यह सच है बदल गयी हूँ मैं ...
उम्र आने पर संवर गयी हूँ मैं ...
हाँ यह सच है ,
कुछ-एक सफ़ेद बालों की गरिमा से भर गयी हूँ...
एक औरत से माँ बन गयी हूँ मैं !...
सबको प्यार से संभाला अब तक,
अपनी जरूरतों को प्यार से सहलाया आज ,
हाँ ,थोड़ी -थोड़ी सी बदल गयी हूँ मैं !
रिश्तों को निभाती हूँ ,
उससे जुड़े भार नहीं ढोती ,
कितने बोझ अपने कन्धों पर लेकर चलूँ ,
समझ में आ गयी है यह बात कि ,
आखिर औरत हूँ,धरती नहीं हूँ मैं !
आजकल दूसरों को एकदम से सलाह नहीं देती ,
अगर उसकी स्थिति मेरे समझ से बाहर हो
अपने ज्ञान का प्रर्दशन करने से पहले,
दूसरों को सलाह देने से पहले, खुद को टटोलने लगी हूँ मैं !
उनको इज़्ज़त देती हूँ,
उनका पक्ष जानने की कोशिश करतीं हूँ,
सासु माँ को सास रहने देतीं हूँ ,
माँ समझकर अपनी अपेक्षाएं नहीं बढाती अब,
लगता है खुश रहने लगीं हूँ मैं !
उनके घर में गया मेरा 5 -10 रुपया शायद घर की जरुरत के दिए के लिए तेल बन जाये , इसलिए आजकल सब्जी वाले ,
ऑटो वाले से ,
काम वाली से बिन बात मोलभाव नहीं करती ,
शॉपिंग मॉल में लुटे पैसे का भाव समझ गयी हूँ मैं |
जानती हूँ खुद को सजाना ,संवारना जरुरी है पर खुद को सँवारने से पहले आत्मा पर पड़े मैल खुरचने लगीं हूँ मैं !
लगता है अब निखर गयीं हूँ मैं !
थक जाने पर शरारतें बच्चों की परेशां करतीं है ,
पर अब उनपर चिल्लाती नहीं ,
उन्हें समझने की कोशिश में लगीं हूँ मैं
गीली मिट्टी सवांरने लगीं हूँ मैं !
बुजुर्गों के किस्सों मे उनके बचपन को जी लिया करतीं हूँ ,
अनेकों बार सुनी उनकी बातों पर आज उन्हें टोकती नहीं बस पहली बार सुना हो वैसे मज़े लेने लगीं हूँ मैं |
हरेक दिन को आखरी समझ कर जीने का तरीका सीख रहीं हूँ ,
अपने इस नए "मैं" से प्यार करने लगीं हूँ मैं !
वक़्त से पंख उधार लेकर तितलियों सी उड़ने लगी हूँ मैं, फिर भी पैरों के नीचे जमीन रखतीं हूँ ,
"खुद से दोस्ती करने लगी हूँ मैं !"
हाँ यह सच है ,
कुछ-एक सफ़ेद बालों की गरिमा से भर गयी हूँ...
एक औरत से माँ बन गयी हूँ मैं !...
सबको प्यार से संभाला अब तक,
अपनी जरूरतों को प्यार से सहलाया आज ,
हाँ ,थोड़ी -थोड़ी सी बदल गयी हूँ मैं !
रिश्तों को निभाती हूँ ,
उससे जुड़े भार नहीं ढोती ,
कितने बोझ अपने कन्धों पर लेकर चलूँ ,
समझ में आ गयी है यह बात कि ,
आखिर औरत हूँ,धरती नहीं हूँ मैं !
आजकल दूसरों को एकदम से सलाह नहीं देती ,
अगर उसकी स्थिति मेरे समझ से बाहर हो
अपने ज्ञान का प्रर्दशन करने से पहले,
दूसरों को सलाह देने से पहले, खुद को टटोलने लगी हूँ मैं !
उनको इज़्ज़त देती हूँ,
उनका पक्ष जानने की कोशिश करतीं हूँ,
सासु माँ को सास रहने देतीं हूँ ,
माँ समझकर अपनी अपेक्षाएं नहीं बढाती अब,
लगता है खुश रहने लगीं हूँ मैं !
उनके घर में गया मेरा 5 -10 रुपया शायद घर की जरुरत के दिए के लिए तेल बन जाये , इसलिए आजकल सब्जी वाले ,
ऑटो वाले से ,
काम वाली से बिन बात मोलभाव नहीं करती ,
शॉपिंग मॉल में लुटे पैसे का भाव समझ गयी हूँ मैं |
जानती हूँ खुद को सजाना ,संवारना जरुरी है पर खुद को सँवारने से पहले आत्मा पर पड़े मैल खुरचने लगीं हूँ मैं !
लगता है अब निखर गयीं हूँ मैं !
थक जाने पर शरारतें बच्चों की परेशां करतीं है ,
पर अब उनपर चिल्लाती नहीं ,
उन्हें समझने की कोशिश में लगीं हूँ मैं
गीली मिट्टी सवांरने लगीं हूँ मैं !
बुजुर्गों के किस्सों मे उनके बचपन को जी लिया करतीं हूँ ,
अनेकों बार सुनी उनकी बातों पर आज उन्हें टोकती नहीं बस पहली बार सुना हो वैसे मज़े लेने लगीं हूँ मैं |
हरेक दिन को आखरी समझ कर जीने का तरीका सीख रहीं हूँ ,
अपने इस नए "मैं" से प्यार करने लगीं हूँ मैं !
वक़्त से पंख उधार लेकर तितलियों सी उड़ने लगी हूँ मैं, फिर भी पैरों के नीचे जमीन रखतीं हूँ ,
"खुद से दोस्ती करने लगी हूँ मैं !"
No comments:
Post a Comment