Wednesday 19 October 2016

 
सारी रात संग चाँदनी.के बरसते रहे
टूटे ख्वाबो को पहलू मे रखकर
भींगी पलको को तकिये मे समेटते रहे
सिवाय उनके दूजा ख्याल न रहा
उनके एहसास सिरहाने सहेजते रहे
चुभ रही जिनकी आँखो मे तस्वीर मेरी
गीले रूखसार पर नाम उनका उकेरते रहे
नेह के धागे.का एक सिरा पास रह गया
सारी.रात बचे.टुकड़े को आहों.मे लपेटते रहे


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