पीरियड्स , पैड और पट्टी ( अनकही व्यथा )
-------------------
आज सुबह दिमाग में आया था कि पीरियड्स को ले के थोड़ी बात की जाए, कोशिश भी की, लोगों को भी कहा और जैसा कि आपने सोशल मीडिया पर देखा ही होगा कि पैड के साथ फ़ोटो भी डाली। उस वक़्त मैं सोच रही थी कि एक पैड अगर अपनी बात रख पाता तो क्या कहता।
मेरे दिमाग मे आया कि पैड भी तो खून रोकने के ही काम आता है, और पट्टियां भी। फ़िर हम दोनों में भेदभाव क्यों कर रहे है?
एक लड़का हाथ में चोट लगने की वजह से रुई की पट्टी लगाए घूम रहा था, उसपर खून के कुछ धब्बे भी दिखाई दे रहे थे। और उसके साथ चल रही लड़की काले नीले कपड़े पहने बार बार पीछे मुड़ कर देख रही थी कि कहीं खून का कोई धब्बा न नज़र आ जाये।
पट्टी गर्व से इतरा रहा था और पैड घुटन से, शर्म से छुपा जा रहा था।
सामने मंदिर आया तो पैड रुक गया। पट्टी ने पूछा - "क्या हुआ?" पैड ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया - "सिर्फ़ कुछ ही खून अंदर जा सकते हैं!"
जहाँ पट्टी सबके सामने ईतरा कर अपने घाव दिखा रहा था, वहीं पैड चुप था। खून से लथपथ और दर्द से लैस पैड समाज में स्वीकार्य न होने के कारण मूक रहा।
पैड को बुरा लगता था कि एक लड़की दुकान पर उसे खरीदने आती और उसे काली कोठरी जैसे प्लास्टिक में भर के भेजा जाता, और वहीं पट्टी मुस्कुराता हुआ स्वतंत्र झूमता निकल जाता।
पट्टी जब घर जाता तो लोग उसकी सेवा में लग जाते, उस दिन रोज़ से ज़्यादा ख़याल रखा जाता, पर जाने क्यों पैड को ये आज़ादी नहीं थी। घर में पैड न किचन में जाता, ना ही पिताजी के बिस्तर पर बैठता। पट्टी को भरपूर खाने को मिलता और पैड को अचार और नमक छूने की आज़ादी न होती।
गाँव में तो ये पैड रुई का भी नहीं होता है। पुराने फटे कपड़ों को तह कर के पीरियड्स में काम में लाया जाता है। सबके पास व्हिस्पर अल्ट्रा खरीदने को पैसे थोड़ी न हैं। पट्टी 10 की मिल जाती है और पैड 80 का।
पट्टी बड़ा ही फेमस है। उसे सब जानते हैं, सबने देखा है। लेकिन पैड किसी एजेंट की तरह है जिसे न किसी ने आते देखा न जाते। 5 दिन उस लड़की ने खून बहाया, पैड ने रोका लेकिन उसके साथ चलते दोस्तोँ को ख़बर नहीं, घर में भाई को पता नहीं।
पट्टी कभी कभी ही काम आता है, पर पैड हर महीने 12 बार। आश्चर्यचकित होती हूँ कि फिर भी पैड का ज़िक्र नहीं, किसी को उसकी फ़िक्र नहीं।
सरकार ने पैड को luxurious आइटम में डाल दिया। पैड हँसा था खुद को देख कर। वो ज़रूरत है हर 11 से 45 उम्र की महिला की। हंसता है पैड कि कैसा समाज है जिसको लड़की के स्कर्ट पर खून का धब्बा भी नहीं देखना है और उसको रोकने के लिए पैड की व्यवस्था भी नहीं करनी है। पैड खुद को महसूस करता है महंगा और शर्मसार।
पट्टी को मतलब नहीं पैड क्या झेल रहा है। आधी पट्टियों ने तो पैड देखा भी नहीं है।
-------------------
आज सुबह दिमाग में आया था कि पीरियड्स को ले के थोड़ी बात की जाए, कोशिश भी की, लोगों को भी कहा और जैसा कि आपने सोशल मीडिया पर देखा ही होगा कि पैड के साथ फ़ोटो भी डाली। उस वक़्त मैं सोच रही थी कि एक पैड अगर अपनी बात रख पाता तो क्या कहता।
मेरे दिमाग मे आया कि पैड भी तो खून रोकने के ही काम आता है, और पट्टियां भी। फ़िर हम दोनों में भेदभाव क्यों कर रहे है?
एक लड़का हाथ में चोट लगने की वजह से रुई की पट्टी लगाए घूम रहा था, उसपर खून के कुछ धब्बे भी दिखाई दे रहे थे। और उसके साथ चल रही लड़की काले नीले कपड़े पहने बार बार पीछे मुड़ कर देख रही थी कि कहीं खून का कोई धब्बा न नज़र आ जाये।
पट्टी गर्व से इतरा रहा था और पैड घुटन से, शर्म से छुपा जा रहा था।
सामने मंदिर आया तो पैड रुक गया। पट्टी ने पूछा - "क्या हुआ?" पैड ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया - "सिर्फ़ कुछ ही खून अंदर जा सकते हैं!"
जहाँ पट्टी सबके सामने ईतरा कर अपने घाव दिखा रहा था, वहीं पैड चुप था। खून से लथपथ और दर्द से लैस पैड समाज में स्वीकार्य न होने के कारण मूक रहा।
पैड को बुरा लगता था कि एक लड़की दुकान पर उसे खरीदने आती और उसे काली कोठरी जैसे प्लास्टिक में भर के भेजा जाता, और वहीं पट्टी मुस्कुराता हुआ स्वतंत्र झूमता निकल जाता।
पट्टी जब घर जाता तो लोग उसकी सेवा में लग जाते, उस दिन रोज़ से ज़्यादा ख़याल रखा जाता, पर जाने क्यों पैड को ये आज़ादी नहीं थी। घर में पैड न किचन में जाता, ना ही पिताजी के बिस्तर पर बैठता। पट्टी को भरपूर खाने को मिलता और पैड को अचार और नमक छूने की आज़ादी न होती।
गाँव में तो ये पैड रुई का भी नहीं होता है। पुराने फटे कपड़ों को तह कर के पीरियड्स में काम में लाया जाता है। सबके पास व्हिस्पर अल्ट्रा खरीदने को पैसे थोड़ी न हैं। पट्टी 10 की मिल जाती है और पैड 80 का।
पट्टी बड़ा ही फेमस है। उसे सब जानते हैं, सबने देखा है। लेकिन पैड किसी एजेंट की तरह है जिसे न किसी ने आते देखा न जाते। 5 दिन उस लड़की ने खून बहाया, पैड ने रोका लेकिन उसके साथ चलते दोस्तोँ को ख़बर नहीं, घर में भाई को पता नहीं।
पट्टी कभी कभी ही काम आता है, पर पैड हर महीने 12 बार। आश्चर्यचकित होती हूँ कि फिर भी पैड का ज़िक्र नहीं, किसी को उसकी फ़िक्र नहीं।
सरकार ने पैड को luxurious आइटम में डाल दिया। पैड हँसा था खुद को देख कर। वो ज़रूरत है हर 11 से 45 उम्र की महिला की। हंसता है पैड कि कैसा समाज है जिसको लड़की के स्कर्ट पर खून का धब्बा भी नहीं देखना है और उसको रोकने के लिए पैड की व्यवस्था भी नहीं करनी है। पैड खुद को महसूस करता है महंगा और शर्मसार।
पट्टी को मतलब नहीं पैड क्या झेल रहा है। आधी पट्टियों ने तो पैड देखा भी नहीं है।
No comments:
Post a Comment