Sunday 3 June 2018

बात ऐसी जो दिल को छू जाए

बात ऐसी जो दिल को छू जाए
गाड़ियों के शोरूम पर जाईये, नए मॉडल्स पे वेटिंग चल रही है , ग्राहकों को 6-6महीने तक गाड़ियों का इंतेजार करना पड़ रहा है !


रेस्टोरेंट में खाली टेबल नहीं मिल रही है , लाइन लग रही है बहुत से रेस्टोरेंटस पर !

शॉपिंग मॉल में पार्किंग की जगह नहीं है इतनी भीड़ है ,


सिनेमा हॉल अच्छा खासा बिज़नस कर रहे हैं !

कई मोबाइल कंपनियों के मॉडल आउट ऑफ स्टॉक हैं , एप्पल लांच होते हुए ही आउट ऑफ स्टॉक हो जा रहा है !
ऑनलाइन शॉपिंग के दौर में भी वर्किंग डे में भी शाम को बाजारों में पैर रखने को जगह नहीं है ,

रोज जाम जैसे हालात पैदा हो जाते हैं !

ऑनलाइन शॉपिंग इंडस्ट्री अपने बूम पर है !!!

मगर मेरे कुछ भाई कह रहे हैं कि GST ने व्यापारियों की कमर तोड़ दी है

मेरे घर में जब बेमतलब की लाइटें जलती रहती हैं, पंखा चलता रहता है, टीवी चलता रहता है तब मुझे कोई तकलीफ नहीं होती*परन्तु बिजली का दाम 
दस पैसे बढ़ते ही मेरी अंतरात्मा कराह उठती है।

जब मेरे बच्चे सोलह डिग्री सेंटीग्रेड पर एसी चलाकर कम्बल ओढ़कर सोते हैं तब मैं कुछ नहीं बोल पाता लेकिन बिजली का रेट बढ़ते ही मेरा पारा चढ़ जाता है।

जब मेरा गीजर चौबीसों घंटे ऑन रहता है तब मुझे कोई दिक्कत नहीं होती* लेकिन बिजली का रेट 
बढ़ते ही मेरी खुजली बढ़ जाती है।

जब मेरी कामवाली या घरवाली कुकिंग गैस बर्बाद करती है तब मेरी जुबान नहीं हिलती लेकिन गैस 
का दाम बढ़ते ही मेरी ज़ुबान कैंची हो जाती है।

रेड लाइट पर कार का इंजन बन्द करना मुझे गँवारा नहीं, घर से दो गली दूर दूध लेने मैं गाड़ी से जाता हूँ, वीकेंड में मैं बेमतलब भी दस बीस किलोमीटर गाड़ी चला लेता हूँ* लेकिन अगर पेट्रोल का दाम एक रूपया बढ़ जाए तो मुझे मिर्ची लग जाती है।

एक रात दो हज़ार का डिनर खाने में मुझे तकलीफ नहीं होती लेकिन बीस- पचास रुपए की पार्किंग फीस मुझे बहुत चुभती है।

मॉल में दस हज़ार की शॉपिंग पर मैं एक रूपया भी नहीं छुड़ा पाता लेकिन हरी सब्जी के ठेले वाले से मोलभाव किए बगैर मेरा खाना ही नहीं पचता।

मेरे तनख्वाह रीविजन के लिए मैं रोज कोसता हूँ सरकार को लेकिन मेरी कामवाली की तनख्वाह बढ़ाने की बात सुनते ही मेरा बीपी बढ़ जाता है !!

मेरे बच्चे मेरी बात नहीं सुनते, कोई बात नहीं*
लेकिन प्रधानमंत्री मेरी नहीं सुनते तो मैं उनको तरह - तरह की गालियाँ देता हूँ।

मैं आज़ाद देश का आज़ाद नागरिक हूँ। 
सरकार बदल दूँगा लेकिन खुद को बदल नहीं सकता।

ये देश के तमाम उन नागरिकों को समर्पित जो खुद से तंग रहते हैं अपनी परेशानियों का ठीकरा सरकार के सिर पर फोड़ते हैं खुद से भी कुछ करने की सोच लो तो कोई बात बने

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