Sunday, 6 November 2016

आत्महत्या दुखद होती है, कोई भी करे

आत्महत्या दुखद होती है, 
कोई भी करे 
परन्तु आत्महत्या करने वाला शहीद कभी नहीं होता, भले ही वो कितना भी ढ़िढ़ोरा पीटकर आत्महत्या करे कि वो कौम के नाम पर या वर्ग संघर्ष के नाम पर प्राण दे रहा है 
आत्महत्या एक कायराना कृत्य है और शहादत देने वाले कभी कायर नहीं होते 
एक सैनिक युद्ध क्षेत्र में शत्रु का सम्पूर्ण वीरता से सामना करते हुए जब प्राणों का बलिदान देता है तो वो शहादत होती है क्योंकि वो न जाने कितनों के प्राण की रक्षा के लिये और धर्म के पालन के लिए प्राण दांव पर लगाता है, वो प्राण देने के लिए नहीं लड़ता पर प्राण चले जायेंगे इस डर से रणभूमि में साहस और पराक्रम भी नहीं छोड़ता 
वो लड़ता है विजय के लिये, प्राण जायें या रहें इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता उसके पराक्रम पर 
आत्महत्या एक आंतरिक कुंठा के अतिरेक का बड़ा घटिया परिणाम होता है.... उसमें शहादत कैसी 
भगत सिंह और उन जैसे तमाम क्रांतिकारियों ने अपने प्राण दांव पर लगाये थे एक संघर्ष को ऊर्जा और जीवन देने के लिये, उन्होंने किसी कुंठा में पड़कर प्राणहत्या नहीं की थी.... तो इस प्रकाश में तथाकथित क्रांतिकारियों द्वारा आत्महत्या करने को भगत सिंह जैसी महान शहादत बोला जाना बौद्धिक दिवालियापन है 
उसी प्रकार देश की रक्षा करते हुए प्राणों की आहुति देने वालों के साथ एक कुंठमना व्यक्ति द्वारा की जाने वाली प्राणहत्या को बिलकुल नहीं जोड़ा जाना चाहिए। 
किसी महान उद्देश्य के लिए प्राणों को दाव पर लगाना और कुंठा के वशीभूत होकर प्राण त्यागना एकदम अलग अलग बातें हैं 
#शहादत और आत्महत्या**

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