Sunday 20 May 2018

एक बार अवश्य पढे ।


एक बार अवश्य पढे ।
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मंजू ने लम्बी साँस लेते हुए मन में सोचा -
''आज सासू माँ की तेरहवीं भी निपट गयी .
माँ ने तो केवल इक्कीस साल संभाल कर रखा मुझे 
पर सासू माँ ने अपने मरते दम तक मेरे सम्मान, मेरी गरिमा और सबसे
बढ़कर मेरी इस देह की पवित्रता की रक्षा की .
ससुराल आते ही जब ससुर जी के पांव छूने को झुकी
तब आशीर्वाद देते हुए सिर पर से ससुर जी का हाथ
पीछे पीठ पर पहुँचते ही सासू माँ ने टोका था उन्हें .......
'' बिटिया ही समझो ...बहू नहीं हम बिटिया
ही लाये हैं जी !''
सासू माँ की कड़कती चेतावनी सुनते ही घूंघट में से ही ससुर जी का खिसियाया
हुआ चेहरा दिख गया था मुझे . .
उस दिन के बाद से जब भी ससुर जी के पांव छुए दूर से ही आशीर्वाद
मिलता रहा मुझे .
पतिदेव के खानदानी बड़े भाई जब किसी काम से 
आकर कुछ दिन हमारे घर में रहे थे तब एक बेटे की माँ
बन चुकी थी थी मैं ...
पर उस पापी पुरुष की निगाहें मेरी पूरी देह पर ही सरकती रहती .
एक दिन सासू माँ ने आखिर चाय का कप पकड़ाते समय मेरी मेरी उँगलियों को छूने का कुप्रयास करते उस पापी को देख ही लिया और आगे बढ़ चाय का कप उससे लेते हुए कहा था ......
''लल्ला अब चाय खुद के घर जाकर ही पीना ...
मेरी बहू सीता है द्रौपदी नहीं जिसे भाई आपस में बाँट लें .
'' सासू माँ की फटकार सुन वो पापी पुरुष बोरिया-बिस्तर बांधकर ऐसा भागा कि ससुर जी की तेरहवी तक में नहीं आया और न अब सासू माँ की .
चचेरी ननद का ऑपरेशन हुआ तो तीमारदारी को
उसके ससुराल जाकर रहना पड़ा कुछ दिन ...
अच्छी तरह याद है वहाँ सासू माँ के निर्देश कान में गूंजते
रहे -'' ...
बचकर रहना बहू ..यूँ तेरा ननदोई संयम वाला है पर है तो मर्द ना ऊपर से उनके अब तक कोई बाल-बच्चा नहीं ...''
आखिरी दिनों में जब सासू माँ ने बिस्तर पकड़ लिया था तब एक दिन बोली थी हौले से .......
'' बहू जैसे मैंने सहेजा है तुझे तू भी अपनी बहू की छाया
बनकर रक्षा करना ..
जो मेरी सास मेरी फिकर रखती तो मेरा जेठ मुझे कलंक न लगा पाता .
जब मैंने अपनी सास से इस ज्यादती के बारे में कहा था तब वे हाथ जोड़कर बोली थी मेरे आगे कि इज्जत रख ले
घर की ..बहू ..चुप रह जा बहू ...तेरी गृहस्थी के साथ साथ जेठ की भी उजड़ जावेगी ..पी जा बहू जहर ....
भाई को भाई का दुश्मन न बना ....और मैं पी गयी थी वो जहर ..आज उगला है तेरे सामने बहू !!
'' ये कहकर चुप हो गयी थी वे और मैंने उनकी हथेली कसकर पकड़ ली थी
मानों वचन दे रही थी उन्हें
''चिंता न करो सासू माँ आपके पोते की बहू मेरे संरक्षण में रहेगी .
'' सासू माँ तो आज इस दुनिया में न रही पर सोचती हूँ कि शादी से पहले जो सहेलियां रिश्ता पक्का होने पर मुझे चिढ़ाया
करती थी कि -'' जा सासू माँ की सेवा कर ..
तेरे पिता जी से ऐसा घर न ढूँढा गया जहाँ सास न हो '' ....
उन्हें जाकर बताउंगी कि ''सासू माँ तो मेरी देह के लिबास जैसी थी जिसने मेरी देह को ढ़ककर मुझे शर्मिंदा होने से बचाये रखा न केवल दुनिया के सामने बल्कि मेरी खुद की नज़रों में भी।

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