होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समंदर के ख़ज़ाने नहीं आते
पलके भी चमक उठती हैं
सोते में हमारीआंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते
दिल उजडी हुई इक सराय की तरह है
अब लोग यहां रात बिताने नहीं आते
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते
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