Thursday 8 September 2016

सुख-दुख को सम्यक भाव से ग्रहण करें

🌴🌴🌴🌴🌴 सुख-दुख को सम्यक भाव से ग्रहण करें 🌴🌴🌴🌴🌴
जीवन दो पहियों की गाड़ी है। सुख और दुख दो पहिए है, जिन पर जीवन चलता है। इसे ही हम धूप-छांव कहते है और इसे ही जीवन का उतार चढ़ाव। मनुष्य की मानसिकता सुख पाने की रहती है और दुख आने पर वह दुखी हो जाता है। जो दोनों में समान रहता है वह कभी दुखी नही रहता। जिस परमात्मा से हमें सुख मिलता है उसी से यदि दुख मिले और हम दुखी ना हो हम सुख दुख से ऊपर उठ जाते है। इस समत्व भाव के महत्व को दर्शाती एक कथा आती है।
एख राजा बड़ा ही नेक, प्रजा प्रिय और सभी का ध्यान रखने वाला था। उसके महल में सारे नौकर-चाकर स्वामिभक्त थे क्योकि राजा उन्हें संतान की भांति स्नेह करता था। उनके सुख में सुखी और दुख में दुखी होना राजा के स्वभाव व संस्कारों का एक अंग था।
वहीं पर राजा का एक परिचारक था, जिस पर राजा का विशेष स्नेह था। एक दिन राजा उस परिचारक के साथ जंगल की सैर कर रहा था, तभी राजा को एख वृक्ष दिकाई दिया। जिस पर एक ही फल लगा था। राजा ने फल तोड़ा और उसकी एक कली काटकर परिचारक को दे दी। उसने चखी और कहा बहुत स्वादिष्ट है। परिचारक ने एक और कली मांगी, राजा ने दे दी। फिर एक और कली की मांग की तो राजा बोला यदि फल इतना ही मीठा है तो मुझे भी चखने दो। इतना कहते हुए राजा ने एक कली मुंह में रख ली। वह बहुत कड़वी थी। राजा ने उसे थूकते हुए कहा- इसे तो खाना मुश्किल है और तुम एक के बाद एक खाते गए। परिचारक हाथ जोड़कर बोला- जिन हाथों से इतने मीठे फल मिलें हो, उनसे यदि एक कड़वा फल मिले तो कैसी शिकायत। राजा ने मुस्कुराकर परिचारक को गले से लगा लिया।

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