Saturday 22 October 2016

II #एक_मां_की_जुबानी।।


बारह साल की मेरी बेटी
सोचती खुद को सयानी हो गई
लगता उसे बचपन की बातें
जैसे अब कहानी हो गई
पहनी उसने मेरी साङी
और माथे पर बिंदी लगाई
अंदाज मेरा अपनाकर बोली
मां आपकी परछाई आई
देख रही मैँ अपलक उसको
चिंतन मन में भर आया
इतनी जल्दी बिटिया का
बचपन कैसे छुट पाया
कल तक खेलती जिस गुङिया से
वो अब उसे न भाऐं
अब मैँ बङी हो रही मम्मी
बस ये कहती जाये
कहने लगी मैं प्यार से उससे
बङा तो होना है इक दिन
मत छोङो अभी से बचपन 
तरसोगे फिर इस बिन
आज हमें भी अपना बचपन
याद बहुत आता है
बच्चों में देख अपना अक्श
ह्रदय बचपन जीना चाहता है
शायद हमारा बचपना हममें
इसीलिये रहता है
बन जाते है हम बङे तो जल्दी 
पर दिल बच्चा कहता है|
save girls and respect them..

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