Tuesday, 5 June 2018

उम्र काटी थी कभी जिसने मेरे पहलू में,

उम्र काटी थी कभी जिसने मेरे पहलू में, वो ही अहसास मेरा तेरी ज़ूबानी निकला. टूट के जुड़ने का फिर जुड़ के टूटने का सफ़र, मेरे दिल का ना कोई दुनिया में सानी निकला. जिसकी हर एक ख़ुशी मुझसे रही बाबस्ता, मेरा हर ज़ख्म फ़क़त उसकी निशानी निकला.

मुद्दतों बाद मेरी सोच का मानी निकला, शख्स जो दिल में बसा था वो कहानी निकला. मुद्दतों बाद मेरे दर्द को छूआ उसने, मुद्दतों बाद मेरी आँख से पानी निकला. वक़्त ने रखके जिसे भूलना बेहतर समझा, प्यार ऐसी ही कोई चीज़ पुरानी निकला.

मिला है तुम्हें चार ही दिन का जीवन इसे यूँ ही बस तुम न बेकार करना वतन पर कभी आँच आए अगर तो क़लम की ज़रा तेज रफ्तार करना हमेशा ही हमने बाँटी हैं मुहब्बत उसे भी अगर हो सके प्यार करना






दग़ा दोस्ती में न तुम यार करना कभी पीठ पीछे न तुम वार करना करेंगे न हद पार हम दोस्ती की कि तुम भी कभी ये न हद पार करना अगर हम करें ज़िद कभी जीतने की तो हँस कर ही तुम हार स्वीकार करना कभी दूर से चल के आए कोई तो सदा हँस के ही उसका सत्कार करना


जिसने भी इस खबर को सुना सर पकड़ लिया कल इक दीए ने आंधी का कॉलर पकड़ लिया इक उम्र तक तो मुझको आरजू रही तेरी फिर ख़्वाशिओं ने मेरी बिस्तर पकड़ लिया



हर एक लफ़्ज़ में सीने का नूर ढाल के रख कभी कभार तो काग़ज़ पे दिल निकाल के रख ! जो दोस्तों की मोहब्बत से जी नहीं भरता, तो आस्तीन में दो-चार साँप पाल के रख ! तुझे तो कितनी बहारें सलाम भेजेंगी, अभी ये फूल सा चेहरा ज़रा सँभाल के रख



हर एक जानवर की रिहाई का फैसला हैरान हूँ मैं सुन के कसाई का फैसला आया है शह्र भर की भलाई का फैसला लेकिन वो असल में है कमाई का फैसला बेटी की खैर, एक दो माँगों के ही एवज टाला भी कैसे जाए जमाई का फैसला राखी करेगी माँग किसी दिन कलाई से थोपा न जाय बहनों पे भाई का फैसला



लोग जब ज़हर उगलने लगते हैं शहर के शहर जलने लगते हैं अपनी ताबीर तक पहुँचने को ख़्वाब आँखों में चलने लगते हैं तुमको पहलू में अपने पाते ही दर्द सारे पिघलने लगते हैं बाद दोपहर के कई साये अपनी जगहें बदलने लगते हैं चाय का कप, ग़ज़ल, तेरी बातें कैसे अरमान पलने लगते हैं





सब में तो बस सब दिखता है लेकिन तुझ में रब दिखता है तुमसे मिल कर मेरा चेहरा देखो यार गजब दिखता है तुझ को छोड़ के दुनिया देखूँ मुझ को इतना कब दिखता है


सुब्ह मिला करती हैं किरचें ख़्वाब कोई हर शब दिखता है कितने पत्थर दिल हो, तुमको इश्क़ में भी मज़हब दिखता है





तुम्हारे दिल को भा जाये न कोई और ही जानां ये डर मुझको सुनो अंदर ही अंदर मार डालेगा चले जिसके भरोसे पर सफर की मन्ज़िले पाने ख़बर क्या थी वही इक रोज़ रहबर मार डालेगा। अंधेरा लाख कोशिश कर ले बचने की मगर °सीमा° इसे कुछ देर में सूरज निकलकर मार डालेगा।


कहूँ गर झूठ तो ईमान अंदर मार डालेगा बनूँ आईने की सूरत तो पत्थर मार डालेगा करेगा खाक शेरो शायरी गायेगा क्या नगमे मुहब्बत का अगर एहसास शायर मार डालेगा तुम्हारे दिल को भा जाये न कोई और ही जानां ये डर मुझको सुनो अंदर ही अंदर मार डालेगा



गुल-गुंचे-शजर बिक गए तितलियों के पर बिक गए आ गया कैसा ज़मां ये मुफलिसों के घर बिक गए मंजिलों कैसे मिलें अब - सारे रहगुज़र बिक गए अस्मतें बिकती सड़क पर गालों के भंवर बिक गए आदमी बे-सर हुए सब जो उठे वो सर बिक गए





दिन महीने साल से आगे नहीं गए हम कभी तेरे खयाल से आगे नहीं गए लोगों ने हर रोज खुदा से कुछ नया माँगा पर हम कभी तेरे सवाल से आगे नहीं गए मुमकिन है कोई पोंछ ही लेता मगर आंसूं भी कभी रुमाल से आगे नहीं गए बहुत हसीन चेहरे नजरों के आगे से गुजरे मगर हम थे कि तेरे जमाल से आगे नहीं गए







तुम बिल्कुल हम जैसे निकले अब तक कहां छुपे थे भाई? वह मूरखता, वह घामड़पन जिसमें हमने सदी गंवाई आखिर पहुंची द्वार तुम्हारे अरे बधाई, बहुत बधाई भूत धरम का नाच रहा है कायम हिन्दू राज करोगे? सारे उल्टे काज करोगे? अपना चमन नाराज करोगे?






चाहती तो है कि कोई हो तो तुझसे प्यार करे टूटकर पर डरती है आशिक की शक्ल मैं कौन निकल आए दलाल ए लड़की मुझसे पूछ के देख न कि क्या गुनाह है तेरा ऊपर वाले से क्यूँ पूछती हैं यह सवाल ए लड़की खड़े हो चार लोग कहीं तो डर जाती है यह सोचकर कि कहीं कोई तुझ पर तेज़ाब न दे डाल ए लड़की





कैंसा वक़्त है कि बाहर निकलना ही मुहाल है ए लड़की किसी की नजर मैं तू क्या मस्त चीज है तो किसी की नजर मैं तू क्या माल है ए लड़की जानता हूँ कि तू खुद इस बात से खूब वाकिफ है बिना रूह पर जख्म खाए तेरा घर लौट आना सचमुच कमाल है ए लड़की





कभी रिश्तों में अच्छी भी नहीं जज़्बात की ठंडक रगों में ख़ून सर्दी से उबलना छोड़ देते हैं जुदा होकर रहोगे चैन से, मेरी क़सम खाओ चलो अब रात भर करवट बदलना छोड़ देते हैं!






यक़ी अब हो चला है ,हम कभी अब मिल न पाएंगे तेरे मिलने की ख़्वाहिश पर मचलना छोड़ देते हैं तुम्हें भी काम है ,हम पर तक़ाज़े हैं ज़माने के वफ़ा के नाम पर अब दिल को छलना छोड़ देते हैं तुम्हें लगता है छोटा क़द मेरा है इस लिये जानाँ बुलंदी के लिये अब क्या उछलना , छोड़ देते हैं



तुम्हें देखे बिना न सुबह हो न रात ही गुज़रे चलो जज़्बात के टुकड़ों पे पलना छोड़ देते हैं मुख़ालिफ़ खुश तो होंगे हमको ज़िंदा लाश कह कह कर यही सोचा है अब घर से निकलना छोड़ देते हैं तेरी आँखों के मयख़ाने से अपना नाम वापस लें ये पीना, लड़खड़ाना और संभलना छोड़ देते हैं



वफ़ा की पुर ख़तर राहों पे चलना छोड़ देते हैं चलो हम लोग इक दूजे से मिलना छोड़ देते हैं करो कोशिश जिगर फौलाद का अपना बना लो तुम और हम भी मोम के जैसे पिघलना छोड़ देते हैं चलो इक दुसरे पर हक़ जताना भूल जाएँ हम किसी से भी मिलो तुम,हम भी जलना छोड़ देते हैं





जब भी तुम लाज़वाब होते हो, ख़ुशबू ले कर सवाल आते हैं. शाम ढलती है जब भी यादों की, हम तेरा घर संभाल आते हैं. यूँ मुसफ़िर हैं हम मगर तुमसे, मिलने को सालों-साल आते हैं. लोग यूँ बेवज़ह नहीं जलते , आप जुमले उछाल आते हैं.




फूल जब लाल लाल आते हैं, बस तुम्हारे ख़याल आते हैं. हमको कैसे मिला लिया ख़ुद से, तुमको कैसे कमाल आते हैं. दूर होते ही तुमसे मिलने का, कोई रस्ता निकाल आते हैं.




हनक सत्ता की सच सुनने की आदत बेच देती है हया को,शर्म को आख़िर सियासत बेच देती है निकम्मेपन की बेशर्मी अगर आँखों पे चढ़ जाए तो फिर औलाद, पुरखों की विरासत बेच देती है



ममैं दरिया नहीं हूँ जो वापस पलट के भी न आ सकूँ इक बार मुझ को तू अपने दिल से याद करके देख हमदर्दी, अपनापन, मुहब्बत, वफ़ा, दानिशमंदी खुद को अब बुजुर्गों की रवायत से आजाद कर के देख



तरीका जीने का नया ईजाद कर के देख दिल को किसी के गम से आबाद कर के देख यह इश्क है इसपर बादशाही हुक्म नहीं चलते इश्क चाहता है तो फ़क़ीर की तरह फ़रियाद कर देख



उसने लाख निशाने बदले लेकिन कब दीवाने बदले इक सचगोई की आदत ने रिश्ते कई पुराने बदले किसी ने बदले मंदिर-मस्जिद और हमने मयखाने बदले इक मेरा किरदार न बदला, कितने ही अफ़साने बदले हमने चौखट तक ना बदली, लोगों ने तहखाने बदले एक शाख़ पर उम्र काट ली, हमने कहाँ ठिकाने बदले



जिनके अपने घर होते हैं उनको कितने डर होते हैं पिंजरा भी आसमाँ लगता है कटे हुए जब पर होते हैं पूजा या पथरावों के हों पत्थर तो पत्थर होते हैं कट जाते हैं नए दौर में सजदे में जो सर होते हैं बातें तो होती रूहानी जिस्मानी मंजर होते हैं


इक न इक रोज तो रुखसत करता मुझसे कितनी ही मोहब्बत करता सब रुतें आके चली जाती हैं मौसम ए गम भी तो हिजरत करता मेरे लहजे में गुरुर आया था उसको हक था कि शिकायत करता और उससे न रही कोई तलब बस मेरे प्यार की इज़्ज़त करता


समझदारी अच्छी नहीं है ये फनकारी अच्छी नहीं है तुम्हे आंधी से लड़ना है चरागों ये तैयारी अच्छी नहीं है जरा सी बात ना इतनी बढ़ाओ ये चिंगारी अच्छी नहीं है ये दिल के छाले कहते हैं मुझसे वफादारी अच्छी नहीं है लगाओ यहां ना दिल किसी से ये बीमारी अच्छी नहीं है





नफरत का बीज हम इस कदर बोने लगे दरिंदगी अपनाकर इंसानियत खोने लगे कैसे जायेगे वो हिफाजत की दुआ करने अब तो मन्दिर में भी बलात्कार होने लगे



कभी नार से जले कभी फुहार से जले ये जब्त हमीं में था कि हम प्यार से जले फूलों के साथ रह के भी नाशाद रहे हम हम खार जैसे थे सो हम खार से जले आओ कि बातें कर लो अब दिन कहां बचे जलने दो हमारी जो गुफ़्तार से जले कौन उल्फत में भला रहता है बेदार हम खेल खेल में तिरे अनवार से जले




बोरे स्वदेशी चूहे कुतरते चले गए दाने अनाज के थे बिखरते चले गए कुछ अन्नदाता खेतों में मरते चले गए जो देश चर रहे थे वो चरते चले गए जिनसे थी बड़ी आस सिर का साया बनेंगे- वे आये सिर पे पैर ही धरते चले गए मैंने भरोसा आप के वादों पे किया था वादों से किन्तु आप मुकरते चले गए



आखर-आखर जब ढ़ाई हो जाएगा कटा - फटा दिल तुरपाई हो जाएगा उस पर कोई नजर पड़ेगी फिसलेगी- जब जब चेहरा चिकनाई हो जाएगा थाली के बैंगन का कुछ भी पता नहीं कब वो किसका अनुयायी हो जाएगा गिद्ध-दृष्टि गड़ गईं बैंकिंग सिस्टम पे रुपया - आना चौथाई हो जाएगा


आत्मा पर घाव लिए घर लौटने पर भी राहत नहीं जरा सी देरी पर वो बढ़े बूढ़ों की लानत में घिर जाती है तेजाब से झुलसे चेहरे सुनाते हैं दर्दभरी कहानी इकतरफ प्यार को नकारे तो अदावत में घिर जाती है घर वो या बाहर सब जगह एक से हालात हैं वो लड़की है ये पता चलते ही वो शामत में घिर जाती है








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