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एक व्यक्ति बहुत परेशान था। उसके दोस्त ने उसे सलाह दी कि श्रीकृष्ण भगवान की पूजा शुरू कर दो। उसने एक श्रीकृष्ण भगवान की मूर्ति घर लाकर उसकी पूजा करना शुरू कर दी। कई साल बीत गए लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।
एक दूसरे मित्र ने कहा कि तू काली माँ की पूजा कर, जरूर तुम्हारे दुख दूर होंगे। अगले ही दिन वो एक काली माँ की मूर्ति घर ले आया। श्रीकृष्ण भगवान की मूर्ति मंदिर के ऊपर बने एक टांड पर रख दी और काली माँ की मूर्ति मंदिर में रखकर पूजा शुरू कर दी। #अध्यात्म_सागर
कई दिन बाद उसके दिमाग में ख्याल आया कि जो अगरबत्ती, धूपबत्ती कालीजी को जलाता हूँ, उससे तो श्रीकृष्ण जी को धुँआ लगता होगा ऐसा करता हूँ कि श्रीकृष्ण का मुँह बाँध देता हूँ। जैसे ही वो ऊपर चढ़कर श्रीकृष्ण का मुँह बाँधने लगा श्रीकृष्ण भगवान ने उसका हाथ पकड़ लिया। वो हैरान रह गया और भगवान से पूछा - "इतने वर्षों से पूजाकर रहा था तब नहीं आए! आज कैसे प्रकट हो गए?"
भगवान श्रीकृष्ण ने समझाते हुए कहा - "आज तक तू एक मूर्ति समझकर मेरी पूजा करता था। किन्तु आज तुझे एहसास हुआ कि कृष्ण साँस ले रहा है इसलिए मैं आ गया।"
भगवान तो सर्वत्र हैं, कण-कण में हैं। जरूरत है तो सिर्फ श्रृद्धा और विश्वास की। इसलिए मानसकार ने बताया है- ‘‘भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ। याभ्यां बिना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥” (बालकाण्ड 2)
अर्थात्- श्रृद्धा और विश्वास रूपी भवानी और शंकर को नमस्कार। दोनों की उपासना से ही सिद्धि या अंतःकरण में स्थित परमात्मदेव के दर्शन सम्भव होते हैं।
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