Wednesday 6 June 2018

मैं मर्द हूं, तुम औरत



मैं मर्द हूं, तुम औरत, मैं भूखा हूं, तुम भोजन!! मैं भेड़िया, गीदड़, कुत्ता जो भी कह लो, हूं. मुझे
नोचना अच्छा लगता है. खसोटना अच्छा लगता है. मैं
कुत्ता हूं. तो क्या, अगर तुमने मुझे जनम दिया है.
तो क्या, अगर तुम मुझे हर साल राखी बांधती हो.
तो क्या, अगर तुम मेरी बेटी हो. तो क्या, अगर तुम
मेरी बीबी हो. तुम चाहे जो भी हो मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता.घोड़ा घास से दोस्ती करे, तो खायेगा क्या?
मुझे तुम पर कोई रहम नहीं आता. कोई तरस नहीं आता.
मैं भूखा हूं. या तो प्यार से लुट जाओ, या अपनी ताक़त से मैं लूट लूंगा. वैसे भी तुम्हारी इतनी हिम्मत
कहां कि मेरा प्रतिरोध कर सको. ना मेरे
जैसी चौड़ी छाती है ना ही मुझ सी भुजायें. नाखून हैं
तुम्हारे पास बड़े-बड़े, पर उससे तुम
मेरा मुक़ाबला क्या खाक करोगे. ताक़त तो दूर की बात
है, तुममें तो हिम्मत भी नहीं है. हम तो शेर हैं. पिछले साल तुम जैसी क़रीब बीस बाईस हज़ार
औरतॊं का ब्लाउज़ नोचा हम मर्दों नें. तुम जैसे बीस
बाईस हज़ार औरतों का अपहरण किया. अपहरण के बाद
मुझे तो नहीं लगता हम कुत्तों, शेरों या गीदड़ों ने तुम्हे
छोड़ा होगा. रिपोर्ट तक फ़ाईल करवाने में तुम्हारे मां-
बाप, भाई भी इज्ज़त की दुहाई देकर तुम्हे चुप करवाते हैं और कहते हैं सहो बेटी सहो. ,
“नारी की सहनशक्ति बहुत ज़्यादा होती है.”
तो फिर सहो. मैं मर्द हूं और हज़ारों सालों से देखता आ रहा हूं!!! तो क्या, अगर तुम्हारा ग्रंथ तुम्हारे
मासिक-धर्म का रोना रो तुम्हे अपवित्र बता देता है.
हम मर्द तुम्हें अक्सर ही रौंदते हैं. चाहे भगवान
हो या इंसान अगर हरेक साल तुम तीन-चार लाख
औरतों को हम तरह तरह से गाजर-मुली की तरह काटते रहते हैं. कभी बिस्तर पर, कभी सड़कों पर,
कभी खेतों में. तुम्हारी भीड़ सत्संग के लिये
ही जुटेगी पर हम मर्द के खिलाफ़ कभी नहीं जुट
सकती.
मैं भूखा हूं, तुम भोजन हो. तुम्हे खाकर पेट नहीं भरता,
प्यास और बढ़ जाती है!!(कुछ अच्छे अब बुरे ज्यादा)


ये पोस्ट उनलोगो समर्पित है जो ऐसे हयवानियत को अंजाम देते है

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