Thursday, 10 November 2016

एक लब्ज़ तेरा सुनकर,अब मैं सोना चाहता हूं,


एक लब्ज़ तेरा सुनकर,अब मैं सोना चाहता हूं,
दर्द भरी इस दुनियां से रुसवा होना चाहता हूँ,
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ख्वाब हुए ओझल,ख़याल जीने का छोड़ा है,
साथी मेरा हाथ पकड़,साथ मैंने अब छोड़ा है,
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बेबस हूं, बेजान हूं, गम की नयी पहिचान हूं,
दिल में है कोई रहता, धड़कन से अंजान हूं,
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देखी तमन्ना जीने की,दर्द दवा बन जाता है,
अपना कहने वाला परिंदा हवा बन जाता है,
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मौसम की बौछार से लोग बदल रहे हैं अब,
मासूम जिंदगी दिल पत्थर पिघल रहे हैं कब,
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सादगी उन चेहरों की हर रोज सामने आती है,
फूलों के अंदर काँटों से बेदर्द आवाज़ आती है,
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कैसे देख लूँ यह संसार,न्याय झूठ से होता है,
मोहब्बत की दुनियां का अंजाम बुरा ही होता है,
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गले लगाकर मैं तुझको जीभर रोना चाहता हूं,
आँख झपकती है मेरी,चैन से सोना चाहता हूं,

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