Monday, 3 October 2016

गीत


अपनी ज़मीन पर आँसू बहुत हैं ख़ुशियाँ हैं कम
ख़ुशियाँ बाँट लें आजा भुला दें दुनियाँ  के ग़म   

घिर आये रे दुक्ख के मौसम
हुआ जाता है मौसम ये बोझल
मुस्काने सारी धोने से पहले
आ जाओ हम ख़ुशियाँ बाँट लें। आजा भुला दें ....

हो चलो चलकर मुहब्बत बचाएं
वक़्त है आदमियत बचाएं
इंसानियत की ये इल्तज़ा है
मिल जुल के हम ख़ुशियाँ बाँट लें।  आजा भुला दें …

हम तो पंछी हैं इक आसमाँ  के
दो ये आवाज़ सारे जहाँ से
कहते हैं हम से  दुनियाँ के सारे
 दीनो धरम ख़ुशियाँ बाँट लें। आजा भुला दें …

अब के यूँ आये जीने का मौसम
सबको मिल जाये जीने का मौसम
सपनों की जन्नत बन के हक़ीक़त
चूमें क़दम ख़ुशियाँ बाँट लें।  आजा भुला दें …

कोई उजड़े घरों को न रोये
कोई अपने चहेते न खोये
अब दिन  न आये आँखें किसी की
करने का नम ख़ुशियाँ बाँट लें।  आजा भुला दें …

अपनी जन्नत को जलने न देंगे
दिन को शब में बदलने न देंगे
तुझको अँधेरे डसने खड़े हैं
थम यार थम खुशियां बाँट लें।  आजा भुला दें …

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