
दुःख दर्द जिंदगी का बांटना चाहता हूँ.

कई ऐसे भी मजनूं है जो आहे भरते रहते हैं,
कोई चाहे या न चाहे यूँ ही मरते रहते है.

तुम बुलाते हो तो मना नही होता,
चाहते है मिलन पर सामना नही होता.

आते हैं जब याद बेईमान तेरे वायदे,
सोये सोये लगते है दिल के इरादे.


प्यार की डगार पर चलाया क्यों न था,
मीठी-मीठी बातों से फसाया क्यों न था.

चूमा तो हवाओं ने और मुझ पर बिगड़ बैठे,
मैंने तो तुम्हें चाहा मुझसे ही अकड़ बैठे.

यह इंतजार का दुःख अब सहा नही जाना,
तड़प रही हैं मुहब्बत अब रहा नही जाता.
2 Line Pyar Mohabbat Shayari In Hindi

न समझे है न समझेगे वो दास्तां मेरी,
कि उनके सामने खुलती नही जुबां मेरी.

बातों ही बातों में आप बन बैठे दिलदार क्यों,
अपना बना के पास बुला के फिर हमसें तकरार क्यों.


कुछ तो ख्याल करो अपना कोई गम ना करो,
तुम शोख जवानी पर कुछ तो रहम करो.

न तुझ पर इखितयार है न दिल पर ऐतबार है,
फिर भी न जाने क्यों मुझे तेरा इंतजार है.

बार बार मिलते हैं, लेकिन नई अदा से,
ये नैन दोनों के फिर रहे रोज प्यासे.

हमकों दुआएं दो तुम्हें दिलवर बनाया है,
सारी दुनिया ठुकराकर तुम्हें दिल में बसाया है.

प्यार जब जवां हुआ तो मौत मेहरवान हुई,
दिल जा जब चमन खिला तो खत्म दास्तां हुई.

हर शब्द तेरे चुभते हैं दिल में तीरों की तरह,
करते हो एक्टिंग बिलकुल हीरों की तरह.

दिल तो यह चाहे कि मेरा भी कोई हो,
मैं कहाँ जाऊं जो हासिल यह ख़ुशी हो.

कर न सके जो बातें कभी जी भरके,
फिर गये वो इकरारे मोहब्बत करके.

हम दिन रात तेरी यादों में खोये रहते है,
सब समझते हैं, कि हम सोएं रहते है.

बर्बाद किया जिसने हमकों उनकों दुआ देते है,
दर्द से भर आता है दिल उसी का नाम लेते है.




खुली थी आँख की दिल में समा गये वो,
गए जब सीने में आग लगा गये वो.

तरसते हैं हम ऐसे दिलदार को,
जो दिल में बसा ले मेरे प्यार को.

मिलें जो भी गम सीने से लगाना सीखों,
दिल की आग को अश्कों से बुझाना सीखो.

इश्क के मरीज तन्हाई में रोया करते हैं,
नीद ही नही आती जब ये सोया करते है.

मेरे अरमां भी ले जाते मेरे बसंत भी ले जाते,
नजर से छिनकर अपनी हँसी सूरत भी ले जाते.

रंग लाए मेरे रंग में यह जी चाहता है,
ले साथ तेरा यही जी चाहता है.

चाहे करार जिससे वही दर्द देता है,
प्यार में दगा हर मर्द देता है.

हम एक नही हजारों से प्रेम करते हैं,
दुश्मनी का नही प्यार का वार करते है.

दिल न जाने क्यों झूठों का एतवार किया जाता है,
वो आयेंगे कभी भी फिर भी इंतजार किया करता है.

दिल पर जो गुजरती है दिल भी नहीं लगता,
दिल पर चोट जब लगती है वह बतला भी नहीं सकता.

नाम तेरा जुवां पर तेरी याद दिल में है,
जाने वाले अब जो आजा दिल बड़ी मुश्किल में है.

आपकी नजरों में हम बेगाने हो गए,
पर कसम आपकों हम तो दीवाने हो गये.

जख्में दिल जख्में जिगर तेरी नजर कर गईं,
तेरी एक हर खता इस दिल में घर कर गईं.

बिगड़ना है तुमसे मिलके क्या करे हम,
गम जमाने से मिला शिकवा कईं करे हम.

मोहब्बत शायरी 2 लाइन तथा शायरी मोहब्बत भरी कुछ पक्तियां इनके साथ मोहब्बत शायरी इमेज और इश्क मोहब्बत की शायरी आप पढ़ रहे है. मेरी तेरी मोहब्बत शायरी दोस्त के लिए दोस्ती में प्यार पर शायरी मोहब्बत 2018. कुछ चुनिदा मोहब्बत के शेर और मोहब्बत की गजल आपके और आपके जिगरी यार के लिए.


जो भी गम मिलता सीने से लगा लेते है,
दिल की आग को हम अश्को से बुझा लेते है.

दिल ही ऐसा मिला है हमकों नसीब से
पहले न देखे बिना तुझकों करीब है.

तेरे लिए मेरे दिल की याद है जहाँ,
तड़पाकर मुझको जालीम तू छुप गया कहाँ.

तुम दिल का राज कहाँ तक छुपाओगी,
छुपके मेरी निगाहों से जाने न पाओगी.

यह मानते हैं कि हम बड़े बदनसीब हैं,
फिर भी ख़ुशी है कि हम उनके करीब है.

मेरी खामोशियों में खोया हुआ तूफ़ान है,
दिल आह का धुआं पर होठों पर मुस्कान है.

दुनियां में तेरे लिए अब कोई ख़ुशी नहीं,
जीने को जी रहे है मगर यह जिंदगी नही.

प्रेम की हमने अब खुदाई देख ली,
एक बेवफा की बेवफाई देख ली.

सागर में पानी है, गागर भरा न जाय,
दिल में जो बात है, वो खत में लिखी न जाए.

जो दिल को तसल्ली दे वो साज उठा लाओं,
दम घुटने से पहले ही आवाज उठा लाओं.

रात कितनी बार पी मुझकों याद नहीं,
बस इतनी याद है कि प्यास बुझी नहीं.

न चाहे अपने तो गैरों से दिल बहला लेगे,
न मिले फूल तो काँटों को गले लगा लेंगे.

गैरों का साया अपने ऊपर पड़ने न देंगे,
कुछ न कर सके तो जान ही दे देगे हम.
Pyar Mohabbat Shayari SMS Hindi Me

जी में क्या समझते वे आसान लगाना दिलवर,
जान ले लेता है मेरी जान लगाना दिलवर.

ले लिया दिल हमारा प्यार की बातें करके,
अब क्यों तड़पाते हो हमको अपने से दूर करके.

दुनियां को मंजूर नही कोई मंजिल मिले मुझे,
किस्मत को मंजूर नही कि तू ही मुझे मिले.

किस्मत ने क्या चाल चली दिल ही मिलकर रह गये,
सपने सच होते मिटटी में मिलकर रह गयें.

क्या क्या ख़्वाब देखे थे इस दिल में,
मुफ्त हुआ बदनाम मेरी जान तेरी महफिल में.

देखे थे इन निगाहों ने सपने बहार के,
किस्मत ने दर्द भर दिया बदले में प्यार के.

बता क्या क्या हमारे दिल पर गुजरती है,
दिन भर ये निगाहें तेरे मिलने को तरसती है.

ना आने का बहाना है न मिलने का ठिकाना है,
चाहते हैं कहना पर चुप रहे क्या जमाना है.

आपने जब से मेरे दिल पर इनायत की है,
तभी से ऐ जाने वफा तुमसे मुहब्बत की है.
pyar mohabbat shayari for wife

जितने बेताब थे हम मिलने को उम्र भर के लिए,
उतने ही किस्मत ने जुदा कर दिया हमेशा के लिए.

दिल की तमन्ना थी कोई तो हो सहारा,
किस्मत को मंजूर यही रहूँ मै बेसहारा.

खा खाकर ठोकरे भी चल रहे है हम,
नही मंजिल की तमन्ना बताएं कोई क्या करे हम.

मुकाबला हमसे करो और किसी से नहीं,
दिल भी हमी को दो और किसी को नहीं.

मुकाबला कर लिया है प्यार भी करेगे,
दिल की दुनियां में हम नाम भी करेगे.

आँखों में प्यार है, दिल में बरसात है,
तेरे लिए सजनी मुझकों तेरा इंतजार है.

हम ऐसा खेल दिख्लाएगे दुनिया की भी नजर भाएगे,
तुम कहो तो मै प्यार तुम पर ही लाएगा.

लहरें बहुत तेज है गोते लगा लो,
प्यार के दरिया में कूदकर तुम मुझको समा लो.

Sunday, 1 July 2018

माता-पिता पर अनमोल विचार


माता-पिता पर अनमोल विचार



– माता-पिता बच्चों के लिए ईश्वर का बरदान होते हैं. माँ-बाप अपने बच्चों का सारा दुःख-दर्द अपना बना लेते हैं और अपना सारा सुख अपने बच्चों को दे देते हैं. जरूर पढ़े.

चाहे लाख करो तुम पूजा और तीर्थ करो हज़ार,
मगर माँ-बाप को ठुकराया तो सबकुछ है बेकार.
बेस्ट पेरेंट्स कोट्स | Best Parents Quotes
इस दुनिया में बिना स्वार्थ के सिर्फ़ माता-पिता ही प्यार कर सकते हैं.
पानी अपना सम्पूर्ण जीवन देकर वृक्ष को बड़ा करता हैं, इसलिए शायद पानी लकड़ी को कभी डूबने नहीं देता…माँ-बाप का भी कुछ ऐसा ही सिद्धांत हैं.
माँ और बाप ऐसे होते हैं जिनके होने का एहसास कभी नहीं होता लेकिन ना होने का एहसास बहुत होता हैं.
अपनी सफलताओं का रौब माँ-बाप को मत दिखाओं उसने अपनी जिन्दगी हार कर आपको जिताया हैं.
माँ की ममता और पिता की क्षमता का अंदाजा लगाना भी संभव नहीं हैं.
मिलने को तो हज़ारों लोग मिल जाते हैं, लेकिन हज़ारों गलतियाँ माफ़ करने वाले ‘माता-पिता’ दुबारा नहीं मिलते.
जिस घर में माँ-बाप हँसते है, उसी घर में भगवान बसते हैं.
कहते है कि पहला प्यार कभी भुलाया नहीं जाता फिर पता नहीं लोग क्यों अपने ‘माता-पिता’ का प्यार भूल जाते हैं.
कुछ ऐसा काम करो कि आपके माता-पिता अपनी प्रार्थना में कहें, हे प्रभु – हमें हर जन्म में ऐसी ही सन्तान देना.
भगवान न दिखाई देने वाले माता-पिता है और माता-पिता दिखाई देने वाले भगवान हैं.
बस इतनी सी दुआ है, ऐ ख़ुदा – जिन लम्हों में मेरे माँ-बाप मुस्कुरा रहे हो वो लम्हें कभी खत्म ना हो.
माँ-बाप वह हस्ती है, जिसकी तारीफ़ के लिए दुनिया में शब्द नहीं मिलते.
माँ-बाप वह हैं, जिसकी ख़ुशी हमारे हँसी से हैं, और दुःख हमारे गम से…
माता-पिता, भले ही पढ़े-लिखे हो या न हो पर दुनिया का दुर्लभ व महत्वपूर्ण ज्ञान हमें माँ से ही प्राप्त होता हैं.
इज्जत भी मिलेगी, दौलत भी मिलेगी, सेवा करों माता-पिता की जन्नत भी मिलेगी.
तूने जब धरती पर पहली साँस ली तब तेरे माता-पिता तेरे पास थे, माता-पिता जब अंतिम साँस ले तब तू उनके पास रहना.
जिस घर में माता-पिता दोनों होते हैं उस घर को स्वर्ग कहते हैं.

मोहब्बत शायरी |


मोहब्बत शायरी |

मोहब्बत पर लाखों क़िताबे लिखी जा चुकी हैं पर मोहब्बत के बारें में अभी भी बहुत कुछ लिखा जाना बाकी हैं. मोहब्बत (इश्क) को लोग ख़ुदा की इबादत मानते हैं. 
बेस्ट मोहब्बत शायरी |

ना जाने मोहब्बत में कितने अफ़साने बन जाते हैं,
शमां जिसको भी जलाती हैं वो परवाने बन जाते हैं,
कुछ हासिल करना ही इश्क की मंजिल नही होती
किसी को खोकर भी कुछ लोग दीवाने बन जाते हैं.

मेरे आंसुओं के दाम चुका ना पाओगे तुम,
मोहब्बत तो सम्भली नही तो दर्द क्या सम्भाल पाओगे तुम.

लोग कहते हैं कि मोहब्बत एक बार होती हैं,
लेकिन मैं जब-जब उसे देखू मुझे हर बार होती हैं.

मासूम मोहब्बत का बस इतना फ़साना हैं,
कागज़ की हवेली हैं, बारिश का जमाना हैं.

मुझे तुझ से नही तेरे अंदर बैठे रब से मोहब्बत हैं,
तुम तो बस इस जरिया हो मेरी इबादत का…

मोहब्बत को हद से गुजर तो जाने दो,
वो रोयेंगे जरूर हमें बिखर तो जाने दो.

कुछ लोग इस कदर दिल में उतर जाते हैं,
उनको दिल से निकालो तो जान निकल जाती हैं.

राज खोल देते हैं नाजुक से इशारे अक्सर,
कितनी ख़ामोश मोहब्बत की जुबान होती हैं.

ना हीरो की तमन्ना है और ना परियों पे मरता हूँ,
वो एक भोली से लड़की है जिससे मैं मोहब्बत करता हूँ.

अदा से देख लो जाता रहें गिला दिल का,
बस एक निगाह पे ठहरा है फैसला दिल का.

मोहब्बत किसी से करनी हो तो हद में रहकर करना,
वरना किसी को बेपनाह चाहोगे तो टूटकर बिखर जाओगे.

ऐसा नही कि दिल में तेरी तस्वीर नहीं थी,
पर हाथों में तेरे नाम की लकीर नहीं थी.

आज दिल से दिल को तू टच कर दे,
मोहब्बत में देखे सारे ख्व़ाब सच कर दे.

मोहब्बत में उनके एतबार कर बैठे,
यहीं खता थी कि हम उनसे प्यार कर बैठे.

अपनी मोहब्बत की बस इतनी सी कहानी हैं,
टूटी हुई कश्ती और ठहरा हुआ पानी हैं.

मैंने कब कहा तू मुझे गुलाब दे,
या फिर अपनी मोहब्बत से जवाज दे,
आज बहुत उदास है मन मेरा…
गैर बनके ही सही तू बस मुझे आव़ाज दे…

मोहब्बत का कोई रंग नहीं फिर भी वो रंगीन हैं,
प्यार का कोई चेहरा नहीं फिर भी वो हसीन हैं.

मेरी पलको की नमी इस बात की गवाह हैं,
मुझे आज भी तुमसे मोहब्बत बेपनाह हैं.

बस यहीं सोच कर तुझ से मोहब्बत करता हूँ,
मेरा तो कोई नही, मगर तेरा तो कोई हो…

नींद शायरी |

नींद शायरी |


 बहुत सारे वजह होते हैं जब व्यक्ति को रात में नींद नही आती हैं, मगर प्यार में जब नींद रातों को नहीं आती हैं तो रातें और भी सुहानी हो जाती हैं. इस पोस्ट में नींद पर बेहतरीन शायरी दी गयी हैं, 

इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई,
हम न सोए रात थक कर सो गई.
राही मासूम रजा

नींद चुराने वाले पूछते हैं सोते क्यूँ नहीं,
इतनी ही फ़िक्र है तो फिर हमारे होते क्यूँ नही.

ख्वाहिश चाहत से बढ़ गई तू इबादत हो गई हैं,
मेरी नींदों को भी तेरे सपनों की आदत हो गई हैं.

सो जाने दे मुझे नींद की गहराईयों में,
जीने नहीं देती उसकी यादें तन्हाईयों में.

जागते रहने से ज्यादा मुझे नींद प्यारी हैं,
क्योकि हकीकत में न सही पर सपनों में तो वो हमारी हैं.

वो आँखों में अरमान जगा दिया करते हैं,
फिर चुपके से नींद चुरा लिया करते हैं.

तन्हाईयों में मुस्कुराना इश्क हैं,
एक बात को सबसे छुपाना इश्क हैं,
यूं तो नींद नहीं आती हमें रात भर
मगर सोते-सोते जागना और जागते-जागते सोना इश्क हैं.

दिल की किताब में गुलाब उनका था,
रात की नींद में ख्वाब उनका था,
कितना प्यार करते हो जब हमने पूछा,
मर जायेंगे तुम्हारे बिना ये जबाब उनका था.

गुम है मेरी आँखों से नींद आज भी,
याद करके रात कट जाती हैं आज भी.

नींद आये या ना आये,
चिराग बुझा दिया करो,
यूँ रात भर किसी का जलना
हमसे देखा नहीं जाता.

एक नींद है जो रात भर नहीं आती हैं,
एक नसीब हैं जो ना जाने कबसे सो रहा हैं.

बस यही दो मसले जिन्दगी भर ना हल हुए,
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए.

काश कोई एक रात ऐसी भी आ जाये,
नींद आ जाये पर तेरी याद न आये.

Friday, 8 June 2018

सीख-

सीख-
एक आदमी ने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की से शादी की। शादी के बाद दोनो की ज़िन्दगी बहुत प्यार से गुजर रही थी। वह उसे बहुत चाहता था और उसकी खूबसूरती की हमेशा तारीफ़ किया करता था। लेकिन कुछ महीनों के बाद लड़की चर्मरोग (skinDisease) से ग्रसित हो गई और धीरे-धीरे उसकी खूबसूरती जाने लगी। खुद को इस तरह देख उसके मन में डर समाने लगा कि यदि वह बदसूरत हो गई, तो उसका पति उससे नफ़रत करने लगेगा और वह उसकी नफ़रत बर्दाशत नहीं कर पाएगी।

इस बीच एकदिन पति को किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा। काम ख़त्म कर जब वह घर वापस लौट रहा था, उसका accident हो गया। Accident में उसने अपनी दोनो आँखें खो दी। लेकिन इसके बावजूद भी उन दोनो की जिंदगी सामान्य तरीके से आगे बढ़ती रही। समय गुजरता रहा और अपने चर्मरोग के कारण लड़की ने अपनी खूबसूरती पूरी तरह गंवा दी। वह बदसूरत हो गई, लेकिन अंधे पति को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था। इसलिए इसका उनके खुशहाल विवाहित जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

वह उसे उसी तरह प्यार करता रहा। एकदिन उस लड़की की मौत हो गई। पति अब अकेला हो गया था। वह बहुत दु:खी था. वह उस शहर को छोड़कर जाना चाहता था।

उसने अंतिम संस्कार की सारी क्रियाविधि पूर्ण की और शहर छोड़कर जाने लगा. तभी एक आदमी ने पीछे से उसे पुकारा और पास आकर कहा, “अब तुम बिना सहारे के अकेले कैसे चल पाओगे? इतने साल तो तुम्हारी पत्नितुम्हारी मदद किया करती थी.” पति ने जवाब दिया, “दोस्त! मैं अंधा नहीं हूँ। मैं बस अंधा होने का नाटक कर रहा था। क्योंकि यदि मेरी पत्नि को पता चल जाता कि मैं उसकी बदसूरती देख सकता हूँ, तो यह उसे उसके रोग से ज्यादा दर्द देता।
इसलिए मैंने इतने साल अंधे होने का दिखावा किया. वह बहुत अच्छी पत्नि थी. मैं बस उसे खुश रखना चाहता था.” .. ...

सीख-- खुश रहने के लिए हमें भी एक दूसरे की कमियो के प्रति आखे बंद कर लेनी चाहिए.. और उन कमियो को नजरन्दाज कर देना चाहिए... 
आप लोगों को यह कहानी कैसी लगी मित्रों जवाब जरूर दीजिएगा। और शेयर भी करे 

पर्ची की आख़री लाइन पढ़ते पढ़ते रागिनी की भी आंखे नम हो गई



मुझे अगले संडे को किटी पार्टी में जाना है सुदेश,तुम तो जानते हो मेरी फ्रेंड्स किटी में कितनी सज सवंर कर आती है ...और मैंने तो अभी तक भी शॉपिंग नहीं की है..... रागिनी आईना के सामने खड़ी होकर साड़ी के पल्लू अपने कंधे पर सलीके से जमाते हुए बोली...., सुदेश इस बार मैं किटी शॉपिंग के लिए बहुत लेट हो गयी हूँ.... और किटी के बाद मुझे कच्ची बस्ती के बच्चों के पास भी जाना है...वहाँ मैं कुछ न्यूज़ पेपर वालो को भी बुलाऊंगी अगले दिन के न्यूज़ पेपर में मेरी फोटो के लिए ......अब देखो ना सुदेश , मिसेस सक्सेना ने तो वृद्धाश्रम जाकर मिठाई और कपड़े बाँट कर, अपनी पोस्ट कल ही फेसबुक पर डाल भी दी.... और मिसेस शर्मा भी अनाथालय में गिफ्ट बांटती हुई अपनी फोटो इंस्टाग्राम में डाली है,..हर शुभ काम मेरे दिमाग में लेट ही आता है ...... सुदेश तुम सुन भी रहे हो मै क्या बोल रही हूँ...... सुदेश झुंझला कर बोला हां यार सुन रहा हूँ मैंने तुझे कब मना किया था, शॉपिंग के लिए, ड्राइवर को ले lके चली जाती और तुम भी किसी आश्रम में दें आती जो तुम्हें देना है, और अपनी नेकी करती तस्वीरें डाल देतीं फेसबुक और न्यूज़ पेपर में .... मुझे क्यूँ सुना रही हो.... शर्ट की बटन लगाते हुए सुदेश बोला अब और कितनी देर लगाओगी तैयार होने में..... मुझे आज ही अपने स्टाफ को बोनस बांटने भी जाना है जल्दी करो मेरे पास....." टाईम" नहीं है... कह कर रूम से बाहर निकल गया सुदेश तभी बाहर लॉन मे बैठी "माँ" पर नजर पड़ी,,, कुछ सोचते हुए वापिस रूम में आया।....रागिनी हम शॉपिंग के लिए जा रहे है.... क्या तुमने माँ से पूछा कि उसको भी कुछ चाहिए क्या .... रागिनी बोली.... नहीं ...वैसे भी अब उनको इस उम्र मे क्या चाहिए यार, दो वक्त की रोटी और दो जोड़ी कपड़े इसमे पूछने वाली क्या बात है..... वो बात नहीं है रागिनी ... "माँ पहली बार गर्मियों की छुट्टियों में हमारे घर रुकी हुई है" वरना तो हर बार गाँव में ही रहती है तो... औपचारिकता के लिए ही पूछ लेती......... अरे, इतना ही माँ पर प्यार उमड़ रहा है तो खुद क्यूँ नही पूछ लेते ....झल्लाकर चीखी थी रागिनी , और कंधे पर हेंड बैग लटकाते हुए तेजी से बाहर निकल गयी...... सुदेश माँ के पास जाकर बोला माँ .....मैं और रागिनी उसकी शॉपिंग के लिए बाजार जा रहे हैं आपको कुछ चाहिए तो..... माँ बीच में ही बोल पड़ी मुझे कुछ नही चाहिए बेटा.... सोच लो माँ अगर कुछ चाहिये तो बता दीजिए..... सुदेश के बहुत जोर देने पर माँ बोली ठीक है तुम रुको मै लिख कर दे देती हूँ, तुम्हें और बहू को बहुत खरीदारी करनी है कहीं भूल ना जाओ कहकर, सुदेश की माँ अपने कमरे में चली गई, कुछ देर बाद बाहर आई और लिस्ट सुदेश को थमा दी।..
*
सुदेश ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, देखा रागिनी.... माँ को भी कुछ चाहिए था पर बोल नही रही थी मेरे जिद्द करने पर लिस्ट बना कर दी है,,..... "इंसान जब तक जिंदा रहता है, रोटी और कपड़े के अलावा भी बहुत कुछ चाहिये होता है" .....अच्छा बाबा ठीक है पर पहले मैं अपनी जरूरत की सारी सामान लूँगी बाद में आप अपनी माँ का लिस्ट देखते रहना कह कर कार से बाहर निकल गयी.... पूरी खरीदारी करने के बाद रागिनी बोली अब मैं बहुत थक गयी हूँ, मैं कार में Ac चालू करके बैठती हूँ आप माँ जी का सामान देख लो,,, अरे रागिनी तुम भी रुको फिर साथ चलते हैं मुझे भी जल्दी है,..... देखता हूँ माँ ने क्या मंगाया है... कहकर सुदेश ने माँ की लिखी पर्ची जेब से निकाली , .....बाप रे इतनी लंबी लिस्ट पता नही क्या क्या मंगाया होगा ..... जरूर अपने गाँव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारे सामान मंगाया होगा ....... और बनो "श्रवण कुमार" कहते हुए गुस्से से सुदेश की ओर देखने लगी,......
*
पर ये क्या सुदेश की आंखों में आंसू........ और लिस्ट पकड़े हुए सुदेश का हाथ सूखे पत्ते की तरह हिल रहा था... पूरा शरीर काँप रहा था,, रागिनी बहुत घबरा गयी क्या हुआ ऐसा क्या मांग ली है तुम्हारी माँ ने.... कह कर सुदेश की हाथ से पर्ची झपट ली.... हैरान थी रागिनी भी इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे..... पर्ची में लिखा था....
*
बेटा सुदेश मुझे तुमसे किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए फिर भी तुम जिद्द कर रहे हो तो, और तुम्हारे "शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो फुर्सत के कुछ" पल "मेरे लिए लेते आना.... ढलती साँझ हो गयी हूँ अब मैं सुदेश , मुझे गहराते अँधियारे से डर लगने लगा है, बहुत डर लगता है पल पल मेरी तरफ बढ़ रही मौत को देखकर.. जानती हूँ मौत को टाला नही जा सकता शाश्वत सत्य है,...... पर अकेले पन से बहुत घबराहट होती है सुदेश ...... इसलिए बेटा जब तक तुम्हारे घर पर हूँ कुछ पल बैठा कर मेरे पास कुछ देर के लिए ही सही बाँट लिया कर मेरे बुढ़ापे का अकेलापन अपने साथ ... बिन दीप जलाए ही रौशन हो जाएगी मेरी जीवन की साँझ बेटा ..... कितने साल हो गए बेटा तूझे स्पर्श ही नहीं किया ... एकबार फिर से आ.... मेरी गोद में सर रख और मै ममता भीजे हथेली से सहलाऊँ तेरे सर को..... एक बार फिर से इतराए मेरा हृदय मेरे अपनों को करीब बहुत करीब पा कर बेटा ...और फिर मुस्कुरा कर मिलूं मौत के गले ....क्या पता बेटा अगली गर्मी की छुट्टियों तक रहूँ या ना रहूँ, .......
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पर्ची की आख़री लाइन पढ़ते पढ़ते रागिनी की भी आंखे नम हो गई ....

Wednesday, 6 June 2018

"सीख"



कहानी कुछ लम्बी है

पढ़ना अवश्य।

"सीख"
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भोर के समय सूर्यदेवता ने अपना प्रसार क्षेत्र विस्तृत करना आरंभ कर दिया था. सत्य कुमार बालकनी में आंखें मूंदे बैठे थे, तभी किचन से उनकी धर्मपत्नी सुधा चाय लेकर आई ।

“लो, ऐसे कैसे बैठे हो, अभी तो उठे हो, फिर आंख लग गई क्या? क्या बात है, तबियत ठीक नहीं लग रही है क्या?” सुधा ने मेज़ पर चाय की ट्रे रखते हुए पूछा. सत्य कुमार ने धीमे से आंखें खोलकर उन्हें देखा और पुन: आंखें मूंद लीं.

सुधा कप में चाय उड़ेलते हुए दबे स्वर में बोलने लगी,

“मुझे मालूम है, दीपू का वापस जाना आपको खल रहा है. मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा है, लेकिन क्या करें. हर बार ऐसा ही होता है- बच्चे आते हैं, कुछ दिनों की रौनक होती है और वे चले जाते हैं.”

मेरठ यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रवक्ता और लेखक सत्य कुमार की विद्वत्ता उनके चेहरे से साफ़ झलकती थी. उनकी पुस्तकों से आनेवाली रॉयल्टी रिटायरमेंट के बाद पनपनेवाले अर्थिक अभावों को दूर फेंकने में सक्षम थी. उनके दो बेटों में छोटा सुदीप अपनी सहपाठिनी के साथ प्रेम -विवाह कर मुम्बई में सेटल हो गया था. विवाह के बाद वो उनसे ज़्यादा मतलब नहीं रखता था. बड़ा बेटा दीपक कंप्यूटर इंजीनियर था. उसने अपने माता-पिता की पसंद से अरेन्ज्ड मैरिज की थी. उसकी पत्नी मधु सुंदर, सुशील और हर काम में निपुण, अपने सास-ससुर की लाडली बहू थी. दीपक और मधु कुछ वर्षों से लंदन में थे और दोनों वहीं सेटल होने की सोच रहे थे.

दीपक का लंदन रुक जाना सत्य कुमार को अच्छा नहीं लगा, मगर सुधा ने उन्हें समझा दिया था कि अपनी ममता को बच्चों की तऱक़्क़ी के आड़े नहीं लाना चाहिए और वैसे भी वो लंदन रहेगा तो भी क्या, आपके रिटायरमेंट के बाद हम ही उसके पास चले जाएंगे. दीपक और मधु उनके पास साल में एक बार 10-15 दिनों के लिए अवश्य आते और उनसे साथ लंदन चलने का अनुरोध करते. मधु जितने दिन वहां रहती, अपने सास-ससुर की ख़ूब सेवा करती.

आज सत्य कुमार को रिटायर हुए पूरे दो वर्ष हो चुके थे, मगर इन दो वर्षों में दीपक ने उन्हें लंदन आने के लिए भूले से भी नहीं कहा था. सुधा उनसे बार-बार ज़िद किया करती थी, ‘चलो हम ही लंदन चलें’, लेकिन वो बड़े ही स्वाभिमानी व्यक्ति थे और बिना बुलावे के कहीं जाना स्वयं का अपमान समझते थे.

उनकी बंद आंखों के पीछे कल रात के उस दृश्य की बारम्बार पुनरावृत्ति हो रही थी, जो उन्होंने दुर्भाग्यवश अनजाने में देखा था… दीपक और मधु अपने कमरे में वापसी के लिए पैकिंग कर रहे थे, दोनों में कुछ बहस छिड़ी हुई थी,

“देखो-तुम भूले से भी मम्मी-पापा को लंदन आने के लिए मत कहना, वो दोनों तो कब से तुम्हारी पहल की ताक में बैठे हैं, मुझसे उनके नखरे नहीं उठाए जाएंगे… मुझे ही पता है, मैं यहां कैसे 15-20 दिन निकालती हूं. सारा दिन नौकरानियों की तरह पिसते रहो, फिर भी इनके नखरे ढीले नहीं होते. चाहो तो हर महीने कुछ पैसे भेज दिया करो, हमें कहीं कोई कमी नहीं आएगी…” मधु बार-बार गर्दन झटकते हुए बड़बड़ाए जा रही थी.

“कैसी बातें कर रही हो? मुझे तुम्हारी उतनी ही चिन्ता है जितनी कि तुम्हें. तुम फ़िक्र मत करो, मैं उनसे कभी नहीं कहूंगा. मुझे पता है, पापा बिना कहे लंदन कभी नहीं आएंगे.”

दीपक मधु के गालों को थपथपाता हुआ उसे समझा रहा था.

“मुझे तो ख़ुद उनके साथ एडजस्ट करने में द़िक़्क़त होती है. वे अभी भी हमें बच्चा ही समझते हैं. अपने हिसाब से ही चलाना चाहते हैं. समझते ही नहीं कि उनकी लाइफ़ अलग है, हमारी लाइफ़ अलग… उनकी इसी आदत की वजह से सुदीप ने भी उनसे कन्नी काट ली…” दीपक धाराप्रवाह बोलता चला जा रहा था. दोनों इस बात से बेख़बर थे कि दरवाज़े के पास खड़े सत्य बुत बने उनके इस वार्तालाप को सुन रहे थे.

सत्य कुमार सन्न थे… उनका मस्तिष्क कुछ सोचने-समझने के दायरे से बाहर जा चुका था, अत: वो उन दोनों के सामने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाए. उनको सी-ऑफ़ करने तक का समय उन्होंने कैसे कांटों पर चलकर गुज़ारा था, ये बस उनका दिल ही जानता था. दीपक और मधु जिनकी वो मिसाल दिया करते थे, उन्हें इतना बड़ा धोखा दे रहे थे… जाते हुए दोनों ने कितने प्यार और आदर के साथ उनके पैर छुए थे. ये प्यार… ये अपनापन… सब दिखावा… छि:… उनका मन पुन: घृणा और क्षोभ से भर उठा. वो यह भी तय नहीं कर पा रहे थे कि सुधा को इस बारे में बताएं अथवा नहीं, ये सोचकर कि क्या वो यह सब सह पाएगी… सत्य बार-बार बीती रात के घटनाक्रम को याद कर दुख के महासागर में गोते लगाने लगे.

समय अपनी ऱफ़्तार से गुज़रता जा रहा था, मगर सत्य कुमार का जीवन जैसे उसी मोड़ पर थम गया था. अपनी आन्तरिक वेदना को प्रत्यक्ष रूप से बाहर प्रकट नहीं कर पाने के कारण वो भीतर-ही-भीतर घुटते जा रहे थे. उस घटना के बाद उनके स्वभाव में भी काफ़ी नकारात्मक परिवर्तन आ गया. दुख को भीतर-ही-भीतर घोट लेने के कारण वे चिड़चिड़े होते जा रहे थे. बच्चों से मिली उपेक्षा से स्वयं को अवांछित महसूस करने लगे थे. धीरे-धीरे सुधा भी उनके दर्द को महसूस करने लगी. दोनों मन-ही-मन घुटते, मगर एक-दूसरे से कुछ नहीं कहते. लेकिन अभी भी उनके दिल के किसी कोने में उम्मीद की एक धुंधली किरण बाकी थी कि शायद कभी किसी दिन बच्चों को उनकी ज़रूरत महसूस हो और वो उन्हें जबरन अपने साथ ले जाएं, ये उम्मीद ही उनके अंत:करण की वेदना को और बढ़ा रही थी.

एक दिन सत्य कुमार किसी काम से हरिद्वार जा रहे थे. उन्हें चले हुए 3-4 घंटे हो चुके थे, तभी कार से अचानक खर्र-खर्र की आवाज़ें आने लगीं. इससे पहले कि वो कुछ समझ पाते, कार थोड़ी दूर जाकर रुक गई और दोबारा स्टार्ट नहीं हुई. सिर पर सूरज चढ़कर मुंह चिढ़ा रहा था. पसीने से लथपथ सत्य लाचार खड़े अपनी कार पर झुंझला रहे थे.

“थोड़ा पानी पी लीजिए.” सुधा पानी देते हुए बोली “काश, कहीं छाया मिल जाए.” सुधा साड़ी के पल्लू से मुंह पोंछती हुई इधर-उधर नज़रें दौड़ाने लगी.

“मेरा तो दिमाग़ ही काम नहीं कर रहा है… ये सब हमारे साथ ही क्यों होता है…? क्या भगवान हमें बिना परेशान किए हमारा कोई काम पूरा नहीं कर सकता?” ख़ुद को असहाय पाकर सत्य कुमार ने भगवान को ही कोसना शुरू कर दिया.

“देखो, वहां दूर एक पेड़ है, वहां दो-तीन छप्पर भी लगे हैं, वहीं चलते हैं. शायद कुछ मदद मिल जाए…” सुधा ने दूर एक बड़े बरगद के पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा. दोनों बोझिल क़दमों से उस दिशा में बढ़ने लगे.
वहां एक छप्पर तले चाय की छोटी-सी दुकान थी, जिसमें दो-तीन टूटी-फूटी बेंचें पड़ी थीं. उन पर दो ग्रामीण बैठे चाय पी रहे थे. वहीं पास में एक बुढ़िया कुछ गुनगुनाती हुई उबले आलू छील रही थी. दुकान में एक तरफ़ एक टूटे-फूटे तसले में पानी भरा था, उसके पास ही अनाज के दाने बिखरे पड़े थे. कुछ चिड़िया फुदककर तसले में भरा पानी पी रही थीं और कुछ बैठी पेटपूजा कर रही थीं. साथ लगे पेड़ से बार-बार गिलहरियां आतीं, दाना उठातीं और सर्र से वापस पेड़ पर चढ़ जातीं. पेड़ की शाखाओं के हिलने से ठंडी हवा का झोंका आता जो भरी दोपहरी में बड़ी राहत दे रहा था. शाखाओं के हिलने से, पक्षियों की चहचहाहट से, गिलहरियों की भाग-दौड़ से उपजे मिश्रित संगीत की गूंज अत्यंत कर्णप्रिय लग रही थी. सुधा आंखें मूंदे इस संगीत का आनंद लेने लगी.

“क्या चाहिए बाबूजी, चाय पीवो?”

बुढ़िया की आवाज़ से सुधा की तंद्रा टूटी. वो सत्य कुमार की ओर देखते हुए बोली,

“आप चाय के साथ कुछ लोगे क्या?”

“नहीं.” सत्य कुमार ने क्रोध भरा टका-सा जवाब दिया.

"बाबूजी, आपकी सकल बतावे है कि आप भूखे भी हो और परेसान भी, खाली पेट तो रत्तीभर परेसानी भी पहाड़ जैसी दिखे है. पेट में कुछ डाल लो. सरीर भी चलेगा और दिमाग़ भी, हा-हा-हा…” बुढ़िया इतना कह कर खुलकर हंस पड़ी.

बुढ़िया की हंसी देखकर सत्य कुमार तमतमा गए. लो पड़ गई आग में आहुति, सुधा मन में सोचकर सहम गई. वो मुंह से कुछ नहीं बोले, लेकिन बुढ़िया की तरफ़ घूरकर देखने लगे.
बुढ़िया चाय बनाते-बनाते बतियाने लगी,

“बीबीजी, इस सुनसान जगह में कैसे थमे, क्या हुआ?”

"दरअसल हम यहां से गुज़र रहे थे कि हमारी गाड़ी ख़राब हो गयी. पता नहीं यहां आसपास कोई मैकेनिक भी मिलेगा या नहीं.” सुधा ने लाचारी प्रकट करते हुए पूछा.

“मैं किसी के हाथों मैकेनिक बुलवा लूंगी. आप परेसान ना होवो.” बुढ़िया उन्हें चाय और भजिया पकड़ाते हुए बोली.

“अरे ओ रामसरन, इधर आइयो…” बुढ़िया दूर खेत में काम कर रहे व्यक्ति की ओर चिल्लाई. “भाई, इन भले मानस की गाड़ी ख़राब हो गयी है, ज़रा टीटू मैकेनिक को तो बुला ला… गाड़ी बना देवेगा…इस विराने में कहां जावेंगे बिचारे.” बुढ़िया के स्वर में ऐसा विनयपूर्ण निवेदन था जैसे उसका अपना काम ही फंसा हो.

_बाबूजी चिन्ता मत करो, टीटू ऐसा बच्चा है, जो मरी कैसी भी बिगड़ी गाड़ी को चलता कर देवे है.” इतना कह बुढ़िया चिड़ियों के पास बैठ ज्वार-बाजरे के दाने बिखेरने लगी. “अरे मिठ्ठू, आज मिठ्ठी कहां है?” वो एक चिड़िया से बतियाने लगी.
सत्य को उसका यह व्यवहार कुछ सोचने पर मजबूर कर रहा था. ऐसी बुढ़िया जिसकी शारीरिक और भौतिक अवस्था अत्यंत जर्जर है, उसका व्यवहार, उसकी बोलचाल इतनी सहज, इतनी उन्मुक्त है जैसे कभी कोई दुख का बादल उसके ऊपर से ना गुज़रा हो, कितनी शांति है उसके चेहरे पर.

“माई, तुम्हारा घर कहां है? यहां तो आसपास कोई बस्ती नज़र नहीं आती, क्या कहीं दूर रहती हो?” सत्य कुमार ने विनम्रतापूर्वक प्रश्‍न किया.

“बाबूजी, मेरा क्या ठौर-ठिकाना, कोई गृहसती तो है ना मेरी, जो कहीं घर बनाऊं? सो यहीं इस छप्पर तले मौज़ से रहू हूं. भगवान की बड़ी किरपा है.” सत्य कुमार का ध्यान बुढ़िया के मुंह से निकले 'मौज़’ शब्द पर अटका. भला कहीं इस शमशान जैसे वीराने में अकेले रहकर भी मौज़ की जा सकती है. वो बुढ़िया द्वारा कहे गए कथन का विश्‍लेषण करने लगे, उन्हें इस बुढ़िया का फक्कड़, मस्ताना व्यक्तित्व अत्यंत रोचक लग रहा था.

“यहां निर्जन स्थान पर अकेले कैसे रह लेती हो माई, कोई परेशानी नहीं होती क्या?” सत्य कुमार ने उत्सुकता से पूछा.

“परेसानी…” बुढ़िया क्षण भर के लिए ठहरी, “परेसानी काहे की बाबूजी, मजे से रहूं हूं, खाऊं हूं, पियूं हूं और तान के सोऊं हूं… देखो बाबूजी, मानस जन ऐसा प्रानी है, जो जब तक जिए है परेसानी-परेसानी चिल्लाता फिरे है, भगवान उसे कितना ही दे देवे, उसका पेट नहीं भरे है. मैं पुछू हूं, आख़िर खुस रहने को चाहवे ही क्या, ज़रा इन चिड़ियों को देखो, इन बिचारियों के पास क्या है. पर ये कैसे खुस होकर गीत गावे हैं.”

सत्य कुमार को बुढ़िया की सब बातें ऊपरी कहावतें लग रही थीं.

“पर माई, अकेलापन तो लगता होगा ना?” सत्य कुमार की आंखों में दर्द झलक उठा.

“अकेलापन काहे का बाबूजी, दिन में तो आप जैसे भले मानस आवे हैं. चाय पीने वास्ते, गांववाले भी आते-जाते रहवे हैं और ये मेरी चिड़कल बिटिया तो सारा दिन यहीं डेरा डाले रखे है.” बुढ़िया पास फुदक रही चिड़ियों पर स्नेहमयी दृष्टि डालते हुए बोली.

क्या इतना काफ़ी है अकेलेपन के एहसास पर विजय प्राप्त करने के लिए, सत्य कुमार के मन में विचारों का मंथन चल रहा था. उनके पास तो सब कुछ है- घर-बार, दोस्तों का अच्छा दायरा, उनके सुख-दुख की साथी सुधा, फिर क्यों उन्हें मात्र बच्चों की उपेक्षा से अकेलेपन का एहसास सांप की तरह डसता है?

"अकेलापन, परेसानी, ये सब फालतू की बातें हैं बाबूजी. जिस मानस को रोने की आदत पड़ जावे है ना, वो कोई-ना-कोई बहाना ढूंढ़ ही लेवे है रोने का.” बुढ़िया की बातें सुन सत्य कुमार अवाक् रह गए. उन्हें लगा जैसे बुढ़िया ने सीधे-सीधे उन्हीं पर पत्थर दे मारा हो.

क्या सचमुच हर व़क़्त रोना, क़िस्मत को और दूसरों को दोष देना उनकी आदत बन गई है? क्यों उनका मन इतना व्याकुल रहता है…? सत्य कुमार के मन में उद्वेगों का एक और भंवर चल पड़ा.

“माई, तुम्हारा घर-बार कहां है, कोई तो होगा तुम्हारा सगा-संबंधी?” सत्य कुमार ने अपनी पूछताछ का क्रम ज़ारी रखा.

बुढ़िया गर्व से गर्दन अकड़ाते हुए बोली,

“है क्यों नहीं बाबूजी, पूरा हरा-भरा कुनबा है मेरा. भगवान सबको बरकत दे. बाबूजी, मेरे आदमी को तो मरे ज़माना बीत गया. तीन बेटे और दो बेटियां हैं मेरी. नाती-पोतोंवाली हूं, सब सहर में बसे हैं और अपनी-अपनी गृहस्ती में मौज करे हैं.” बुढ़िया कुछ देर के लिए रुककर फिर बोली,

“मेरा एक बच्चा फौज में था, पिछले साल कसमीर में देस के नाम सहीद हो गया. भगवान उसकी आतमा को सान्ति देवे.”

बुढ़िया की बात सुन दोनों हतप्रभ रह गए और एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे. इतनी बड़ी बात कितनी सहजता से कह गई थी वो और उसके चाय बनाने के क्रम में तनिक भी व्यवधान नहीं पड़ा था. वो पूरी तरह से सामान्य थी. ना चेहरे पर शिकन…. ना आंखों में नमी…

क्या इसे बच्चों का मोह नहीं होता? सत्य कुमार मन-ही-मन सोचने लगे,

“तुम अपने बेटों के पास क्यों नहीं रहती हो?” उन्होंने एक बड़े प्रश्‍नचिह्न के साथ बुढ़िया से पूछा.

"नहीं बाबूजी… अब कौन उस मोह-माया के जंजाल में उलझे… सब अपने-अपने ढंग से अपनी गृहस्ती चलावे हैं. अपनी-अपनी सीमाओं में बंधे हैं. मैं साथ रहन लगूंगी, तो अब बुढ़ापे में मुझसे तो ना बदला जावेगा, सो उन्हें ही अपने हिसाब से चलाने की कोसिस करूंगी. ख़ुद भी परेसान रहूंगी और उन्हें भी परेसान करूंगी. मैं तो यहीं अपनी चिड़कल बिटियों के साथ भली….” बुढ़िया दोनों हाथ ऊपर उठाते हुए बोली. “अरे मेरी बिट्टू आ गई, आज तेरे बच्चे संग नहीं आए? कहीं तेरा साथ छोड़ फुर्र तो नहीं हो गये?” बुढ़िया एक चिड़िया की ओर लपकी.

“बाबूजी, देखो तो मेरी बिट्टू को… इसके बच्चे इससे उड़ना सीख फुर्र हो गए, तो क्या ये परेसान हो रही है? रोज़ की तरह अपना दाना-पानी लेने आयी है और चहके भी है. ये तो प्रकृति का नियम है बाबूजी, ऐसा ही होवे है. इस बारे में सोच के क्या परेसान होना.”

बुढ़िया ने सीधे सत्य और सुधा की दुखती रग पर हाथ रख दिया. यही तो था उनके महादुख का मूल, उनके बच्चे उड़ना सीख फुर्र हो गए थे.

“बाबूजी, संसार में हर जन अकेला आवे है और यहां से अकेला ही जावे है. भगवान हमारे जरिये से दुनिया में अपना अंस (अंश) भेजे हैं, मगर हम हैं कि उसे अपनी जायदाद समझ दाब लेने की कोसिस करे हैं. सो सारी ऊमर उसके पीछे रोते-रोते काट देवे हैं. जो जहां है, जैसे जीवे है जीने दो और ख़ुद भी मस्ती से जीवो. ज़ोर-ज़बरदस्ती का बन्धन तो बाबूजी कैसा भी हो, दुखे ही है. प्यार से कोई साथ रहे तो ठीक, नहीं तो तू अपने रस्ते मैं अपने रस्ते…” बुढ़िया एक दार्शनिक की तरह बेफ़िक्री-से बोले चली जा रही थी और वो दोनों मूक दर्शक बने सब कुछ चुपचाप सुन रहे थे. उसकी बातें सत्य कुमार के अंतर्मन पर गहरी चोट कर रही थी.

ये अनपढ़ मरियल-सी बुढ़िया ऐसी बड़ी-बड़ी बातें कर रही है. इस ढांचा शरीर में इतना प्रबल मस्तिष्क. क्या सचमुच इस बुढ़िया को कोई मानसिक कष्ट नहीं है…? बुढ़िया के कड़वे, लेकिन सच्चे वचन सत्य कुमार के मन पर भीतर तक असर डाल रहे थे.

“लो रामसरन आ गया.” बुढ़िया की उत्साहपूर्ण आवाज़ से दोनों की ध्यानमग्नता टूटी.
आज सत्य कुमार को बुढ़िया के व्यक्तित्व के सामने स्वयं का व्यक्तित्व बौना प्रतीत हो रहा था. आज महाज्ञानी सत्य कुमार को एक अनपढ़, अदना-सी बुढ़िया से तत्व ज्ञान मिला था. आज बुढ़िया का व्यवहार ही उन्हें काफ़ी सीख दे गया था. सत्य कुमार महसूस कर रहे थे जैसे उनके चारों ओर लिपटे अनगिनत जाले एक-एक करके हटते जा रहे हों. अब वो अपने अंतर्मन की रोशनी में सब कुछ स्पष्ट देख पा रहे थे. जो पास नहीं हैं, उसके पीछे रोते-कलपते और जो है उसका आनंद न लेने की भूल उन्हें समझ आ गई थी.

“बाबूजी, कार ठीक हो गई है.” मैकेनिक की आवाज़ से सत्य कुमार विचारों के आकाश से पुन: धरती पर आए.

“आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.” सत्य कुमार ने मुस्कुराहट के साथ मैकेनिक
का अभिवादन किया. उनके चेहरे से दुख और परेशानी के भाव गायब हो चुके थे. दोनों कार में बैठ गए. सत्य ने वहीं से बुढ़िया पर आभार भरी दृष्टि डाली और कार वापस घुमा ली.

“अरे, यह क्या, हरिद्वार नहीं जाना क्या?” सुधा ने घबराकर पूछा.

“नहीं.” सत्य कुमार ने बड़े ज़ोश के साथ उत्तर दिया. “हम हरिद्वार नहीं जा रहे हैं.” थोड़ा रुककर पुन: बोले, “हम मसूरी जा रहे हैं घूमने-फिरने. काम तो चलते ही रहते हैं. कुछ समय अपने लिए भी निकाला जाए.”

सत्य कुमार कुछ गुनगुनाते हुए ड्राइव कर रहे थे और सुधा उन्हें विस्मित् नेत्रों से घूरे जा रही थी.


मैं मर्द हूं, तुम औरत



मैं मर्द हूं, तुम औरत, मैं भूखा हूं, तुम भोजन!! मैं भेड़िया, गीदड़, कुत्ता जो भी कह लो, हूं. मुझे
नोचना अच्छा लगता है. खसोटना अच्छा लगता है. मैं
कुत्ता हूं. तो क्या, अगर तुमने मुझे जनम दिया है.
तो क्या, अगर तुम मुझे हर साल राखी बांधती हो.
तो क्या, अगर तुम मेरी बेटी हो. तो क्या, अगर तुम
मेरी बीबी हो. तुम चाहे जो भी हो मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता.घोड़ा घास से दोस्ती करे, तो खायेगा क्या?
मुझे तुम पर कोई रहम नहीं आता. कोई तरस नहीं आता.
मैं भूखा हूं. या तो प्यार से लुट जाओ, या अपनी ताक़त से मैं लूट लूंगा. वैसे भी तुम्हारी इतनी हिम्मत
कहां कि मेरा प्रतिरोध कर सको. ना मेरे
जैसी चौड़ी छाती है ना ही मुझ सी भुजायें. नाखून हैं
तुम्हारे पास बड़े-बड़े, पर उससे तुम
मेरा मुक़ाबला क्या खाक करोगे. ताक़त तो दूर की बात
है, तुममें तो हिम्मत भी नहीं है. हम तो शेर हैं. पिछले साल तुम जैसी क़रीब बीस बाईस हज़ार
औरतॊं का ब्लाउज़ नोचा हम मर्दों नें. तुम जैसे बीस
बाईस हज़ार औरतों का अपहरण किया. अपहरण के बाद
मुझे तो नहीं लगता हम कुत्तों, शेरों या गीदड़ों ने तुम्हे
छोड़ा होगा. रिपोर्ट तक फ़ाईल करवाने में तुम्हारे मां-
बाप, भाई भी इज्ज़त की दुहाई देकर तुम्हे चुप करवाते हैं और कहते हैं सहो बेटी सहो. ,
“नारी की सहनशक्ति बहुत ज़्यादा होती है.”
तो फिर सहो. मैं मर्द हूं और हज़ारों सालों से देखता आ रहा हूं!!! तो क्या, अगर तुम्हारा ग्रंथ तुम्हारे
मासिक-धर्म का रोना रो तुम्हे अपवित्र बता देता है.
हम मर्द तुम्हें अक्सर ही रौंदते हैं. चाहे भगवान
हो या इंसान अगर हरेक साल तुम तीन-चार लाख
औरतों को हम तरह तरह से गाजर-मुली की तरह काटते रहते हैं. कभी बिस्तर पर, कभी सड़कों पर,
कभी खेतों में. तुम्हारी भीड़ सत्संग के लिये
ही जुटेगी पर हम मर्द के खिलाफ़ कभी नहीं जुट
सकती.
मैं भूखा हूं, तुम भोजन हो. तुम्हे खाकर पेट नहीं भरता,
प्यास और बढ़ जाती है!!(कुछ अच्छे अब बुरे ज्यादा)


ये पोस्ट उनलोगो समर्पित है जो ऐसे हयवानियत को अंजाम देते है

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पीतल का लोटा



पीतल का लोटा
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जिस घर में लड़की ने जन्म लिया हो, जिस घर में उसका बचपन गुजरा हो और जिस घर से उसकी हजारों खट्टी-मीठी यादें जुड़ी हो, शादी के बाद वही घर लड़की के लिए इतना अजनबी क्यों बन जाता है कि उसे अपने अधिकारों को भी भूलना पड़ता है। वन्दना ने हमेशा न्याय की बात कहना अपना धर्म समझा। यही कारण रहा कि वह सबकी प्रिय रही मगर शादी के बाद उसे अपने मायके में झिझक लगने लगी, इसका एक मूल कारण शायद उसकी मां का स्वर्गवास ही रहा।
उसके तीनों भाई-भाभियां एक घर में रहते हुए भी अलग-अलग रहते थे और पिताजी वैसे तो स्थायी तौर पर मां के जाने के बाद से बड़े भाई के साथ ही रहते थे लेकिन उनका थोड़ा बहुत सामान नीचे छोटे भाई के घर में भी एक छोटे संदूक में पड़ा रहता था। तीनों भाई नरम स्वभाव के थे मगर भाभियों के बीच अक्सर खटपट हुआ करती थी। वन्दना जब भी दो-चार दिनों के लिए मायके आती तो भाभियों के बीच होने वाले झगड़ों की वजह से उसका दिमाग तनाव में रहता था। झगड़ों की वजह कोई बहुत बड़ी नहीं थी बल्कि पिताजी के उस संदूक का सामान था, जिसका उन्होंने बंटवारा नहीं किया था। अब वन्दना करीब एक महीने के लिये मायके आई थी क्योंकि उसका स्वास्थ्य थोड़ा ज्यादा खराब था।
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वन्दना को मायके आये अभी चार दिन ही हुये थे। वह ऊपर छत पर धूप में बैठकर बाल सुखा रही थी कि नीचे से तेजी की आवाजें आई, वन्दना नीचे उतरकर आई तो उसने देखा छोटी भाभी पिताजी को खूब खरी -खोटी सुना रही थी और पिताजी अपने आंसू पोंछ रहे थे। पूछने पर पिताजी ने बताया कि वह नीचे रखे अपने संदूक से अपना कोट निकाल रहे थे मगर छोटी बहू समझी कि वह कुछ और ही चीज निकालकर ऊपर बड़ी को चुपचाप देने जा रहे हैं। इतनी बात पिताजी के मूंह से सुनकर बड़ी और मंझली बहू भी निकल आई। बड़ी बहू कहने लगी।
‘‘तुझे शर्म नहीं आती ऐसा करते हुए, आखिर कौन-सी चीज उठा लाये पिताजी ऊपर-?
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छोटी बहू भन्ना कर बोली? ‘‘क्यों ले नहीं जाते क्या-पिताजी तो मेरे साथ हमेशा ही पक्षपात करते हैं बड़े बेटे पैसे वाले हैं तो उनके ही घुसते हैं।’’
‘‘तो तेरे यहां आकर क्या करें? तू तो उन्हें पीने तक को पानी नहीं देती- ’’ बड़ी बहू ने कहा तो मंझली ने उसका समर्थन किया।
‘‘तुम तो ऐसा कहोगी ही। यदि तुम पिताजी को खिला-पिला रही हो तो यह तुम्हारा फर्ज है तुम बड़े हो और फिर पिताजी चुपके -चुपके संदूक में से ले जाकर सामान नहीं पकड़ाते रहते क्या तुम्हें ऊपर।’’
छोटी बहू की ऐसी बातों से दुखी होकर पिताजी अपना सिर पकड़ कर बैठ गए। वन्दना से अपने बूढ़े पिता ही दयनीय दशा देखी नहीं गई।
क्रोधित स्वर में वह अपने पिता से बोली, ‘‘यह सब आपकी गलती के ही कारण हो रहा है पिताजी। जब सब कुछ आपने बांटकर दे दिया अपने बेटों को तो आपने अपना संदूक क्यों नीचे रख छोड़ा है। जब आप ऊपर रहते हैं, ऊपर ही खाते -पीते हैं तो आपको संदूक भी ऊपर रखना चाहिए था ना। आप अपनी जरूरतों की चीजें लेने ना बार-बार नीचे जाकर संदूक खोलेंगे और ना छोटी भाभी के मन में यह संदेह पैदा हो...।’’
हालांकि वन्दना ने न्याय संगत बात ही कही थी और अपने पिता से ही कही थी मगर छोटी बहू तिलमिलाकर वन्दना पर ही बरस पड़ी, ‘‘दीदी -तुम इस घर की बेटो हो, बेटी ही रहो। तुम घर के मामले में बोलने का कोई हक नहीं है, तुम क्या यहां फूट डालोगी?’’ वन्दना को छोटी भाभी से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी उसको बहुत ठेस लगी। वह आंसुओं से भीगे स्वर में बोली, ‘‘इसमें मैंने गलत क्या कहा भाभी-? मैंने आपसे तो कुछ नहीं कहा? क्या मुझे अपने पापा से भी कुछ कहने का अधिकार नहीं है-?’’
‘‘नहीं है, तुम्हें क्या मतलब, तुम्हारी शादी हो चुकी है तुम बहन बेटी हो वही बनकर रहो-’’ छोटी बहू बोली।
‘‘लानत है ऐसी बहन-बेटी पर जो इंसाफ की बात नहीं कह सके- ’’ वंदना भी गुस्से से बोली।
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‘‘आने दो शाम को तुम्हारे भैया को, देखना तुम्हारी क्या हालत करवाती हूं’’ छोटी बहू वन्दना से धमकी भरे स्वर में बोली।
वन्दना के दिल को छोटी बहू की इस भाषा से बहुत आघात लगा। सिर्फ वन्दना ही नहीं, पिताजी भी से बहुत आहत हुए और अपना क्रोध काबू में ना रख सके। वह क्रोध में अपने हाेंठ दबाते हुए नीचे गये और अपना संदूक निकालकर उसका सारा सामान बीच आंगन में निकालकर पटकते गये फिर आहत स्वर में बोले, ‘‘यही है ना क्लेश की जड़ बहू जिसके लिए आज तुमने मेरी बेटी को पराया बना दिया, देखो इस संदूक में क्या है-?’’
तीनाें बहुएं बड़े गौर से संदूक में से निकले सामान को देखने लगीं। उस सामान में एक गर्म शाल, कुछ वन्दना की मां की तस्वीरें, कुछ किताबें और एक पीतल का छोटा लोटा था। पिताजी भर्राए स्वर में बोले, ‘‘ये किताबें मेरी जीवन साथी रही है इन्हें ही मैं जब कभी पढ़ने के लिए निकालकर ले जाता रहा हूं। आज इनका भी बंटवारा कर लेना, मगर भगवान के लिए ऐसे नीच वचन मत बोलो-’’ पिताजी हाफंने लगे थे, शायद उनके अंदर शारीरिक पीड़ा की भी कोई लहर उठी थी।
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वन्दना पिताजी को संभालने के लिए बढ़ती इससे पहले ही पिताजी ने पीतल का लोटा उठाया और वन्दना से बोले, ‘‘बेटी-अपने पिता को क्षमा कर देना। आज मेरे कारण तुम्हारा इतना अपमान हुआ है और हां बहुओं, यह लोटा तो एक ही है इसके तीन हिस्से करना संभव नहीं है इसलिए ऐसा करना जब मैं मरूं तो इस लोटे में ही मेरे लिए घी भेज देना क्योंकि ऐसे ही एक लोटे में तुम्हारी सास के लिए भी घी गया था।’’
इतना कहकर पिताजी लोटा आंगन में पटक घर से बाहर की ओर चले गये। तीनों बहुएं भी अपने काम में लग गई और वन्दना, वह आंगन मे बिखरी किताबों पर सिर रखकर सिसकने लगी।
पिताजी धीरे-धीरे कछुआ चाल की तरह श्रीराम मंदिर की ओर बढ़े जा रहे थे।
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अभी उन्होंने मंदिर की दो-तीन सीढ़िया ही चढ़ी थी कि अचानक सीना थामे वही बैठ गये और उनका सिर एक ओर लुढ़क गया। एक व्यक्ति जिसका नाम कृपाराम था वह यह सब देखते ही मंदिर के सामने बनी अपनी दुकान से नीचे उतरा और दौड़कर वहां आया उसने सीढ़ियों पर निगाह डालते ही कहा,
‘‘अरे, यह तो ईश्वर प्रसाद हैं। हे भगवान, इन्हें क्या हुआ?’’ फिर उसने उनकी नब्ज देखी और उदास मन से उनके घर की ओर चल दिया।
वन्दना को आंगन में बैठे-बैठे काफी देर हो गई थी, बड़ी बहू नीचे आई और वन्दना से बोली, ‘‘वन्दना, चलो उपर चलो तुम्हारी तबियत ठीक नहीं।’’
‘‘अभी आ जाएंगे, तुम चलकर खाना खालो...।’’
बड़ी बहू ने इतना कहकर आंगन में बिखरी किताबें एक ओर उठाकर रखी। छोटी बहू अपने कमरे में से सब कुछ देख रही थी जैसे ही बड़ी ने एक तरफ लुढ़का पीतल का लोटा उठाया, छोटी बहू ने आंगन में आकर उससे लोटा छीनकर कहा, ‘‘तुम इसे नहीं ले जा सकतीं, इसे मैं लूंगी...।’’
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बड़ी बहू सिर हिलाकर बोली, ‘‘तूने वाकई गजब कर दिया है मैं उठकर किताबों के पास रख रही थी ना कि ले जा रही थी।’’
मंझली ऊपर के आंगन से ही झांककर बोली, ‘‘और फिर इसे लेने का अधिकार तुझे ही कैसे मिल गया। पिताजी की हर चीज पर तीनों का हक बराबर है...।’’
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वन्दना की कनपटी सुर्ख हो उठी उसने अपने हाथों में लोटा लिया और कुछ कहती इससे पहले ही बाहर से आवाज आई, ‘‘बेटी वन्दना--।’’
वन्दना ने बाहर आकर देखा। कृपाराम को वह एक दृष्टि में ही पहचान गई और बोली, ‘‘ चाची जी आप कहिए कैसे आना हुआ?
‘‘ गजब हो गया बेटी अपने भाइयों को दफ्तर से बुलवा लो। तुम्हारे पिताजी का मंदिर की सीढ़ियों पर हृदय की गति रुकने से देहांत हो गया।’’
‘‘नहीं...पिताजी..’’ वन्दना का दिल दहल उठा। जैसे ही उसे अपने हाथ में पीतल का लौटा होने का अहसास हुआ वह बिलखकर रो पड़ी।



Tuesday, 5 June 2018

उम्र काटी थी कभी जिसने मेरे पहलू में,

उम्र काटी थी कभी जिसने मेरे पहलू में, वो ही अहसास मेरा तेरी ज़ूबानी निकला. टूट के जुड़ने का फिर जुड़ के टूटने का सफ़र, मेरे दिल का ना कोई दुनिया में सानी निकला. जिसकी हर एक ख़ुशी मुझसे रही बाबस्ता, मेरा हर ज़ख्म फ़क़त उसकी निशानी निकला.

मुद्दतों बाद मेरी सोच का मानी निकला, शख्स जो दिल में बसा था वो कहानी निकला. मुद्दतों बाद मेरे दर्द को छूआ उसने, मुद्दतों बाद मेरी आँख से पानी निकला. वक़्त ने रखके जिसे भूलना बेहतर समझा, प्यार ऐसी ही कोई चीज़ पुरानी निकला.

मिला है तुम्हें चार ही दिन का जीवन इसे यूँ ही बस तुम न बेकार करना वतन पर कभी आँच आए अगर तो क़लम की ज़रा तेज रफ्तार करना हमेशा ही हमने बाँटी हैं मुहब्बत उसे भी अगर हो सके प्यार करना






दग़ा दोस्ती में न तुम यार करना कभी पीठ पीछे न तुम वार करना करेंगे न हद पार हम दोस्ती की कि तुम भी कभी ये न हद पार करना अगर हम करें ज़िद कभी जीतने की तो हँस कर ही तुम हार स्वीकार करना कभी दूर से चल के आए कोई तो सदा हँस के ही उसका सत्कार करना


जिसने भी इस खबर को सुना सर पकड़ लिया कल इक दीए ने आंधी का कॉलर पकड़ लिया इक उम्र तक तो मुझको आरजू रही तेरी फिर ख़्वाशिओं ने मेरी बिस्तर पकड़ लिया



हर एक लफ़्ज़ में सीने का नूर ढाल के रख कभी कभार तो काग़ज़ पे दिल निकाल के रख ! जो दोस्तों की मोहब्बत से जी नहीं भरता, तो आस्तीन में दो-चार साँप पाल के रख ! तुझे तो कितनी बहारें सलाम भेजेंगी, अभी ये फूल सा चेहरा ज़रा सँभाल के रख



हर एक जानवर की रिहाई का फैसला हैरान हूँ मैं सुन के कसाई का फैसला आया है शह्र भर की भलाई का फैसला लेकिन वो असल में है कमाई का फैसला बेटी की खैर, एक दो माँगों के ही एवज टाला भी कैसे जाए जमाई का फैसला राखी करेगी माँग किसी दिन कलाई से थोपा न जाय बहनों पे भाई का फैसला



लोग जब ज़हर उगलने लगते हैं शहर के शहर जलने लगते हैं अपनी ताबीर तक पहुँचने को ख़्वाब आँखों में चलने लगते हैं तुमको पहलू में अपने पाते ही दर्द सारे पिघलने लगते हैं बाद दोपहर के कई साये अपनी जगहें बदलने लगते हैं चाय का कप, ग़ज़ल, तेरी बातें कैसे अरमान पलने लगते हैं





सब में तो बस सब दिखता है लेकिन तुझ में रब दिखता है तुमसे मिल कर मेरा चेहरा देखो यार गजब दिखता है तुझ को छोड़ के दुनिया देखूँ मुझ को इतना कब दिखता है


सुब्ह मिला करती हैं किरचें ख़्वाब कोई हर शब दिखता है कितने पत्थर दिल हो, तुमको इश्क़ में भी मज़हब दिखता है





तुम्हारे दिल को भा जाये न कोई और ही जानां ये डर मुझको सुनो अंदर ही अंदर मार डालेगा चले जिसके भरोसे पर सफर की मन्ज़िले पाने ख़बर क्या थी वही इक रोज़ रहबर मार डालेगा। अंधेरा लाख कोशिश कर ले बचने की मगर °सीमा° इसे कुछ देर में सूरज निकलकर मार डालेगा।


कहूँ गर झूठ तो ईमान अंदर मार डालेगा बनूँ आईने की सूरत तो पत्थर मार डालेगा करेगा खाक शेरो शायरी गायेगा क्या नगमे मुहब्बत का अगर एहसास शायर मार डालेगा तुम्हारे दिल को भा जाये न कोई और ही जानां ये डर मुझको सुनो अंदर ही अंदर मार डालेगा



गुल-गुंचे-शजर बिक गए तितलियों के पर बिक गए आ गया कैसा ज़मां ये मुफलिसों के घर बिक गए मंजिलों कैसे मिलें अब - सारे रहगुज़र बिक गए अस्मतें बिकती सड़क पर गालों के भंवर बिक गए आदमी बे-सर हुए सब जो उठे वो सर बिक गए





दिन महीने साल से आगे नहीं गए हम कभी तेरे खयाल से आगे नहीं गए लोगों ने हर रोज खुदा से कुछ नया माँगा पर हम कभी तेरे सवाल से आगे नहीं गए मुमकिन है कोई पोंछ ही लेता मगर आंसूं भी कभी रुमाल से आगे नहीं गए बहुत हसीन चेहरे नजरों के आगे से गुजरे मगर हम थे कि तेरे जमाल से आगे नहीं गए







तुम बिल्कुल हम जैसे निकले अब तक कहां छुपे थे भाई? वह मूरखता, वह घामड़पन जिसमें हमने सदी गंवाई आखिर पहुंची द्वार तुम्हारे अरे बधाई, बहुत बधाई भूत धरम का नाच रहा है कायम हिन्दू राज करोगे? सारे उल्टे काज करोगे? अपना चमन नाराज करोगे?






चाहती तो है कि कोई हो तो तुझसे प्यार करे टूटकर पर डरती है आशिक की शक्ल मैं कौन निकल आए दलाल ए लड़की मुझसे पूछ के देख न कि क्या गुनाह है तेरा ऊपर वाले से क्यूँ पूछती हैं यह सवाल ए लड़की खड़े हो चार लोग कहीं तो डर जाती है यह सोचकर कि कहीं कोई तुझ पर तेज़ाब न दे डाल ए लड़की





कैंसा वक़्त है कि बाहर निकलना ही मुहाल है ए लड़की किसी की नजर मैं तू क्या मस्त चीज है तो किसी की नजर मैं तू क्या माल है ए लड़की जानता हूँ कि तू खुद इस बात से खूब वाकिफ है बिना रूह पर जख्म खाए तेरा घर लौट आना सचमुच कमाल है ए लड़की





कभी रिश्तों में अच्छी भी नहीं जज़्बात की ठंडक रगों में ख़ून सर्दी से उबलना छोड़ देते हैं जुदा होकर रहोगे चैन से, मेरी क़सम खाओ चलो अब रात भर करवट बदलना छोड़ देते हैं!






यक़ी अब हो चला है ,हम कभी अब मिल न पाएंगे तेरे मिलने की ख़्वाहिश पर मचलना छोड़ देते हैं तुम्हें भी काम है ,हम पर तक़ाज़े हैं ज़माने के वफ़ा के नाम पर अब दिल को छलना छोड़ देते हैं तुम्हें लगता है छोटा क़द मेरा है इस लिये जानाँ बुलंदी के लिये अब क्या उछलना , छोड़ देते हैं



तुम्हें देखे बिना न सुबह हो न रात ही गुज़रे चलो जज़्बात के टुकड़ों पे पलना छोड़ देते हैं मुख़ालिफ़ खुश तो होंगे हमको ज़िंदा लाश कह कह कर यही सोचा है अब घर से निकलना छोड़ देते हैं तेरी आँखों के मयख़ाने से अपना नाम वापस लें ये पीना, लड़खड़ाना और संभलना छोड़ देते हैं



वफ़ा की पुर ख़तर राहों पे चलना छोड़ देते हैं चलो हम लोग इक दूजे से मिलना छोड़ देते हैं करो कोशिश जिगर फौलाद का अपना बना लो तुम और हम भी मोम के जैसे पिघलना छोड़ देते हैं चलो इक दुसरे पर हक़ जताना भूल जाएँ हम किसी से भी मिलो तुम,हम भी जलना छोड़ देते हैं





जब भी तुम लाज़वाब होते हो, ख़ुशबू ले कर सवाल आते हैं. शाम ढलती है जब भी यादों की, हम तेरा घर संभाल आते हैं. यूँ मुसफ़िर हैं हम मगर तुमसे, मिलने को सालों-साल आते हैं. लोग यूँ बेवज़ह नहीं जलते , आप जुमले उछाल आते हैं.




फूल जब लाल लाल आते हैं, बस तुम्हारे ख़याल आते हैं. हमको कैसे मिला लिया ख़ुद से, तुमको कैसे कमाल आते हैं. दूर होते ही तुमसे मिलने का, कोई रस्ता निकाल आते हैं.




हनक सत्ता की सच सुनने की आदत बेच देती है हया को,शर्म को आख़िर सियासत बेच देती है निकम्मेपन की बेशर्मी अगर आँखों पे चढ़ जाए तो फिर औलाद, पुरखों की विरासत बेच देती है



ममैं दरिया नहीं हूँ जो वापस पलट के भी न आ सकूँ इक बार मुझ को तू अपने दिल से याद करके देख हमदर्दी, अपनापन, मुहब्बत, वफ़ा, दानिशमंदी खुद को अब बुजुर्गों की रवायत से आजाद कर के देख



तरीका जीने का नया ईजाद कर के देख दिल को किसी के गम से आबाद कर के देख यह इश्क है इसपर बादशाही हुक्म नहीं चलते इश्क चाहता है तो फ़क़ीर की तरह फ़रियाद कर देख



उसने लाख निशाने बदले लेकिन कब दीवाने बदले इक सचगोई की आदत ने रिश्ते कई पुराने बदले किसी ने बदले मंदिर-मस्जिद और हमने मयखाने बदले इक मेरा किरदार न बदला, कितने ही अफ़साने बदले हमने चौखट तक ना बदली, लोगों ने तहखाने बदले एक शाख़ पर उम्र काट ली, हमने कहाँ ठिकाने बदले



जिनके अपने घर होते हैं उनको कितने डर होते हैं पिंजरा भी आसमाँ लगता है कटे हुए जब पर होते हैं पूजा या पथरावों के हों पत्थर तो पत्थर होते हैं कट जाते हैं नए दौर में सजदे में जो सर होते हैं बातें तो होती रूहानी जिस्मानी मंजर होते हैं


इक न इक रोज तो रुखसत करता मुझसे कितनी ही मोहब्बत करता सब रुतें आके चली जाती हैं मौसम ए गम भी तो हिजरत करता मेरे लहजे में गुरुर आया था उसको हक था कि शिकायत करता और उससे न रही कोई तलब बस मेरे प्यार की इज़्ज़त करता


समझदारी अच्छी नहीं है ये फनकारी अच्छी नहीं है तुम्हे आंधी से लड़ना है चरागों ये तैयारी अच्छी नहीं है जरा सी बात ना इतनी बढ़ाओ ये चिंगारी अच्छी नहीं है ये दिल के छाले कहते हैं मुझसे वफादारी अच्छी नहीं है लगाओ यहां ना दिल किसी से ये बीमारी अच्छी नहीं है





नफरत का बीज हम इस कदर बोने लगे दरिंदगी अपनाकर इंसानियत खोने लगे कैसे जायेगे वो हिफाजत की दुआ करने अब तो मन्दिर में भी बलात्कार होने लगे



कभी नार से जले कभी फुहार से जले ये जब्त हमीं में था कि हम प्यार से जले फूलों के साथ रह के भी नाशाद रहे हम हम खार जैसे थे सो हम खार से जले आओ कि बातें कर लो अब दिन कहां बचे जलने दो हमारी जो गुफ़्तार से जले कौन उल्फत में भला रहता है बेदार हम खेल खेल में तिरे अनवार से जले




बोरे स्वदेशी चूहे कुतरते चले गए दाने अनाज के थे बिखरते चले गए कुछ अन्नदाता खेतों में मरते चले गए जो देश चर रहे थे वो चरते चले गए जिनसे थी बड़ी आस सिर का साया बनेंगे- वे आये सिर पे पैर ही धरते चले गए मैंने भरोसा आप के वादों पे किया था वादों से किन्तु आप मुकरते चले गए



आखर-आखर जब ढ़ाई हो जाएगा कटा - फटा दिल तुरपाई हो जाएगा उस पर कोई नजर पड़ेगी फिसलेगी- जब जब चेहरा चिकनाई हो जाएगा थाली के बैंगन का कुछ भी पता नहीं कब वो किसका अनुयायी हो जाएगा गिद्ध-दृष्टि गड़ गईं बैंकिंग सिस्टम पे रुपया - आना चौथाई हो जाएगा


आत्मा पर घाव लिए घर लौटने पर भी राहत नहीं जरा सी देरी पर वो बढ़े बूढ़ों की लानत में घिर जाती है तेजाब से झुलसे चेहरे सुनाते हैं दर्दभरी कहानी इकतरफ प्यार को नकारे तो अदावत में घिर जाती है घर वो या बाहर सब जगह एक से हालात हैं वो लड़की है ये पता चलते ही वो शामत में घिर जाती है








Indian Beautiful

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