Sunday 13 November 2016

#वो_जगह_दिखा_दो_बस_एक_बार

गाँव शहर या छत आँगन
गली मोहल्ला और बाजार 
लूँ सांस कहाँ बेडर होके
वो जगह दिखा दो बस इक बार

कसे हुए या ढीले ढाले
जीन्स स्कर्ट या साड़ी सलवार 
किसमें न होगी इज़्ज़त तार
वो वस्त्र बनवा दो बस इक बार

दोस्त सहेली और रिश्तेदार
चलूँ अकेले या संग परिवार
जिस संग न होगा मुझपे वार
वो साथ मिला दो बस इक बार

सुबह,शाम और भरी दोपहरी
या काली रात का हो अन्धकार
जिस वक़्त न होगा अत्याचार
वो समय बता दो बस इक बार

छःमाह की उम्र या सोलहवाँ साल
उम्र अधेड़ या लटकी खाल
जिस उम्र न बनूंगी हवस की शिकार
वो उम्र बता दो मुझे इक बार

कोई कुछ तो बता दो बस इक बार.... 😢

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