माना ऐह्सासे बया ज़रूरी है
धुंध को छांटना भी ज़रूरी है
जाने बिन कुछ भी कह देना
ये बयान बाजी गैर ज़रूरी है !
चला गये लफ्जों के तीर
क्या उनकी वापसी कभी होगी
शस्त्रों के घाव ही बहुत होते
शव्दो के घाव क्या ज़रूरी है !
कच्चे सूत सा विश्वास रहा
झूटे भ्रम से टूट गया
नौसिखिये सी बात रहीं
फ़िर ज्ञानी कहना क्या ज़रूरी है !
चाहे दोस्त रहो या रकीब बनो
ये तो दुनियाँ दारी है
पर मंसूब का फिकरा ठीक नही
ये भाषा गैर ज़रूरी है !!
धुंध को छांटना भी ज़रूरी है
जाने बिन कुछ भी कह देना
ये बयान बाजी गैर ज़रूरी है !
चला गये लफ्जों के तीर
क्या उनकी वापसी कभी होगी
शस्त्रों के घाव ही बहुत होते
शव्दो के घाव क्या ज़रूरी है !
कच्चे सूत सा विश्वास रहा
झूटे भ्रम से टूट गया
नौसिखिये सी बात रहीं
फ़िर ज्ञानी कहना क्या ज़रूरी है !
चाहे दोस्त रहो या रकीब बनो
ये तो दुनियाँ दारी है
पर मंसूब का फिकरा ठीक नही
ये भाषा गैर ज़रूरी है !!
माना ऐह्सासे बया ज़रूरी है
धुंध को छांटना भी ज़रूरी है
जाने बिन कुछ भी कह देना
ये बयान बाजी गैर ज़रूरी है !
चला गये लफ्जों के तीर
क्या उनकी वापसी कभी होगी
शस्त्रों के घाव ही बहुत होते
शव्दो के घाव क्या ज़रूरी है !
कच्चे सूत सा विश्वास रहा
झूटे भ्रम से टूट गया
नौसिखिये सी बात रहीं
फ़िर ज्ञानी कहना क्या ज़रूरी है !
चाहे दोस्त रहो या रकीब बनो
ये तो दुनियाँ दारी है
पर मंसूब का फिकरा ठीक नही
ये भाषा गैर ज़रूरी है !!
धुंध को छांटना भी ज़रूरी है
जाने बिन कुछ भी कह देना
ये बयान बाजी गैर ज़रूरी है !
चला गये लफ्जों के तीर
क्या उनकी वापसी कभी होगी
शस्त्रों के घाव ही बहुत होते
शव्दो के घाव क्या ज़रूरी है !
कच्चे सूत सा विश्वास रहा
झूटे भ्रम से टूट गया
नौसिखिये सी बात रहीं
फ़िर ज्ञानी कहना क्या ज़रूरी है !
चाहे दोस्त रहो या रकीब बनो
ये तो दुनियाँ दारी है
पर मंसूब का फिकरा ठीक नही
ये भाषा गैर ज़रूरी है !!
माना ऐह्सासे बया ज़रूरी है
धुंध को छांटना भी ज़रूरी है
जाने बिन कुछ भी कह देना
ये बयान बाजी गैर ज़रूरी है !
चला गये लफ्जों के तीर
क्या उनकी वापसी कभी होगी
शस्त्रों के घाव ही बहुत होते
शव्दो के घाव क्या ज़रूरी है !
कच्चे सूत सा विश्वास रहा
झूटे भ्रम से टूट गया
नौसिखिये सी बात रहीं
फ़िर ज्ञानी कहना क्या ज़रूरी है !
चाहे दोस्त रहो या रकीब बनो
ये तो दुनियाँ दारी है
पर मंसूब का फिकरा ठीक नही
ये भाषा गैर ज़रूरी है !!
धुंध को छांटना भी ज़रूरी है
जाने बिन कुछ भी कह देना
ये बयान बाजी गैर ज़रूरी है !
चला गये लफ्जों के तीर
क्या उनकी वापसी कभी होगी
शस्त्रों के घाव ही बहुत होते
शव्दो के घाव क्या ज़रूरी है !
कच्चे सूत सा विश्वास रहा
झूटे भ्रम से टूट गया
नौसिखिये सी बात रहीं
फ़िर ज्ञानी कहना क्या ज़रूरी है !
चाहे दोस्त रहो या रकीब बनो
ये तो दुनियाँ दारी है
पर मंसूब का फिकरा ठीक नही
ये भाषा गैर ज़रूरी है !!
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