Sunday, 20 May 2018

यह सच है बदल गयी हूँ मैं ...


यह सच है बदल गयी हूँ मैं ...
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उम्र आने पर संवर गयी हूँ मैं ...
हाँ यह सच है ,
कुछ-एक सफ़ेद बालों की गरिमा से भर गयी हूँ...
एक औरत से माँ बन गयी हूँ मैं !...

सबको प्यार से संभाला अब तक, 
अपनी जरूरतों को प्यार से सहलाया आज ,
हाँ ,थोड़ी -थोड़ी सी बदल गयी हूँ मैं !

रिश्तों को निभाती हूँ ,
उससे जुड़े भार नहीं ढोती ,
कितने बोझ अपने कन्धों पर लेकर चलूँ , 
समझ में आ गयी है यह बात कि ,
आखिर औरत हूँ,धरती नहीं हूँ मैं !

आजकल दूसरों को एकदम से सलाह नहीं देती ,
अगर उसकी स्थिति मेरे समझ से बाहर हो 
अपने ज्ञान का प्रर्दशन करने से पहले, 
दूसरों को सलाह देने से पहले, खुद को टटोलने लगी हूँ मैं !

उनको इज़्ज़त देती हूँ, 
उनका पक्ष जानने की कोशिश करतीं हूँ,
सासु माँ को सास रहने देतीं हूँ ,
माँ समझकर अपनी अपेक्षाएं नहीं बढाती अब,
लगता है खुश रहने लगीं हूँ मैं !

उनके घर में गया मेरा 5 -10 रुपया शायद घर की जरुरत के दिए के लिए तेल बन जाये , इसलिए आजकल सब्जी वाले ,
ऑटो वाले से ,
काम वाली से बिन बात मोलभाव नहीं करती , 
शॉपिंग मॉल में लुटे पैसे का भाव समझ गयी हूँ मैं |

जानती हूँ खुद को सजाना ,संवारना जरुरी है पर खुद को सँवारने से पहले आत्मा पर पड़े मैल खुरचने लगीं हूँ मैं !
लगता है अब निखर गयीं हूँ मैं !

थक जाने पर शरारतें बच्चों की परेशां करतीं है ,
पर अब उनपर चिल्लाती नहीं ,
उन्हें समझने की कोशिश में लगीं हूँ मैं 
गीली मिट्टी सवांरने लगीं हूँ मैं !

बुजुर्गों के किस्सों मे उनके बचपन को जी लिया करतीं हूँ ,
अनेकों बार सुनी उनकी बातों पर आज उन्हें टोकती नहीं बस पहली बार सुना हो वैसे मज़े लेने लगीं हूँ मैं |

हरेक दिन को आखरी समझ कर जीने का तरीका सीख रहीं हूँ ,
अपने इस नए "मैं" से प्यार करने लगीं हूँ मैं !

वक़्त से पंख उधार लेकर तितलियों सी उड़ने लगी हूँ मैं, फिर भी पैरों के नीचे जमीन रखतीं हूँ ,

"खुद से दोस्ती करने लगी हूँ मैं !"

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