Monday, 10 October 2016

 
होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समंदर के ख़ज़ाने नहीं आते
पलके भी चमक उठती हैं
सोते में हमारीआंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते
दिल उजडी हुई इक सराय की तरह है
अब लोग यहां रात बिताने नहीं आते
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते

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