Sunday, 2 October 2016

*अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लिया करो*
*कभी आँखें दिखा दी कभी सर झुका लिया करो*

आपसी नाराज़गी को लम्बा चलने ही न दिया करो
वो न भी हंसें तो तुम मुस्करा दिया करो

*रूठ कर बैठे रहने से घर भला कहाँ चलते हैं*
*कभी उन्होंने गुदगुदा दिया कभी तुम मना लिया करो*

खाने पीने पे विवाद कभी होने ही न दिया करो
कभी गरम खा ली कभी बासी से काम चला लिया करो

*मीयां हो या बीबी महत्व में कोई भी कम नहीं*
*कभी खुद डॉन बन गए तो कभी उन्हें बॉस बना दिया करो*

अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लिया करो...

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