Friday 8 June 2018

पर्ची की आख़री लाइन पढ़ते पढ़ते रागिनी की भी आंखे नम हो गई



मुझे अगले संडे को किटी पार्टी में जाना है सुदेश,तुम तो जानते हो मेरी फ्रेंड्स किटी में कितनी सज सवंर कर आती है ...और मैंने तो अभी तक भी शॉपिंग नहीं की है..... रागिनी आईना के सामने खड़ी होकर साड़ी के पल्लू अपने कंधे पर सलीके से जमाते हुए बोली...., सुदेश इस बार मैं किटी शॉपिंग के लिए बहुत लेट हो गयी हूँ.... और किटी के बाद मुझे कच्ची बस्ती के बच्चों के पास भी जाना है...वहाँ मैं कुछ न्यूज़ पेपर वालो को भी बुलाऊंगी अगले दिन के न्यूज़ पेपर में मेरी फोटो के लिए ......अब देखो ना सुदेश , मिसेस सक्सेना ने तो वृद्धाश्रम जाकर मिठाई और कपड़े बाँट कर, अपनी पोस्ट कल ही फेसबुक पर डाल भी दी.... और मिसेस शर्मा भी अनाथालय में गिफ्ट बांटती हुई अपनी फोटो इंस्टाग्राम में डाली है,..हर शुभ काम मेरे दिमाग में लेट ही आता है ...... सुदेश तुम सुन भी रहे हो मै क्या बोल रही हूँ...... सुदेश झुंझला कर बोला हां यार सुन रहा हूँ मैंने तुझे कब मना किया था, शॉपिंग के लिए, ड्राइवर को ले lके चली जाती और तुम भी किसी आश्रम में दें आती जो तुम्हें देना है, और अपनी नेकी करती तस्वीरें डाल देतीं फेसबुक और न्यूज़ पेपर में .... मुझे क्यूँ सुना रही हो.... शर्ट की बटन लगाते हुए सुदेश बोला अब और कितनी देर लगाओगी तैयार होने में..... मुझे आज ही अपने स्टाफ को बोनस बांटने भी जाना है जल्दी करो मेरे पास....." टाईम" नहीं है... कह कर रूम से बाहर निकल गया सुदेश तभी बाहर लॉन मे बैठी "माँ" पर नजर पड़ी,,, कुछ सोचते हुए वापिस रूम में आया।....रागिनी हम शॉपिंग के लिए जा रहे है.... क्या तुमने माँ से पूछा कि उसको भी कुछ चाहिए क्या .... रागिनी बोली.... नहीं ...वैसे भी अब उनको इस उम्र मे क्या चाहिए यार, दो वक्त की रोटी और दो जोड़ी कपड़े इसमे पूछने वाली क्या बात है..... वो बात नहीं है रागिनी ... "माँ पहली बार गर्मियों की छुट्टियों में हमारे घर रुकी हुई है" वरना तो हर बार गाँव में ही रहती है तो... औपचारिकता के लिए ही पूछ लेती......... अरे, इतना ही माँ पर प्यार उमड़ रहा है तो खुद क्यूँ नही पूछ लेते ....झल्लाकर चीखी थी रागिनी , और कंधे पर हेंड बैग लटकाते हुए तेजी से बाहर निकल गयी...... सुदेश माँ के पास जाकर बोला माँ .....मैं और रागिनी उसकी शॉपिंग के लिए बाजार जा रहे हैं आपको कुछ चाहिए तो..... माँ बीच में ही बोल पड़ी मुझे कुछ नही चाहिए बेटा.... सोच लो माँ अगर कुछ चाहिये तो बता दीजिए..... सुदेश के बहुत जोर देने पर माँ बोली ठीक है तुम रुको मै लिख कर दे देती हूँ, तुम्हें और बहू को बहुत खरीदारी करनी है कहीं भूल ना जाओ कहकर, सुदेश की माँ अपने कमरे में चली गई, कुछ देर बाद बाहर आई और लिस्ट सुदेश को थमा दी।..
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सुदेश ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, देखा रागिनी.... माँ को भी कुछ चाहिए था पर बोल नही रही थी मेरे जिद्द करने पर लिस्ट बना कर दी है,,..... "इंसान जब तक जिंदा रहता है, रोटी और कपड़े के अलावा भी बहुत कुछ चाहिये होता है" .....अच्छा बाबा ठीक है पर पहले मैं अपनी जरूरत की सारी सामान लूँगी बाद में आप अपनी माँ का लिस्ट देखते रहना कह कर कार से बाहर निकल गयी.... पूरी खरीदारी करने के बाद रागिनी बोली अब मैं बहुत थक गयी हूँ, मैं कार में Ac चालू करके बैठती हूँ आप माँ जी का सामान देख लो,,, अरे रागिनी तुम भी रुको फिर साथ चलते हैं मुझे भी जल्दी है,..... देखता हूँ माँ ने क्या मंगाया है... कहकर सुदेश ने माँ की लिखी पर्ची जेब से निकाली , .....बाप रे इतनी लंबी लिस्ट पता नही क्या क्या मंगाया होगा ..... जरूर अपने गाँव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारे सामान मंगाया होगा ....... और बनो "श्रवण कुमार" कहते हुए गुस्से से सुदेश की ओर देखने लगी,......
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पर ये क्या सुदेश की आंखों में आंसू........ और लिस्ट पकड़े हुए सुदेश का हाथ सूखे पत्ते की तरह हिल रहा था... पूरा शरीर काँप रहा था,, रागिनी बहुत घबरा गयी क्या हुआ ऐसा क्या मांग ली है तुम्हारी माँ ने.... कह कर सुदेश की हाथ से पर्ची झपट ली.... हैरान थी रागिनी भी इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे..... पर्ची में लिखा था....
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बेटा सुदेश मुझे तुमसे किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए फिर भी तुम जिद्द कर रहे हो तो, और तुम्हारे "शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो फुर्सत के कुछ" पल "मेरे लिए लेते आना.... ढलती साँझ हो गयी हूँ अब मैं सुदेश , मुझे गहराते अँधियारे से डर लगने लगा है, बहुत डर लगता है पल पल मेरी तरफ बढ़ रही मौत को देखकर.. जानती हूँ मौत को टाला नही जा सकता शाश्वत सत्य है,...... पर अकेले पन से बहुत घबराहट होती है सुदेश ...... इसलिए बेटा जब तक तुम्हारे घर पर हूँ कुछ पल बैठा कर मेरे पास कुछ देर के लिए ही सही बाँट लिया कर मेरे बुढ़ापे का अकेलापन अपने साथ ... बिन दीप जलाए ही रौशन हो जाएगी मेरी जीवन की साँझ बेटा ..... कितने साल हो गए बेटा तूझे स्पर्श ही नहीं किया ... एकबार फिर से आ.... मेरी गोद में सर रख और मै ममता भीजे हथेली से सहलाऊँ तेरे सर को..... एक बार फिर से इतराए मेरा हृदय मेरे अपनों को करीब बहुत करीब पा कर बेटा ...और फिर मुस्कुरा कर मिलूं मौत के गले ....क्या पता बेटा अगली गर्मी की छुट्टियों तक रहूँ या ना रहूँ, .......
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पर्ची की आख़री लाइन पढ़ते पढ़ते रागिनी की भी आंखे नम हो गई ....

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